National Tribal Literature Festival 2022: राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव में देश के प्रख्यात साहित्यकारों ने की शिरकत
तीन दिवसीय राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव का आयोजन 19 अप्रैल से पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम रायपुर में किया जा रहा है. इसके साथ ही राज्य स्तरीय जनजातीय नृत्य महोत्सव और राज्य स्तरीय जनजातीय कला एवं चित्रकला प्रतियोगिता का शुभारंभ मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा किया गया.
रायपुर, 20 अप्रैल 2022: तीन दिवसीय राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव (National Tribal Literature Festival) का आयोजन 19 अप्रैल से पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम रायपुर (Raipur) में किया जा रहा है. इसके साथ ही राज्य स्तरीय जनजातीय नृत्य महोत्सव और राज्य स्तरीय जनजातीय कला एवं चित्रकला प्रतियोगिता का शुभारंभ मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल (CM Bhupesh Baghel) द्वारा किया गया. राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव के अंतर्गत प्रथम दिवस साहित्य परिचर्चा में देश के 20 प्रख्यात साहित्यकारों ने हिस्सा लिया और 23 शोधार्थियों में शोधपत्र का वाचन किया.
जनजातीय साहित्य पर प्रथम दिवस ‘भारत जनजाती भाषा एवं साहित्य का विकास एवं भविष्य’ और ‘भारत में जनजातीय विकास-मुद्दे, चुनौतियां एवं भविष्य’ विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया. इस सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर एस.जेड.एच. आबिदी ने की जबकि सहसत्र अध्यक्षता डॉ. मदन सिंह और डॉ. स्नेहलता नेगी ने की. रिर्पोटियर का आभार प्रदर्शन डॉ. रूपेन्द्र कवि द्वारा किया गया.
‘किनारे पर खड़े होकर देखी थी रवानी मौजों की, है आज उन्हीं के हाथ में सारी कहानी मौजों की’ - प्रो. एस.जेड.एच. आबिदी
साहित्य परिचर्चा पर वक्तव्य देते हुए सत्र के अध्यक्ष प्रोफेसर एस.जेड.एच. आबिदी ने कहा कि पहले जनजातीय समाज मुख्यधारा से बहुत दूर था, जबकि आज सरकार की लोक कल्याणकारी नीतियों के कारण यह मुख्यधारा के साथ कंधे से कंधा मिला रहा है. समाज के हर क्षेत्र में इनकी भागीदारी सशक्त हुई है. दूसरे शब्दों में जनजातीय समाज आज पहले की तुलना में अधिक सशक्त हुआ है. उन्होंने जनजातीय शोध के क्षेत्र में वेरियर ऐल्विन द्वारा रचित रचना द बैगा एंड मुरिया एंड देयर घोटुल एवं छत्तीसगढ़ के लोकगीतों का वर्णन भी किया. लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी विभाग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त प्रो. जैदी के मार्गदर्शन में 39 से अधिक शोधार्थियों ने पीएचडी की है. इनकी अंग्रेजी साहित्य में स्त्री एवं उलित और सशक्तिकरण मुख्य विषय रहा है.
साहित्य परिचर्चा में डॉ. मदन सिंह ने टंटिया मामा स्वतंत्रता सेनानी द्वारा स्वतंत्रता संग्राम में किये गये योगदान के विषय में अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया. डॉ. स्नेहलता नेगी ने जनजातीय बोली पर परिचर्चा प्रस्तुत की. श्री रूद्र नारायण पाणीग्रही ने बस्तर की बोलियों पर अपना वक्तव्य दिया. श्रीमती जोबा मुरमू ने संथाली बोली संस्कृति पर अपना व्याख्यान दिया. श्री बी.आर.साहू ने छत्तीसगढ़ की बोली व जनजातीय अस्मिता पर अपने विचार व्यक्त किए. इसके अलावा प्रो. पी. सुब्बाचारी, प्रो. रिवन्द्र प्रताप सिंह, प्रो. वरजिनियस खाखा, प्रो. सरत कुमार जेना, डॉ. विपीन जौजो, डॉ. सत्यरंजन महाकुंल, डॉ. रूपेन्द्र कवि सहित 20 वक्ताओं ने साहित्य परिचर्चा में अपने विचार व्यक्त किए. यह भी पढ़ें: Chhattisgarh: रायपुर में जनजातीय साहित्य महोत्सव की धूम, CM भूपेश बघेल का यह अंदाज जीत लेगा दिल- Video
शोधपत्र वाचन में 23 शोधपत्र पढ़े गये. इस सत्र की अध्यक्षता भाषा विज्ञानी श्री चितरंजन कर द्वारा की गई. सह अध्यक्षता श्री टी.के. वैष्णव ने की. रिर्पोटियर श्री अमर दास, श्रीमती दीपा शाइन द्वारा किया गया और आभार प्रदर्शन डॉ. अनिल विरूलकर ने किया. प्रथम दिवस के सत्र में ‘जनजातीय साहित्य: भाषा विज्ञान एवं अनुवाद, जनजातीय साहित्य में जनजातीय अस्मिता एवं जनजातीय साहित्य में जनजातीय जीवन का चित्रण’ एवं ‘जनजातीय समाजों में वाचिक परम्परा की प्रासंगिकता एवं जनजातीय साहित्य में अनेकता एवं चुनौतिया’ विषय पर शोधपत्र का वाचन किया गया.
शोधपत्र वाचन में प्रमुख रूप से आधारभूत व्याख्यान-गोंडी भाषा लिपियों का मानकीकरण पर डॉ.के.एम.मैत्री, वर्तमान परिदृश्य में भिलाला जनजातीय की लोक संस्कृति का बदलता स्वरूप समस्या एवं चुनौतियों पर डॉ. रेखा नागर, पूर्वोत्तर भारत की मिसिंग जनजातीय की भाषा, साहित्य एवं संस्कृति: एक अवलोकन पर डॉ. अभिजीत पायेंग, आदिवासी साहित्य में आदिवासी जनजीवन का चित्रण पर डॉ. प्रमोद कुमार शुक्ला और डॉ. प्रियांका शुक्ला, जनजातीय साहित्य संस्कृति में मानवीय मूल्यों का समीक्षात्मक अध्ययय पर गिरीश शास्त्रीय एवं डॉ. कुवंर सुरेन्द्र बहादुर ने शोधपत्र वाचन किया.
वहीं लोक भाषा हल्बी का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन पर डॉ. हितेश कुमार, आदिवासी साहित्य जीवन का सामाजित चित्रण पर डॉ. सुनीता पन्दो, विल्डरनेस इन द पब्लिक ऑय लाइफ ऑफ बस्तर टाइगर बॉय पर टाइटन बेलचंदन और सीमा दिल्लीवार, एक ‘बाइसन मुकुअ वाले माड़िया’ के जीवन में स्वदेशी किण्वित पेय पदार्थों का महत्व पर डी.डी. प्रसाद एवं बिंदू साहू, जंगल के फूल उपन्यास में अभिव्यक्त आदिवासी समाज के मानवीय मूल्य पर तरूण कुमार, गोंड़ो का जीवन दर्शन- कोया पुनेम (डॉ. किरण नुरूटी), बैगा जनजातीय का विवाह संस्कार पर धनीराम कडमिया बैगा आदि ने शोधपत्र का वाचन किया.
शोधपत्र वाचन एवं साहित्य पर परिचर्चा में सबसे प्रमुख बात यह है कि इसमें छत्तीसगढ़ राज्य के अलावा देश भर के प्रख्यात साहित्यकार, विभूतियां भागीदारी कर रही है। छत्तीसगढ़ राज्य में पहली बार राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है.