भारत: क्या खनन से राज्य भी कमा सकते हैं रॉयल्टी
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि राज्य सरकारें भी उनके क्षेत्र में हो रहे खनन से रॉयल्टी कमा सकती हैं. अब अदालत ने और स्पष्ट करते हुए कहा है कि फैसला अप्रैल 2005 के बाद से हुए सभी लेनदेन पर लागू होगा.सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की एक पीठ ने 25 जुलाई को दिए एक फैसले में कहा था कि राज्य सरकारों को उनके इलाके में होने वाली खनन गतिविधियों पर टैक्स लेने का अधिकार है. पीठ ने बुधवार, 14 अगस्त को इस मामले में और स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि राज्यों के इस अधिकार पर फैसला अप्रैल 2005 से लागू होगा.

नौ जजों की पीठ ने कहा कि टैक्स की मांग के भुगतान का समय 1 अप्रैल 2026 से शुरू होगा और भुगतान की राशि को 12 सालों में किस्तों में बांटा जाएगा. साथ ही, 25 जुलाई 2024 को या उससे पहले लगाए गए ब्याज और जुर्माने की मांग को माफ कर दिया जाएगा.

क्या है मामला

यह मामला मूल रूप से 35 साल पुराना है. 1989 में सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की एक पीठ ने फैसला दिया था कि राज्यों के पास रॉयल्टी लेने की शक्ति तो है, लेकिन खनन गतिविधियों पर टैक्स लगाने की शक्ति नहीं है.

अदालत ने यह भी कहा था कि यह शक्ति सिर्फ केंद्र सरकार के पास है. फिर 2004 में एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की एक पीठ ने कहा कि 1989 में दिए गए फैसले में टाइपिंग की एक गलती थी और उसमें "रॉयल्टी एक टैक्स है" को "रॉयल्टी पर उपकर (सेस) एक टैक्स है" पढ़ा जाना चाहिए. 1989 वाला मामला मूल रूप से उपकर या सेस का मामला था.

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यहां एक तकनीकी पेच था. साल 2004 वाली पीठ 1989 वाली पीठ से छोटी थी. ऐसे में वह पुराने फैसले को पलट नहीं सकती थी. 2011 में इसी तरह के सेस से जुड़े एक मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ही इस मसले को अंतिम समाधान के लिए नौ जजों की एक पीठ के पास भेज दिया.

जुलाई में नौ जजों की पीठ ने बहुमत से कहा कि रॉयल्टी, टैक्स नहीं होती है. फैसले का दूसरा बिंदु था यह तय करना कि राज्यों को खनन गतिविधियों पर कर लगाने की शक्ति है या नहीं. पीठ ने स्पष्ट कहा कि यह शक्ति राज्यों की विधायिकाओं के पास है.

खनन, ऊर्जा और इस्पात कंपनियों की चिंता

ऐसा कहा जा रहा है कि इस फैसले का खनन क्षेत्र पर काफी गहरा असर पड़ सकता है. राज्य सरकारों के लिए तो कमाई के रास्ते खुल गए हैं, लेकिन मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक खनन, इस्पात, ऊर्जा और कोयला जैसे क्षेत्रों में काम करने वाली कंपनियां चिंता में पड़ गई हैं.

इकोनॉमिक टाइम्स की एक खबर के मुताबिक, इस फैसले की वजह से 1.5 लाख से दो लाख करोड़ रुपयों तक की बकाया राशि खड़ी हो गई है, जो इन कंपनियों को राज्य सरकारों को चुकानी होगी. अचानक इतनी बड़ी राशि जुटाना कंपनियों के लिए आसान नहीं होगा.

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कई जानकारों की राय में, शायद इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शेयर बाजार में धातुओं की कुछ कंपनियों के शेयरों के दाम भी गिर गए. इनमें सरकारी और निजी दोनों कंपनियां शामिल हैं.

इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक, फेडरेशन ऑफ इंडियन मिनरल इंडस्ट्रीज (फीमी) ने भी एक बयान जारी कर इसपर चिंता जताई है. फीमी ने कहा है कि भारतीय खनन क्षेत्र पहले ही दुनिया में सबसे ऊंची टैक्स दरों का सामना कर रहा है. अब इस ताजा फैसले का क्षेत्र पर काफी गंभीर असर पड़ेगा.

भारत सरकार ने भी पीठ से अपील की थी कि वो 1989 से रॉयल्टी के रिफंड की राज्य सरकारों की मांग मंजूर ना करे क्योंकि ऐसा करने से सरकारी कंपनियों को 70,000 करोड़ रुपए तक का भुगतान करना पड़ सकता है. लेकिन पीठ ने इस रिफंड की इजाजत दे दी है. कंपनियों को थोड़ी राहत देने के लिए बकाया राशि के भुगतान के लिए 12 साल का समय दिया है.