मुंबई: 14 सितंबर को भारत में हिंदी दिवस मनाया जाता है. हिंदी दिवस के लिए इस तारीख को इसलिए चुना गया क्यों कि 1949 में इसी दिन संविधान सभा ने हिंंदी को भारत की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया, और 26 जनवरी 1950 को पहले गणतंत्र दिवस के दिन इस पर मुहर लगाईं गई. संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत हिंदी को सरकारी कामकाज की भाषा की मान्यता दी गई. इस महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने और हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है.
भारत की आधिकारिक भाषा (अंग्रेजी के अतिरिक्त) होने के बाद भी हिंदी का स्तर उतना नहीं है जितना हिंदी प्रेमी चाहतें हैं. कारोबार जगत की बात करें तो यहां हिंदी कहीं भी अस्तित्व में नजर नहीं आती है, हर जगह अंग्रेजी का साम्राज्य ही देखने को मिलता है.
देश में हिंदी की दशा किसी से छुपी नहीं हैं, आलम यह है कि हिंदी न आना कोई दुख की बात नहीं है आपको अंग्रेजी आनी चाहिए बस. शायद यही कारण है जिसे देखते हुए हिंदी भाषा को याद करने के लिए एक दिन निर्धारित है. यह भी पढ़ें- संस्कृत दिवस विशेष: इस प्राचीनतम और समृद्धतम भाषा को नासा ने भी माना विज्ञान का आधार
सच तो यह है कि जितनी शिद्धत से सरकार और नेता हिंदी दिवस पर भाषणों की लडियां लगाते हैं उतनी शिद्धत से काम नहीं होता है. कई हिंदी प्रेमियों द्वारा तो हिंदी दिवस को गलत भी बताया गया है, उनके अनुसार यह दिन हिंदी की दुर्दशा को दिखाता है, हिंदी को एक अबला भाषा के रूप में प्रकट करता है. हिंदी दिवस को हिंदी की स्थिति पर आंसू बहाने के लिए बनाया गया है जो कि उचित नहीं है.
हिंदी पर भारी पड़ती अंग्रेजी की मार
भारत की तीन-चौथाई आबादी हिंदी बोलती और समझती है, इसके बावजूद हिंदी का स्तर वो नहीं है जितना कि इतनी अधिक बोली जाने वाली किसी भाषा का होना चाहिए था. इसका सीधा कारण यही है कि कामकाजी भाषा के रूप में हिंदी को अस्तित्व प्राप्त नहीं हैं. कामकाज और कारोबार जगत में शून्य से शिखर तक अंग्रेजी का ही दबदबा है. हिंदी स्कूल भी अंग्रेजी की चाहत में अब पिछड़ते जा रहें हैं. हिंदी निश्चित ही व्यक्तित्व को श्रेष्ठ बनाती है पर व्यावसायिक और कामकाजी भाषा न होने के कारण इसका अस्तित्व वर्तमान में खोता जा रहा है.