चढ़ा रहता है राज्यपाल आरिफ का पारा, पर सीएम विजयन कहते हैं 'यह केरल है'
Pinarayi Vijayan

तिरुवनंतपुरम, 23 अक्टूबर : एथु केरलम आनू (यह केरल है) वह शब्द है, जिसका इस्तेमाल मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन बार-बार करते हैं, अधिकतर उस समय जब वह केंद्र सरकार या राज्य के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान पर जबानी हमला करना चाहते हैं. नए मुख्यमंत्री के रूप में 2016 में सत्ता संभालने के बाद से विजयन के लिए चीजें 2019 में भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा आरिफ मोहम्मद खान को राज्यपाल नियुक्त किए जाने तक ठीक थीं. एक अनुभवी राजनेता के रूप में 70 वर्षीय खान ने थोड़े समय में ही अपने मिलनसार और मैत्रीपूर्ण व्यवहार से केरलवासियों का दिल जीत लिया. लेकिन दो साल पहले खान की भौंहें उस समय तन गईं जब उन्होंने राज्य सरकार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी न करने की नसीहत दी. हालांकि बाद में उन्होंने अपना रुख बदल लिया.

वह नागरिकता संशोधन अधिनियम पर विजयन सरकार के रुख के खिलाफ अड़े थे और तब से खान के साथ राज्य सरकार के विवादों की एक प्रक्रिया चल पड़ी. उन्हें कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ की जगह प्रमुख 'विपक्षी दल' होने का टैग मिल गया. फिर कन्नूर विश्वविद्यालय के कुलपति गोपीनाथ रवींद्रन की पुनर्नियुक्ति का मुद्दा आया. खान ने चुपचाप पुनर्नियुक्ति पर हस्ताक्षर कर दिया. इसके बाद उन्होंने उसी विश्वविद्यालय में मुख्यमंत्री विजयन के निजी सचिव के.के. रागेश की पत्नी प्रिया वर्गीज की नियुक्ति को झटका दिया. जब केरल उच्च न्यायालय ने भी उनके कदम को उचित ठहराया तो खान को विजयन सरकार के साथ अपने विवाद में बढ़त मिल गई. यह भी पढ़ें : Andra Pradesh: आंध्र प्रदेश में पटाखों की दुकान में आग लगने से दो की मौत

इस बीच उन्होंने निजी स्टाफ सदस्यों की नियुक्ति के तरीके पर तीखा प्रहार किया. उन्होंने मामले में सख्त कार्रवाई की बात कही, लेकिन अभी तक कुछ भी नहीं हुआ. चीजें तब और बिगड़ गईं जब उन्होंने लोकायुक्त अध्यादेश के विवादास्पद संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया, इससे विजयन को विधायिका की विशेष बैठक बुलाने के लिए मजबूर होना पड़ा. वर्तमान में विधेयक खान के पास ही है. हाल ही में खान ने केरल विश्वविद्यालय के सीनेट के 15 मनोनीत सदस्यों को उस समय बर्खास्त कर दिया, जब सदस्यों ने चेतावनी के बावजूद सीनेट की एक महत्वपूर्ण बैठक में भाग नहीं लिया.

खान ने राज्य के मंत्रियों को उनके बारे में अपमानजनक बात नहीं करने की चेतावनी दी और धमकी दी कि इससे उनकी 'खुशी' खत्म हो सकती है. इसका स्पष्ट अर्थ है कि अगर वे आचरण में बदलाव नहीं करेंगे तो उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर किया जा सकता है. हालांकि विजयन मौन रहे, लेकिन सप्ताह की शुरुआत में उन्होंने कहा कि संविधान में मंत्रियों की भांति ही राज्यपाल के अधिकारों, जिम्मेदारियों और कर्तव्यों का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है. देश के संविधान निर्माता बीआर अंबेडकर ने भी कहा है कि राज्यपाल की शक्तियां बहुत संकीर्ण हैं और शीर्ष अदालत ने भी स्पष्ट किया है कि राज्यपाल को कैबिनेट के निदेशरें के अनुसार काम करना चाहिए.

मुख्यमंत्री विजयन ने कहा कि संविधान में सब सब के अधिकारों व कर्तव्योंे के बारे में स्पष्ट रूप से लिखा गया है. खान द्वारा केरल विश्वविद्यालय के सीनेट के 15 सदस्यों को बर्खास्त करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि वह अवैध है, मामले में प्राकृतिक न्याय के सामान्य सिद्धांत का भी पालन नहीं किया गया. लेकिन विजयन के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी राज्य कांग्रेस अध्यक्ष के. सुधाकरन ने कहा कि खान द्वारा उठाया गया कदम सही है. राज्य भाजपा अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने भी बिना मौका गंवाए कहा कि भाजपा खान का बचाव करेगी, क्योंकि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है.