Tamil Nadu: जल्लीकट्टू में पशु और मनुष्य दोनों को चोट लगती है, क्रूरता की अनुमति नहीं दी जा सकती: सुप्रीम कोर्ट में बोले याचिकाकर्ता
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नई दिल्ली, 24 नवंबर: सुप्रीम कोर्ट में कुछ याचिकाकर्ताओं ने बृहस्पतिवार को कहा कि जल्लीकट्टू में पशुओं और मनुष्यों को चोट लगती है और यहां तक कि मृत्यु भी हो जाती है और क्रूरता वाली ऐसी चीज को अनुमति नहीं दी जा सकती. Snake Venom: 17 करोड़ रुपये का सांप का जहर बरामद, बांग्लादेश से तस्करी कर लाया जा रहा था भारत

जल्लीकट्टू या इरुथाझुवुथाल तमिलनाडु में पोंगल के समय आयोजित होता है जिसमें बेकाबू साड़ों को काबू में करने का प्रयास किया जाता है. जल्लीकट्टू को अनुमति देने वाले तमिलनाडु के एक कानून को चुनौती देने वाले कुछ याचिकाकर्ताओं ने अदालत में दलील दी कि लगातार क्रूरता की अनुमति नहीं दी जा सकती और ऐसा प्रावधान नहीं हो सकता जो पशु क्रूरता रोकथाम अधिनियम जैसे किसी कानून के उद्देश्य को पराजित करता हो.

न्यायमूर्ति के एम जोसफ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ को अनुमति देने के तमिलनाडु तथा महाराष्ट्र के कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दलीलें सुनना शुरू किया.

शीर्ष अदालत में दाखिल तीन अलग-अलग याचिकाओं में याचिकाकर्ताओं का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने कहा, ‘‘पहला विषय है कि विधेयक का उद्देश्य क्या था.’’ पीठ ने सुनवाई के दौरान मुक्केबाजी और तलवारबाजी जैसे खेलों का जिक्र किया जिनमें चोट लग सकती है.

लूथरा ने कहा कि यह पसंद और नापसंद का मामला है.

उन्होंने कहा, ‘‘जब आप जानते हुए किसी खेल में जाते हैं, वह स्क्वैश जैसा कोई खेल हो सकता है, उसमें चोट लगने की संभावना होती है लेकिन आपने सोच-समझकर उसे चुना है.’’ पीठ ने कहा, ‘‘अगर पशु पसंद नहीं तय कर सकते तो क्या उन्हें आजादी है?’’

लूथरा ने कहा कि वास्तविकता यह है कि जल्लीकट्टू में पशु घायल होते हैं और मौत भी हो जाती है.

सुनवाई 29 तक चलेगी जिसमें दलीलें रखते हुए लूथरा ने कहा, ‘‘आदमियों के हताहत होने के भी मामले आते हैं और साल दर साल इस तरह की खबरें आती हैं कि पशुओं और मुनष्यों के घायल होने के मामले बढ़े हैं.’’

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