बेंगलुरु, 23 सितम्बर: कर्नाटक (Karnataka) उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता द्वारा स्ट्रीट लाइट पर दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) को रद्द करने के संबंध में पीठ को चुनौती देने के लिए एक याचिकाकर्ता पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया है. अदालत ने पाया कि याचिका दुश्मनी के इरादे से दायर की गई थी. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने बुधवार को यह आदेश दिया. अदालत ने याचिकाकर्ता एडवोकेट रमेश एल. नाइक को 30 दिनों के भीतर कर्नाटक एडवोकेट क्लर्क्स वेलफेयर एसोसिएशन फंड में जुर्माना राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया है. यह भी पढ़े: OP Jindal Global University दुनिया के शीर्ष 500 विश्वविद्यालयों में शामिल
याचिकाकर्ता ने बेंगलुरु-तुमकुर राष्ट्रीय राजमार्ग के 32 किलोमीटर के हिस्से पर स्ट्रीट लाइट लगाने के संबंध में एक जनहित याचिका दायर की थी. पीठ ने याचिकाकर्ता से सवाल किया था कि हाईवे पर स्ट्रीट लाइट लगाना कैसे संभव है और यह भी सवाल किया कि कौन सा कानून कहता है कि हाईवे पर स्ट्रीट लाइट लगाई जानी चाहिए. याचिकाकर्ता ने कहा कि जेएएसएस टोल रोड कंपनी लिमिटेड को 18 साल के लिए राजमार्ग के रखरखाव के लिए निविदा दी गई है और समझौते में इस पहलू का उल्लेख किया गया है. उन्होंने पीठ को सूचित किया था कि वह समझौते की प्रति अदालत को उपलब्ध कराएंगे. पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने राजमार्ग में स्ट्रीट लाइट लगाने के संबंध में संबंधित दिशा-निर्देश प्रस्तुत नहीं किए हैं. इसके अलावा, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता ने अदालत को प्रस्तुत किया है कि ऐसा कोई कानूनी प्रावधान नहीं है जो कहता है कि राजमार्गों पर स्ट्रीट लाइट लगाना अनिवार्य है.
पीठ ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता ने टोल शुल्क के भुगतान से रियायत मांगी थी। याचिकाकर्ता ने शिकायत भी दर्ज कराई थी कि टोल कंपनी के कर्मचारियों ने 20 रुपये टोल शुल्क देने के मामले में उसके साथ मारपीट की थी. पीठ ने यह भी कहा कि याचिका दुश्मनी के इरादे से दायर की गई थी और इसमें कोई जनहित नहीं था. पीठ ने याचिका खारिज करते हुए 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया. याचिकाकर्ता ने इस स्तर पर अदालत में प्रस्तुत किया कि उसने अपने स्वार्थ के साथ याचिका दायर नहीं की थी और इसे जनता के हित में दायर किया गया था. उसने अदालत से यह भी कहा कि वह जांच का सामना करने के लिए तैयार है और अगर यह साबित हो जाता है कि उसने स्वयं के हित में याचिका दायर की है तो वह 25,000 रुपये के बजाय 50,000 रुपये का जुर्माना अदा करेगा. पीठ ने एक और आदेश दिया कि चूंकि याचिकाकर्ता खुद 50,000 रुपये का जुर्माना देने के लिए सहमत हो गया है, इसलिए जुर्माना राशि 25,000 रुपये से बढ़ाकर 50,000 रुपये कर दी गई है और याचिका खारिज कर दी गई है.