Vande Mataram controversy: 'हर कोई यह दिखाना चाहता है कि उनका धर्म और ईश्वर सर्वोच्च हैं', वंदे मातरम विवाद पर बॉम्बे हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी
Bombay High Court | PTI

Vande Mataram controversy: बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने मुसलमानों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में एक सैन्यकर्मी और एक डॉक्टर के खिलाफ दर्ज मुकदमें को खारिज कर दिया है. लाइव लॉ.डॉट इन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, शिकायतकर्ता ने अपनी याचिका में कहा था कि एक वॉट्सग्रुप में कुछ लोगों द्वारा उनसे वंदे मातरम कहने के लिए कहा गया था. ऐसा नहीं करने पर उन्हें पाकिस्तान चले जाने की बात कहकर अपमानित किया गया. मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस  विभा कंकनवाड़ी और वृषाली जोशी की खंडपीठ ने कहा कि हम यह देखने के लिए बाध्य हैं कि आजकल लोग अपने धर्मों के प्रति अधिक संवेदनशील हो गए हैं, शायद पहले से भी अधिक. हर कोई यह बताना चाहता है कि उसका धर्म या ईश्वर सर्वोच्च है.

''हम लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष देश में रह रहे हैं, जहां हर किसी को दूसरे के धर्म, जाति, पंथ आदि का सम्मान करना चाहिए. हम यह भी कहेंगे कि अगर एक व्यक्ति कहता है कि उसका धर्म सर्वोच्च है, तो दूसरा व्यक्ति तुरंत प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए. ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर प्रतिक्रिया देने के लिए कई तरीके और साधन हैं''

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दरअसल, पीठ सेना के जवान प्रमोद शेंद्रे (41) और डा. सुभाष वाघे (47) की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. दोनों के खिलाफ 38 वर्षीय शाहबाज सिद्दीकी ने 3 अगस्त 2017 को शिकायत दर्ज कराई थी. शिकायतकर्ता का आरोप था कि वह 'नरखेड़ घडामोदी' नामक एक व्हाट्सएप ग्रुप में जुड़ा हुआ था, जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के करीब 200 लोग शामिल थे. इस ग्रुप में 'वंदे मातरम' का नारा न लगाने पर शेंद्रे और वाघे मुस्लिम धर्म के बारे में कुछ आपत्तिजनक टिप्पणी कर रहे थे. वह कह रहे थे कि जो वंदे मातरम का नारा नहीं लगा सकता, उसे भारत छोड़कर पाकिस्तान चले जाना चाहिए.

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि कहा कि वाट्सग्रुप में दोनों समुदायों के 150-200 सदस्य होने के बावजूद अभियोजन पक्ष ने केवल 4 मुस्लिम लड़कों के बयान दर्ज किए. इस बात की कोई जांच नहीं की गई कि ग्रुप  का एडमिन कौन था? इन चारों गवाहों में से किसी ने भी यह दावा नहीं किया कि वे एडमिन हैं. जब ऐसी गतिविधि चल रही थी, तो एडमिन का बयान बहुत महत्वपूर्ण था. ऐसे में हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि जब राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा होगी, तो निश्चित रूप से विचारों का गर्म आदान-प्रदान होगा और बहसबाजी होगी.