दिल्ली (Delhi) की अनाज मंडी स्थित एक कारखाने में लगी आग में मारे गए लोगों के परिजनों के दर्द ने समस्तीपुर (Samastipur) के हरपुर गांव में हिंदू (Hindu), मुसलमान जैसे शब्दों को बेमानी कर दिया है. सभी लोग इस मातम में एक-दूसरे के साथ हैं. इस हादसे में मारे गए सभी मुस्लिम परिवार (Muslim Family) के हैं, परंतु गांव के किसी भी हिंदू परिवार के घर में भी पिछले चार दिनों से चूल्हा नहीं जला है. इस भीषण अग्निकांड के बाद समस्तीपुर जिले के रहने वाले किसी ने अपना बेटा खोया तो किसी ने अपना पति तो किसी बच्चे ने अपने पिता को खो दिया है. जिले के सिंघिया थाना क्षेत्र के हरपुर और ब्रह्मपुरा गांव के कई घरों में अब तक घटना के बाद से खाना नहीं पका है. अब भी अपने को खो चुके लोगों के घरों से केवल चीख-पुकार ही सुनने को मिल रही है.
हरपुर गांव में मंगलवार रात 12 मृतकों के एक साथ शव पहुंचने के बाद हरपुर और सिंघियां गांव में एकबार फिर कई घरों में महिलाओं का चीत्कार सुनाई देने लगा. इस गांव के मरने वाले सभी मुस्लिम समाज के हैं, परंतु हरपुर गांव के छेदी यादव के घर में भी चार दिनों से चूल्हा नहीं जला है. चार दिन पहले की राख आज भी चूल्हे में यूं ही पड़ी है. छेदी यादव के घर की एक महिला नाम नहीं बताती, परंतु कहती है, "गांव में एतना बड़ा पहाड़ टूट गईल है, 11 गो लाश पड़ल है तो खाना कइसे बनत. एकर से जादे कुछ गांव में विपत पड़तय"
गांव के लोग बताते हैं कि समस्तीपुर जिले के सिंघिया प्रखंड के हरपुर और ब्रह्मपुरा गांवों के 20 से 30 लोग दिल्ली के इस कारखाने में मजदूरी करते थे. दिल्ली से बेटों की सलामती को लेकर इस गांव में रोजाना फोन आते ही रहते थे. गांव के कई युवा दिल्ली में काम कर गांव में रह रहे अपने परिवार के जीवनयापन का सहारा बने हुए थे. रविवार को 10 बजे गांव में बजने वाली फोन की घंटी ने इन गांवों के माहौल को गमगीन कर दिया. यह भी पढ़ें- दिल्ली अग्निकांड: मृतकों में बिहार के मजदूर भी शामिल, CM नीतीश ने की मुआवजे की घोषणा, मंत्री संजय झा ने इस विभाग को ठहराया जिम्मेदार.
गांव के ही रहने वाले मोहम्मद नूर ने कहा, "जैसा कि सिलाई करना हमारा पारंपरिक पेशा रहा है. गांव के युवा काम के लिए दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरू जाते हैं. ज्यादातर युवा 10वीं कक्षा पास करने के बाद दिल्ली में कारखानों में सिलाई का काम करते हैं.आग लगने वाली दुकानों में से एक के मालिक मेरे गांव से हैं."
यही हाल सहरसा जिले के नरियार के एक परिवार का है. इस परिवार में पांच बच्चों के सिर से पिता का साया उठ गया. 50 वर्षीय मोहम्मद शमीम उसी कारखाने में काम करता था और वहां से कमाए रुपये घर भेजकर बच्चों का पालन करता था. रविवार को उनके घर में कोहराम मच गया. पत्नी और बेटियों की पथराई आंख अब तक मृत शरीर को नहीं देख सकी है. पुत्र वसीम तो इस मनहूस खबर को मिलने के बाद दिल्ली रवाना हो गया, परंतु अन्य परिजन यहीं है.
परिजनों ने बताया कि शमीम के छोटे भाई नजीम की छह महीने पहले कैंसर से मौत हो गई थी. उसके बाद पूरे परिवार की देखभाल करने वाला शमीम अकेला था. उसकी चार बेटियों में सिर्फ एक की शादी हुई है। तीन बेटियों व बेटे के भविष्य की चिंता सता रही है. सहरसा के रहने वाले मकबूल कहते हैं, "नारियार गांव सिलाई के गांव के रूप में प्रसिद्ध है. चूंकि ज्यादातर लोग भूमिहीन हैं, इसलिए कई युवा दिल्ली जाने से पहले 10वीं कक्षा उत्तीर्ण होने का इंतजार नहीं करते हैं."
बहरहाल, इस गांव में मातम पसरा है. अब गांव के लोगों को सिर्फ अपनों के पार्थिव शरीर का इंतजार है. बिहार के श्रम संसाधन विभाग के एक अधिकारी बताते हैं कि बुधवार को सभी शव पहुंचने की उम्मीद है. उल्लेखनीय है कि दिल्ली में एक कारखाने में लगी आग से बिहार के 36 लोगों की मौंत हो गई है. मृतकों में समस्तीपुर के 12, सहरसा के नौ, सीतामढ़ी के छह, मुजफ्फरपुर के तीन, दरभंDelhi गा के दो और बेगूसराय, मधेपुरा, अररिया तथा मधुबनी के एक-एक लोग शामिल हैं.