नई दिल्ली: आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 (Economic Survey 2021-22) में कहा गया है कि भारत (India) को ऊर्जा की ऊंची कीमतों पर आयातित मुद्रास्फीति (Imported Inflation) से सावधान रहने की जरूरत है. केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) द्वारा सोमवार को संसद (Parliament) में पेश किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में औसत हेडलाइन उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-संयुक्त (CPI-C) मुद्रास्फीति 2021-22 (अप्रैल-दिसंबर) से 5.2 प्रतिशत तक कम हो गई, जो वित्तवर्ष 2020-21 की इसी अवधि में 6.6 प्रतिशत और दिसंबर 2021 में 5.6 प्रतिशत दर्ज की गई थी. Economic Survey 2022: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पेश किया आर्थिक सर्वे, 8-8.5 फीसदी रह सकती है GDP ग्रोथ
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति सीमाबद्ध रही, क्योंकि सरकार द्वारा आपूर्ति प्रबंधन की प्रतिक्रिया के कारण खाद्य की कीमतों में काफी कमी आई. खाद्य मुद्रास्फीति वर्ष के दौरान 2.9 प्रतिशत (अप्रैल-दिसंबर) पर सौम्य रही, जबकि पिछली समान अवधि में यह 9.1 प्रतिशत थी.
"सब्जियों के मामले में प्याज और आलू की कीमतें नियंत्रण में रहीं, हालांकि प्रमुख उत्पादक राज्यों में बेमौसम बारिश के कारण सितंबर से नवंबर 2021 के दौरान टमाटर की खुदरा कीमतों में तेजी देखी गई."
हालांकि, दिसंबर में बाजार में ताजा आवक के साथ, टमाटर की खुदरा कीमतों में भी नरमी के संकेत मिल रहे हैं.
"जबकि सब्जियों के मामले में मौसम महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. बेमौसम बारिश जैसे झटके भी उनकी उपलब्धता और कीमतों पर प्रभाव डालते हैं. खराब होने वाली सब्जियों की कीमतों को स्थिर करने के लिए प्रभावी परिवहन और बुनियादी ढांचे द्वारा समर्थित शीत भंडारण श्रृंखलाओं के मजबूत नेटवर्क की जरूरत है."
कहा गया है, "प्रभावी आपूर्ति-पक्ष प्रबंधन ने वर्ष के दौरान अधिकांश आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रण में रखा."
सर्वेक्षण में कहा गया है कि दालों और खाद्य तेलों की कीमतों में वृद्धि को रोकने के लिए सक्रिय उपाय किए गए, जो इन वस्तुओं में आयातित मुद्रास्फीति के प्रभाव को दर्शाता है और उच्च मुद्रास्फीति की सूचना देते हैं. इसके अलावा, केंद्रीय उत्पाद शुल्क में कमी और बाद में अधिकांश राज्यों द्वारा वैट में कटौती से भी पेट्रोल और डीजल की कीमतों को कम करने में मदद मिली है.
सर्वेक्षण में आगे कहा गया है कि 'थोक मूल्य सूचकांक' (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित थोक मुद्रास्फीति, पिछले वित्तवर्ष के दौरान आर्थिक गतिविधियों के महामारी के कारण कमजोर होने, रिकॉर्ड कम वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों और कमजोर मांग के कारण बहुत सौम्य रही. बाद में 2021-22 (अप्रैल-दिसंबर) के दौरान मुद्रास्फीति तेजी से बढ़कर 12.5 प्रतिशत हो गई.
"ऐसा आर्थिक गतिविधियों में तेजी, कच्चे तेल और अन्य आयातित वस्तुओं की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में तेज वृद्धि और उच्च माल ढुलाई लागत के कारण हुआ."