रांची, 1 दिसंबर : झारखंड में एचआईवी संक्रमितों की संख्या हर रोज बढ़ रही है. झारखंड स्टेट एड्स कंट्रोल सोसाइटी के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में हर रोज औसतन तीन से चार एचआईवी संक्रमितों की पहचान हो रही है. पूरे देश में 2010 से 2019 के बीच एचआईवी मरीजों की संख्या में जब तकरीबन 37 फीसदी की कमी दर्ज की गयी है, तब भी झारखंड में इस नेशनल ट्रेंड के ठीक उलट इन वर्षों में एचआईवी के मरीजों की संख्या 200 प्रतिशत से भी ज्यादा बढ़ गयी है. एचआईवी-एड्स मरीजों के इलाज और उनके पुनर्वास के लिए काम कर रही संस्थाओं द्वारा समय-समय पर जारी स्टडी रिपोर्ट की मानें तो राज्य में एचआईवी संक्रमण के 90 प्रतिशत से भी ज्यादा मामलों में यह पाया गया है कि रोजगार के सिलसिले में बाहर के प्रदेशों में लंबे समय तक रहने वाले लोग संक्रमण लेकर लौट रहे हैं. इनमें निम्न आय वर्ग के लोगों की संख्या ज्यादा है. ऐसे सैकड़ों केस हैं जिसमें ट्रक ड्राइवर और प्रवासी मजदूर बाहर से संक्रमण लेकर आये.
झारखंड में दिसंबर 2020 से अक्टूबर 2021 यानी पिछले दस महीनों के दौरान राज्य में 1221 नये एचआईवी संक्रमितों की पहचान की गयी है. हिसाब लगायें तो हर रोज औसतन चार नये संक्रमित मिल रहे हैं. एड्स कंट्रोल सोसायटी के आंकड़ों के अनुसार राज्य में दिसंबर 2020 तक 25,751 एचआईवी मरीजों की पहचान हुई थी, जो अक्टूबर 2021 तक बढ़कर 26,972 हो गयी है. इनमें पुरुषों की संख्या 16184 और महिलाओं की संख्या 10788 है. सबसे ज्यादा मरीज हजारीबाग जिले में हैं. यहां एचआईवी संक्रमितों की संख्या 3126 है. दूसरे नंबर पर जमशेदपुर है, जहां मरीजों की संख्या 1822. रांची में 1522 मरीजों की पहचान हुई है और मरीजों की संख्या के हिसाब से यह राज्य में तीसरे नंबर पर है. यह भी पढ़ें : ओमिक्रॉन से प्रभावित देशों के यात्रियों को मलेशिया में नहीं मिलेगी एंट्री, आगमन पर लगाया गया अस्थाई प्रतिबंध>
इलाज की बात करें तो राज्य में 13 एआरटी (एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी) सेंटर हैं, जहां आकर परामर्श और दवाइयां लेने वाले मरीजों की संख्या 12732 है. जाहिर है, बाकी मरीज या तो राज्य से बाहर चले गये हैं या सरकारी केंद्रों पर अपना इलाज नहीं करा रहे हैं. एआरटी केंद्रों में डॉक्टरों की संख्या कम होने से मरीजों को खासी परेशानी हो रही है. आलम यह है कि 13 में से 8 एआरटी केंद्रों पर डॉक्टर ही नहीं हैं. हालांकि एक बार जांच के बाद निर्धारित प्रोटोकॉल के हिसाब से इन्हें दवाइयां नियमित तौर पर मिल रही हैं. झारखंड एड्स कंट्रोल सोसाइटी का दावा है कि मरीजों की लगातार मॉनीटरिंग और काउंसलिंग की जा रही है. गर्भवती महिलाओं की एचआईवी जांच अनिवार्य तौर पर करायी जा रही है कि ताकि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं से बच्चों में एड्स के संक्रमण को रोका जा सके.
मरीजों को सरकार की योजनाओं का लाभ दिलाने की दिशा में लगातार प्रयास किये जा रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद जागरूकता की कमी से इसमें अड़चन आ रही है. झारखंड में 12,732 मरीजों में से सिर्फ 5,000 ने आयुष्मान कार्ड बनवाया है. 4 हजार को राज्य सुरक्षा पेंशन योजना का लाभ मिल रहा है. अंत्योदय अन्न योजना का लाभ सिर्फ 9 हजार लोग ले रहे हैं. अबतक सिर्फ 50 मरीजों ने मुफ्त विधिक सहायता ली है. एचआईवी संक्रमित 180 बच्चे अलग-अलग अनाथालयों में हैं. बताया जा रहा है कि ज्यादातर संक्रमित, योजनाओं का लाभ लेने के लिए खुलकर सामने नहीं आना चाहते हैं. बता दें कि बीते 15 नवंबर को झारखंड के स्थापना दिवस पर सरकार ने यूनिवर्सल पेंशन योजना शुरू की है. इसमें एचआईवी संक्रमितों को भी हर माह 1000 रुपये पेंशन दी जायेगी.