लड़की ने प्राइवेट पार्ट में डाली मॉइस्चराइजर की बोतल, 2 दिन बाद डॉक्टरों ने निकाला बाहर

Bottle Stuck in intestine: कभी-कभी जिज्ञासा या अकेलेपन में इंसान कुछ ऐसे कदम उठा लेता है जो बेहद खतरनाक साबित हो सकते हैं. ऐसा ही एक मामला सामने आया जहां एक 27 साल की लड़की ने यौन सुख की चाह में मॉइस्चराइजर की एक बोतल अपने प्राइवेट पार्ट (गुदा) में डाल ली. लेकिन यह बोतल अंदर जाकर आंतों में बुरी तरह फंस गई.

क्या थी पूरी घटना?

लड़की ने जब देखा कि बोतल बाहर नहीं आ रही है तो वह घबरा गई. इसके बाद उसके पेट में तेज दर्द होने लगा और वह दो दिनों तक शौच भी नहीं जा पाई. जब हालत बिगड़ने लगी तो उसे एक प्राइवेट अस्पताल के इमरजेंसी वॉर्ड में भर्ती कराया गया.

पूछताछ करने पर उसने डॉक्टरों को पूरी बात बताई. उसने यह भी बताया कि वह पहले पास के एक अस्पताल गई थी, लेकिन वहां के डॉक्टर बोतल निकालने में कामयाब नहीं हो पाए. इसके बाद उसका एक्स-रे किया गया, जिसमें साफ दिखा कि बोतल प्राइवेट पार्ट के काफी ऊपरी हिस्से यानी आंतों में फंसी हुई है.

डॉक्टरों ने कैसे किया कमाल?

यह एक बहुत ही गंभीर स्थिति थी. सबसे बड़ा खतरा यह था कि अगर बोतल से आंत फट जाती तो लड़की की जान भी जा सकती थी. डॉक्टरों की एक टीम ने तुरंत बिना देर किए एक खास प्रक्रिया अपनाने का फैसला किया.

डॉक्टरों ने सर्जरी यानी पेट में चीरा लगाने के बजाय 'सिग्मॉइडोस्कोपी' (Sigmoidoscopy) नाम की एक आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया. इस तकनीक में एक पतली नली, जिसके आगे कैमरा लगा होता है, को प्राइवेट पार्ट के रास्ते अंदर डाला जाता है. इसी कैमरे की मदद से देखते हुए डॉक्टरों ने बड़ी सावधानी से बोतल को पकड़ा और बिना किसी कट के बाहर निकाल लिया.

इस एडवांस तरीके का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि लड़की के पेट या आंत में कोई चीर-फाड़ नहीं करनी पड़ी. इससे उसे दर्द भी कम हुआ और वह बहुत जल्दी ठीक भी हो गई. उसे अगले ही दिन अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.

डॉक्टरों का क्या कहना है?

डॉक्टरों ने बताया कि ऐसे मामलों में समय बहुत कीमती होता है. जितनी देर होती है, आंत फटने का खतरा उतना ही बढ़ जाता है. उन्होंने यह भी बताया कि एंडोस्कोपी और लैप्रोस्कोपी जैसी बिना चीर-फाड़ वाली तकनीकों से ऐसे मामलों को सुरक्षित तरीके से संभाला जा सकता है.

एक डॉक्टर ने यह भी कहा कि अक्सर ऐसे कदम उठाने वाले लोग अकेलेपन या किसी मानसिक परेशानी से जूझ रहे होते हैं. इसलिए इलाज के साथ-साथ उनकी काउंसलिंग और मानसिक सेहत का ध्यान रखना भी बहुत जरूरी है.