भोपाल, 31 मई : मध्य प्रदेश में राज्यसभा की उम्मीदवारी को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने डबल सियासी स्ट्रोक चला है. पार्टी ने जहां महिला उम्मीदवारों को मौका दिया है, तो वहीं पिछड़े वर्ग और दलित वर्ग के हितैषी होने का सन्देश भी दिया है. मध्य प्रदेश की राजनीति में संभवत: पहली बार ऐसा हुआ है जब किसी राजनीतिक दल ने राज्यसभा की दो सीटों के लिए एक साथ महिला उम्मीदवारों को मौका दिया हो. राज्य में इन दिनों पिछड़ा वर्ग राजनीति की धुरी बने हुए हैं और दोनों ही दलों के लिए इस वर्ग का दिल जीतना चुनौती है. पिछड़े वर्ग की आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है और यह चुनावी दिशा तय करने में भी सक्षम है. वहीं अनुसूचित जाति वर्ग की आबादी 15 फीसदी से ज्यादा है.
भाजपा ने जातीय गणित के साथ आधी आबादी को साधने के लिए राज्यसभा की उम्मीदवारी के जरिए बड़ा दांव चला है. ओबीसी वर्ग से नाता रखने वाली और प्रदेश संगठन की महामंत्री कविता पाटीदार के अलावा दलित वर्ग की सुमित्रा वाल्मीकि को राज्यसभा के लिए नामांकित किया है. यह दोनों नाम सियासी गलियारे पर नजर रखने वालों के लिए भी चौंकाने वाले रहे हैं. यह दोनों महिला नेत्री संगठन में तो सक्रिय रही है मगर किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि वे राज्यसभा के उम्मीदवार भी बनाई जा सकती हैं. यह भी पढ़ें : ‘जबरन’ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के आरोपी पति के खिलाफ मामला खारिज करने से अदालत का इनकार
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो भाजपा अपने फैसलों के लिए न केवल पहचानी जाती है बल्कि लोगों को चौंकाने का भी काम करती है. ऐसा ही इस बार मध्य प्रदेश से राज्यसभा के उम्मीदवारों को लेकर हुआ है. कई बड़े दिग्गज राज्यसभा की उम्मीदवारी के लिए कतार में लगे हुए थे, मगर संगठन ने ऐसे लोगों पर दांव लगाना बेहतर समझा जो किसी गुट से नहीं आते. साथ ही यह संदेश गया है कि आम कार्यकर्ता भी बड़े पद पर पा सकता है. राज्यसभा की उम्मीदवारी का लाभ भाजपा पंचायत और नगरीय चुनाव में उठाने से भी नहीं चूकेगी. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने सुमित्रा वाल्मीकि को राज्य से राज्यसभा सदस्य का उम्मीदवार घोषित किए जाने पर बधाई और शुभकामनाएं दी हैं वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी सुमित्रा वाल्मीकि को बधाई दी है.
कांग्रेस भी भाजपा के राज्यसभा के उम्मीदवारों के चयन पर हैरान है. एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की षर्त पर कहा, भाजपा इसी तरह बाजी मार ले जाती है. कांग्रेस में कौन नेता किस गुट और किसका समर्थक है, यह योग्यता है, जबकि भाजपा जमीनी कार्यकर्ता पर दाव लगाती है. इसका लाभ पार्टी को मिलता है. भाजपा ने पिछड़ा और दलित वर्ग की महिलाओं को उम्मीदवार बनाकर इन दोनों वर्गों को संदेष दे दिया है, अब कांग्रेस के सामने समस्या है कि वह जबाव दे तो कैसे और किस आधार पर. कांग्रेस को भाजपा के सियासी कौषल से सीख लेना चाहिए.