विस्थापित कश्मीरी पंडितों के प्रमुख संगठनों ने केंद्र सरकार से कश्मीर घाटी में 10 जिलों के बजाय एक ही स्थान पर निर्वासित समुदाय की वापसी और उनकी मांग पर विचार करने का आग्रह किया है. रूट्स इन कश्मीर (आरआईके), जेकेवीएम और यूथ फॉर पनुन कश्मीर (वाई4पीके) जैसे प्रमुख कश्मीरी पंडित संगठनों द्वारा संयुक्त रूप से जारी एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि मीडिया रिपोर्टों ने संकेत दिया है कि सरकार कश्मीर के विभिन्न जिलों में कश्मीरी पंडितों को विस्थापित करने की योजना बना रही है.
संगठनों ने सरकार से घाटी में कश्मीरी पंडितों के लिए 10-जिला निपटान योजनाओं पर विचार नहीं करने का आग्रह किया और समुदाय के सम्मानजनक वापसी के लिए 'न्याय और एक स्थान निपटान' की मांग की. आरआईके के प्रवक्ता अमित रैना ने कहा कि संगठनों का एक प्रतिनिधिमंडल केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलकर सभी की मांगों को लेकर एक ज्ञापन प्रस्तुत करेगा. केंद्र की आलोचना करते हुए रैना ने कहा कि सरकार कश्मीरी पंडितों के पलायन के कारणों का विश्लेषण करने में विफल रही है. उन्होंने कहा, "विभिन्न जिलों में उनके पुनर्वास के लिए योजनाओं को तैयार करने के बजाय, उन्हें पहले पलायन के कारणों को स्थापित करने के लिए एक समिति का गठन करना चाहिए और फिर समिति के निष्कर्षों के आधार पर योजना तैयार करनी चाहिए." यह भी पढ़े: जम्मू-कश्मीर: कोरोना संकट के चलते इस साल नहीं हुआ खीर भवानी मेला का आयोजन, जानें क्यों कश्मीरी पंडितों के लिए है यह बेहद खास
जेकेवीएम के अध्यक्ष दिलीप मट्टो ने कहा कि हालांकि अब तक 1,800 से अधिक कश्मीरी पंडितों को आतंकवादियों ने मार दिया है, लेकिन एक भी दोषी नहीं ठहराया गया है. उन्होंने राज्य की खराब न्याय व्यवस्था पर भी सवाल खड़े किए. उन्होंने कहा कि न्याय और एक ही जगह पर उन्हें बसाए जाने के बिना कश्मीरी पंडितों की वापसी संभव नहीं है. इसके साथ ही वाईपीके के राष्ट्रीय समन्वयक विट्ठल चौधरी ने भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि 1990 में कश्मीरी पंडितों का उत्पीड़न जनसंहार से कम नहीं था. उन्होंने कहा, "सरकार ने नरसंहार पीड़ितों की चिंताओं को दूर करने के बजाय हमसे उन मवेशियों की तरह व्यवहार कर रही है, जिन्हें किसी भी स्थान पर ले जाया जा सकता है." एआईकेएस के पूर्व उपाध्यक्ष संजय सप्रू ने कहा कि सरकार को समुदाय की आकांक्षाओं को ध्यान में रखना चाहिए और उन्हें एक ही जगह पर बसाया जाना चाहिए. यह भी पढ़े: कश्मीरी पंडितों ने अधिवास कानून के लिये जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल का धन्यवाद किया
सभी संगठनों ने सर्वसम्मति से नरसंहार के कारणों की पहचान करने और त्वरित न्याय के लिए विशेष जांच दल या न्यायाधिकरण की स्थापना की मांग की है. इसके अलावा उन्होंने मांग की कि सरकार मंदिरों और कश्मीर में हिंदुओं की धार्मिक और सांस्कृतिक संपत्तियों की रक्षा के लिए प्रस्तावित मंदिर और तीर्थ विधेयक के अनुसार एक 'मंदिर और तीर्थ संरक्षण अध्यादेश' जारी करे. कश्मीर के मूल निवासी करीब तीन लाख कश्मीरी पंडितों को 1990 में पाकिस्तान द्वारा समर्थित इस्लामी आतंकवादियों द्वारा अपनी मातृभूमि से बाहर निकाल दिए गया था.