Hijab Row: कर्नाटक HC में याचिकाकर्ताओं ने कहा- सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने की आड़ में मौलिक अधिकारों को प्रतिबंधित नहीं कर सकते

हिजाब पहनने की अनुमति मांगने वाली छात्राओं के वकील ने सोमवार को कर्नाटक हाईकोर्ट में कहा कि सरकार सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने की आड़ में मौलिक अधिकारों को प्रतिबंधित नहीं कर सकती है

Hijab Row: हिजाब पहनने की अनुमति मांगने वाली छात्राओं के वकील ने सोमवार को कर्नाटक हाईकोर्ट(Karnataka High Court) में कहा कि सरकार सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने की आड़ में मौलिक अधिकारों को प्रतिबंधित नहीं कर सकती है. इस बीच, हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई की र्पिोटिंग से मीडिया को रोकने के लिए हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. दरअसल बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि हिजाब मामले का उन राज्यों में मतदान पर असर पड़ेगा जहां चुनाव चल रहे हैं. मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी ने कहा कि हम लाइव स्ट्रीमिंग बंद कर सकते हैं और वही हमारे हाथ में है. हम मीडिया को नहीं रोक सकते.

सोमवार को सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने मुख्य न्यायाधीश अवस्थी, न्यायमूर्ति कृष्ण एस. दीक्षित और न्यायमूर्ति खाजी जयबुन्नेसा मोहियुद्दीन की पीठ को बताया कि कॉलेज विकास समिति (सीडीसी) के पास वर्दी पर नियम बनाने के लिए कोई कानूनी वैधानिक आधार नहीं है. उन्होंने तर्क देते हुए कहा, "इस संबंध में सरकार का निर्णय बुद्धि की कमी को दर्शाता है और समिति का नेतृत्व करने वाला एक विधायक मौलिक अधिकारों पर फैसला करेगा.  हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाना कानूनी नहीं है. यह भी पढ़े: Hijab Row: हिजाब मामले के बीच उडुपी जिले में लगाई गई धारा 144, 14 से 19 फरवरी तक लागू

कामत ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा चलाए जा रहे सभी केंद्रीय स्कूल हिजाब पहनने की अनुमति दे रहे हैं और याचिकाकर्ता लंबे समय से उसी रंग का हिजाब पहन रहे हैं, जैसी स्कूलों की वर्दी है. उन्होंने कहा, "राज्य ने अपने सकरुलर में सार्वजनिक व्यवस्था का हवाला देते हुए एक घातक गलती की है। सरकार द्वारा उद्धृत आदेश में अनुच्छेद 21 का भी उल्लेख नहीं है, जिसके आधार पर हिजाब को प्रतिबंधित करने वाला सकरुलर जारी किया गया है.

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कामत ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष कहा कि हिजाब पर प्रतिबंध को लेकर दिया गया सरकारी आदेश दिमाग का गैर-उपयोग है. उनका कहना है कि यह सरकारी आदेश अनुच्छेद 25 के तहत है और यह कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है। हिजाब की अनुमति है या नहीं, यह तय करने के लिए कॉलेज कमेटी का प्रतिनिधिमंडल पूरी तरह से अवैध है.

बहस के दौरान कामत ने कहा कि जहां तक मुख्य धार्मिक प्रथाओं का संबंध है, वे अनुच्छेद 25(1) से आते हैं और यह पूर्ण नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर मूल धार्मिक प्रथाएं सार्वजनिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचाती हैं या ठेस पहुंचाती हैं तो इसे नियंत्रित किया जा सकता है.

उन्होंने कहा, सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखना राज्य की एक निहित जिम्मेदारी है और वह अधिकारों से इनकार नहीं कर सकता है. एडवोकेट कामत ने दलील दी कि बेंच को छात्रों को वर्दी जैसे रंग के हिजाब पहनने की अनुमति देनी चाहिए. इसके बाद पीठ ने मामले को मंगलवार तक के लिए स्थगित कर दिया.

पीठ ने पिछले हफ्ते एक अंतरिम आदेश दिया था कि स्कूलों और कॉलेजों में छात्रों के लिए अदालत के अंतिम आदेश तक किसी भी धार्मिक प्रतीक की अनुमति नहीं है. इस अंतरिम आदेश के बाद स्कूल और कॉलेज परिसर में हिजाब और भगवा शॉल दोनों के उपयोग पर रोक है.

हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने अंतरिम आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, लेकिन याचिकाकर्ताओं द्वारा तत्काल सुनवाई की मांग को खारिज कर दिया और कहा कि वह केवल उचित समय पर हस्तक्षेप करेगा. राज्य सरकार ने 10वीं कक्षा तक स्कूलों को फिर से खोल दिया है और उम्मीद है कि जल्द ही कॉलेजों को फिर से खोलने पर विचार किया जाएगा.

उडुपी प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में पिछले महीने छह छात्राओं द्वारा हिजाब पहनकर कक्षा में प्रवेश करने से रोक दिया गया था, जिसके बाद इस मुद्दे ने तूल पकड़ लिया और अब इस पर विवाद बढ़ता जा रहा है. इस मुद्दे ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान आकर्षित किया है.

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