आज पूरे देश में 25वां कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा है. प्राप्त जानकारी के अनुसार 3 मई 1999 को कुछ पाकिस्तानी सैनिक चोरी-छिपे घुसपैठ कर कारगिल की आजम चौकी पर कब्जा कर लिया था. कुछ कदमों की दूरी पर भारतीय चरवाहे अपने मवेशी चरा रहे थे. पाकिस्तानी सैनिकों ने उन्हें गिरफ्तार करना चाहा तो उन्हें रोक दिया गया क्योंकि फिर उनके लिए भी रसद की व्यवस्था करनी पड़ती. वे सैनिक छिप गये. उधर मवेशियों को भी उनकी गतिविधियां संदिग्ध लगी थी. वह 6-7 भारतीय सैनिकों को लेकर आ गया. सैनिकों ने दूरबीन से मुआयना कर लौट गये. थोड़ी देर बाद वहां एक लामा हेलीकॉप्टर आया. हेलीकॉप्टर से मुआयना करने के बाद वह समझ गये कि कारगिल की ऊंची जगहों पर पाकिस्तानी सैनिकों ने कब्जा कर रखा है. कहा जाता है कि हेलीकॉप्टर से भारतीय सेना ने संदिग्ध सिपाहियों पर गोलियां चलाईं. पाकिस्तानी सेना भी जवाबी हमला को उद्दत हुई, लेकिन पाकिस्तानी मुख्यालय ने इंकार कर दिया.
रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नांडिस ने रूस का प्रोग्राम कैंसिल किया
कहा जाता है कि भारतीय सैनिक अधिकारियों को अहसास हो गया था कि भारतीय सीमा सीमा क्षेत्र में पाकिस्तानी सैनिकों ने घुसपैठ हुई है. अकसर पाकिस्तान से आतंकी इस तरह की घुसपैठ करते रहते हैं, जिसे वह अपने स्तर पर सुलझा लेते हैं. इसी वजह से उन्होंने राजनीतिक नेतृत्व को कुछ नहीं बताया. लेकिन किसी माध्यम से यह खबर जब तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नाडिस को मिली तो उस समय वह रूस जाने की तैयारी कर रहे थे. जार्ज फर्नाडीस ने रूस का प्रोग्राम कैंसिल किया.
क्यों फेल हुई भारतीय खुफिया एजेंसी?
यह हैरान करने वाली बात थी कि पाकिस्तान के इतने बड़े ऑपरेशन के बारे में भारतीय खुफिया एजेंसी को पता ही नहीं चला. प्राप्त खबरों के अनुसार भारत के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के एक सदस्य ने माना था भारतीय खुफिया एजेंसी दुश्मन देश के इस ऑपरेशन को नहीं समझ सकी. उसकी वजह यह बताई गई कि इस ऑपरेशन के तहत पाकिस्तान ने चतुराई दिखाते हुए अतिरिक्त बल की मदद नहीं ली थी. अगर वे ऐसा करते तो निश्चित ही भारतीय खुफिया एजेंसी की नजरों से बच नहीं सकते थे.
क्या मकसद था पाकिस्तान का
पाकिस्तान की हमेशा से ‘मुंह में राम बगल में छूरी’ वाली फितरत रही है. एक तरफ लाहौर शिखर सम्मेलन चल रहा था, वहीं परवेज मुशर्रफ षड़यंत्र कर पाकिस्तानी सैनिकों को गुपचुप तरीके से भारतीय सीमा क्षेत्र कारगिल में घुसपैठ का चक्र चला रहे थे. मुशर्रफ का मकसद था कि भारत के उत्तर की ओर सियाचिन ग्लेशियर की लाइफ लाइन एनएच 1 डी काटकर, उस पर नियंत्रण कर ले. वे उन पहाड़ियों पर कब्जा करना चाहते थे, ताकि उस मार्ग से भारतीय सेना के लिए ले जाये जाने वाले रसद-सामग्री के काफिले को रोक दिया जाए. ताकि मजबूर होकर भारत सियाचिन को छोड़ दे, और उस पर पाकिस्तान कब्जा कर ले.
तोलोलिंग पर भारतीय कब्जा के साथ स्थिति
कहा जाता है कि मई, जून और जुलाई इन तीन माह तक चले इस युद्ध में पाकिस्तान काफी अच्छी स्थिति में था, क्योंकि उसके सैनिक काफी ऊंचाई से नीचे स्थित भारतीय सेना के बंकरों पर हमले कर रहे थे, लेकिन भारतीय सेना बड़ी खामोशी से ऊंचाइयों पर पहुंच रही थी. जून का दूसरा सप्ताह आते-आते भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना के एकदम सामने आ गई थी. यह तोलोलिंग क्षेत्र था. जल्दी ही इस पर भारत का कब्जा हो गया. पाकिस्तान को मजबूर होकर पीछे हटना पड़ा.
जमीन से बोफोर्स और आकाश से मिग के हमले ने दुश्मन को मिट्टी में मिलाया
पाकिस्तान का फुल एंड फाइनल हिसाब करने के लिए एक तरफ भारतीय वायु सेना के दो मिग विमानों ने पाकिस्तानी कब्जे वाले क्षेत्र पर ताबड़तोड़ हमला किया, वहीं बोफोर्स तोपें जिनकी रेंज लगभग 27 किमी थी, गरजने लगीं. नतीजा यह हुआ कि पाकिस्तानी सेना को पीछे हटना पड़ा. भारतीय सेना तब तक पाकिस्तान की सीमा में घुसकर हमले करने लगी, तब नवाज शरीफ को अमेरिका भागना पड़ा, जहां तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से भी उन्हें टका सा जवाब मिला.