COVID-19 के अलग-अलग वेरिएंट्स शरीर पर कैसे असर डालते हैं? IIT-इंदौर की स्टडी में हुआ खुलासा
यह स्टडी ‘Journal of Proteome Research’ में प्रकाशित हुई है और इसमें भारत की पहली और दूसरी लहर के दौरान 3,134 मरीजों का क्लिनिकल डाटा जांचा गया. इस अध्ययन के नतीजे ‘लॉन्ग कोविड’ के लक्षणों को समझने में मदद कर सकते हैं.
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) इंदौर और IIIT इलाहाबाद के शोधकर्ताओं ने मिलकर एक अहम रिसर्च की है, जिससे यह समझने में मदद मिली है कि COVID-19 के विभिन्न वेरिएंट्स इंसानी शरीर पर कैसे असर डालते हैं. यह स्टडी ‘Journal of Proteome Research’ में प्रकाशित हुई है और इसमें भारत की पहली और दूसरी लहर के दौरान 3,134 मरीजों का क्लिनिकल डाटा जांचा गया. इस अध्ययन के नतीजे ‘लॉन्ग कोविड’ के लक्षणों को समझने में मदद कर सकते हैं, जिसमें मरीज संक्रमण के कई महीनों बाद भी थकान, सांस की तकलीफ और मानसिक भ्रम जैसी समस्याओं का सामना करते हैं.
शोधकर्ताओं का मानना है कि ये लक्षण वेरिएंट्स द्वारा शरीर के अंदर किए गए गहरे बदलावों का नतीजा हो सकते हैं.
शरीर के अंदर क्या होता है कोविड के दौरान?
इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने बताया कि हर वेरिएंट शरीर के अंदर अलग बायोलॉजिकल सिस्टम को प्रभावित करता है. कुछ वेरिएंट्स प्रतिरक्षा तंत्र (इम्यून सिस्टम) को कमजोर करते हैं, तो कुछ हार्मोनल और मेटाबोलिक सिस्टम पर गहरा असर डालते हैं. शोध में मल्टी-ओमिक्स, रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी और मशीन लर्निंग जैसी उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किया गया, जिससे 9 बायोलॉजिकल मार्कर पहचाने गए जो बीमारी की गंभीरता से जुड़े हुए हैं.
डेल्टा वेरिएंट: सबसे गंभीर असर डालने वाला वेरिएंट
इस स्टडी में डेल्टा वेरिएंट को सबसे खतरनाक पाया गया. यह वेरिएंट सीधे शरीर की ऊर्जा उत्पादन प्रणाली (मेटाबोलिक पाथवे) और हार्मोन नियंत्रण पर हमला करता है. इसका मतलब है कि मरीजों को ज्यादा थकान, हार्मोनल असंतुलन, और लंबे समय तक चलने वाले लक्षण महसूस हो सकते हैं.
IIT इंदौर के डॉ. हेम चंद्र झा ने कहा कि हर वेरिएंट का शरीर में असर अलग होता है, और डेल्टा ने सबसे ज्यादा असंतुलन पैदा किया.
IIT और IIIT की शानदार साझेदारी
इस रिसर्च को सफल बनाने में दो प्रमुख संस्थानों का योगदान रहा IIT इंदौर की टीम ने बायोलॉजिकल बदलावों को मैप किया. जबकि IIIT इलाहाबाद की टीम ने मरीजों के डाटा का विश्लेषण किया. इस सहयोग से पहली बार यह संभव हुआ कि कोविड-19 को सूक्ष्म जैविक स्तर (मॉलिक्यूलर लेवल) पर समझा जा सके.
भविष्य की स्वास्थ्य नीतियों में अहम भूमिका
IIT इंदौर के डायरेक्टर प्रो. सुहास एस. जोशी ने कहा कि इस तरह की रिसर्च से वैज्ञानिक समझ में तो बढ़ोतरी होती ही है, साथ ही भविष्य की स्वास्थ्य नीतियों और इलाज की रणनीतियों को बेहतर बनाने में भी मदद मिलती है.
यह स्टडी हमें यह समझने में मदद करती है कि कोविड सिर्फ एक संक्रमण नहीं, बल्कि शरीर के कई सिस्टम्स पर असर डालने वाली जटिल बीमारी है. हर नया वेरिएंट एक नया खतरा और नई चुनौती लेकर आता है, और इस शोध से हमें बेहतर तैयारी करने का मौका मिलेगा.