बेंगलुरू: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के नाम गुरुवार को एक और कीर्तिमान जुड़ने जा रहा है. दरअसल ISRO आज आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा अंतरिक्षतट से पीएसएलवी-सी 44 रॉकेट प्रक्षेपण करने वाला है. इस साल के पहले प्रक्षेपण में एक इमेजिंग सैटेलाइट माइक्रोसैट-आर व इसके साथ ही छात्रों द्वारा बनाए गए प्रायोगिक अंतरिक्ष उपकरण 'कलामसैट' (Kalamsat) का प्रक्षेपण किया जाएगा.
इसरो के मुताबिक चार स्तरों वाले प्रक्षेपण में बारी-बारी से ठोस व तरल चरण शामिल हैं. पीएसएलवी-सी44, पीएसएलवी-डीएल का पहला मिशन है और यह पीएसएलवी का नया संस्करण है. वाहन का चौथा चरण (पीएस-4) उच्चतर सर्कुलर कक्ष में प्रवेश करेगा. छात्रों के प्रायोगिक उपकरण 'कलामसैट' आर्बिटल प्लेटफार्म के तौर पर पहली बार पीएस-4 का इस्तेमाल करेगा.
इस प्रक्षेपण की सबसे बड़ी खासियत, प्रक्षेपण यान का विन्यास और उसकी बहुउपयोगिता है. प्रक्षेपण यान को गति देने के लिए पहली बार सिर्फ दो स्ट्रेप ऑन मोटर्स लगाए गए हैं. इसके अलावा प्रक्षेपण यान पीएसएलवी-सी44 की एक और विशेषता उसके चौथे और अंतिम ईंधन चरण की भूमिका है. दो उपग्रहों को निर्धारित कक्षा में स्थापित करने के बाद यह प्रक्षेपण यान आगे गोलाकार कक्षा में जायेगा और अंतरिक्ष में अनुसंधान के लिए नया मंच तैयार करेगा.
यह प्रक्षेपण अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत के लगातार बढ़ रहे दबदबे का नमूना है. छात्रों द्वारा बनाए गए सैटेलाइट कलामसैट इतना छोटा है कि इसे 'फेम्टो' की श्रेणी में रखा गया है. इसरो ने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के तर्ज पर एक कार्यक्रम शुरू किया. तीन-तीन छात्रों का चयन कर उन्हें एक महीने के लिए अपनी प्रयोगशालाओं में काम करने का मौका दिया. जिन्होंने कलामसैट बनाया.