असम: ब्रह्मपुत्र नदी के नीचे बनेगी देश की पहली अंडर वॉटर टनल, केंद्र सरकार ने सैद्धांतिक रूप से दी मंजूरी
राज्य में ब्रह्मपुत्र नदी के नीचे 14.85 किलोमीटर लंबी अंडर वॉटर टनल यानी पानी के नीचे सुरंग बनने जा रही है. देश में नदी के नीचे बनने वाली यह पहली सुरंग होगी. केंद्र सरकार ने ब्रह्मपुत्र नदी के नीचे देश की पहली अंडर वाटर सुरंग को सैद्धांतिक रूप से मंजूरी प्रदान की है. यह सुरंग नदी के नीचे बनने वाली सबसे लंबी और पहली सुरंग होगी.
असम, 16 जुलाई: राज्य में ब्रह्मपुत्र नदी (Brahmaputra River) के नीचे 14.85 किलोमीटर लंबी अंडर वॉटर टनल यानी पानी के नीचे सुरंग बनने जा रही है. देश में नदी के नीचे बनने वाली यह पहली सुरंग होगी. केंद्र सरकार ने ब्रह्मपुत्र नदी के नीचे देश की पहली अंडर वाटर सुरंग को सैद्धांतिक रूप से मंजूरी प्रदान की है. यह सुरंग नदी के नीचे बनने वाली सबसे लंबी और पहली सुरंग होगी. दरअसल बीते मार्च महीने में केंद्र सरकार ने आपातकालीन समय में भारतीय सेना को अस्त्र-शास्त्र लाने की सुविधा के लिए लंबी सुरंग बनाने के निर्माण प्रकल्प को मंजूरी दी. आगामी दिसम्बर महीने से इस प्रकल्प का काम शुरू करने का निर्देश दिया गया है.
आधुनिक पद्धति द्वारा निर्मित होने वाले इस सुरंग को वेंटिलेशन, अग्निशमन की सुविधा, ताजी हवा के लिए वेंटीलेशन सिस्टम, लाइट की व्यवस्था और इमरजेंसी एग्जिट की सुविधाएं भी बनाई जाएगी. चीन से सुरक्षा के मद्देनजर ब्रह्मपुत्र नदी के नीचे गोहपुर से नुमालीगढ़ शहर को जोड़ने वाले इस चार लेन युक्त सुरंग से सिर्फ सुरक्षा के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि पूरे राज्य के इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास में नया कदम साबित होगा.
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ब्रह्मपुत्र नदी के एक कोने से दूसरे कोनो को जोड़ने का मतलब है समय और पैसे की बचत. इस सुरंग का फायदा भी ठीक उसी तर पहुंचेगा, जिस तरह राष्ट्रीय जलमार्ग 2 की स्थापना के बाद लोगों को पहुंचा. राष्ट्रीय जलमार्ग-2 ब्रह्मपु्त्र नदी पर ही है, जिसपर पांडु पोर्ट एक फिक्स्ड टर्मिनल है और 9 फ्लोटिंग टर्मिनल हैं.
दिसंबर 2017 में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) ने 400 टन तक सीमेंट को पहुंचाने में सक्षम दो माल ढोने वाली नौकाओं को हरी झंडी दी थी, जिसके बाद से पांडु पोर्ट से ढुबरी पोर्ट तक की कुल यात्रा में 300 किलोमीटर की सड़क यात्रा में कमी आयी. जाहिर है इस अंडरवॉटर टनल के बनने के बाद असम के कई जिलों तक जाने वाले मार्ग की लंबाई कम हो जाएगी, जिससे समय के साथ-साथ ईंधन की बचत होगी.