Corona Pandemic: प्रवासी मजदूरों के धीमी पंजीकरण गति पर SC नाखुश, कहा- और तेजी लाने की जरुरत
सुप्रीम कोर्ट (Photo Credits: IANS)

नई दिल्ली: कोरोनावायरस (Coronavirus) महामारी को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न राज्यों में लगाए गए लॉकडाउन (Lockdown) की वजह से प्रवासी मजदूरों (Migrant Workers) को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. इस बीच सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने प्रवासी मजदूरों के लिए पर्याप्त लाभ सुनिश्चित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को तेजी से कदम उठाने की हिदायत दी है. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि प्रवासी मजदूरों के पंजीकरण की प्रक्रिया काफी धीमी है, जिसे तेज किया जाना चाहिए, ताकि योजनाओं के लाभ उन तक पहुंच पाएं. Delhi Lockdown Update: दिल्ली में एक हफ्ते के लिए फिर बढ़ा लॉकडाउन, 31 मई से अनलॉक प्रक्रिया होगी शुरू

शीर्ष अदालत ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को प्रवासी श्रमिकों और असंगठित क्षेत्रों में काम करने वालों के पंजीकरण में तेजी लानी चाहिए.

न्यायाधीश अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एम. आर. शाह की पीठ ने केंद्र के वकील से कहा, '' हमारी मुख्य चिंता यह है कि प्रवासी श्रमिकों के लिए लाभ उन तक पहुंचना चाहिए. हमने आपके (केंद्र) हलफनामे पर एक सरसरी (त्वरित) नजर डाली है, लेकिन प्रवासी श्रमिकों के पंजीकरण के बारे में इसमें कुछ भी नहीं है.''

शीर्ष अदालत ने यह भी पूछा कि सरकार उन मजदूरों को सूखा राशन कैसे देगी, जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं? शीर्ष अदालत ने यह भी पूछा कि असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के बारे में कोई राष्ट्रीय डेटा क्यों नहीं है? अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि लॉकडाउन के दौरान जरूरतमंदों तक लाभ पहुंचाने के लिए डेटा और पोर्टल आवश्यक हैं.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत के सुझाव से सहमति व्यक्त की कि प्रवासी श्रमिकों की पहचान और पंजीकरण आवश्यक है, जिससे अन्य लाभों के अलावा सीधे उनके खातों में धन हस्तांतरण में मदद मिलेगी.

शीर्ष अदालत ने केंद्र से यह भी पूछा कि वे सरकारी योजनाएं जो लाभार्थियों तक पहुंच रही है, उनकी निगरानी कौन करेगा. अदालत ने कहा कि इसके लिए पर्यवेक्षण या निगरानी होनी चाहिए कि ये लाभ जरूरतमंदों तक पहुंच रहे हैं या नहीं. इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने नोडल अधिकारियों की नियुक्ति का भी सुझाव दिया.

न्यायमूर्ति शाह ने कहा कि कागजों पर हमने देखा है कि सरकार ने हजारों करोड़ खर्च किए हैं, लेकिन चिंता यह है कि क्या यह जरूरतमंद लोगों तक लाभ पहुंच भी रहा है?

पीठ ने कहा, '' सरकार को उन्हें (प्रवासी श्रमिकों) को पंजीकृत कराने के लिए उनसे संपर्क करना चाहिए. पीठ ने कहा कि सरकारें ऐसे प्रवासी कामगारों को लाभ दे सकती हैं, जिन्होंने महामारी के बीच रोजगार खो दिया है, अगर वे पंजीकृत हैं.''

पीठ ने जोर देकर कहा, '' यह एक मुश्किल काम है, लेकिन इसे करना ही होगा. अदालत ने कहा कि केंद्र और राज्यों को असंगठित क्षेत्रों में काम करने वालों के साथ-साथ प्रवासी श्रमिकों के पंजीकरण में तेजी लानी चाहिए.''

अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि प्रवासी श्रमिक न केवल निर्माण श्रमिक हैं, बल्कि रिक्शा चालक, छोटे विक्रेता और फेरीवाले भी हैं, जो महामारी के कारण बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. भूषण ने प्रस्तुत किया कि उन्हें सहायता प्रदान करने के लिए नकद हस्तांतरण आवश्यक है.

पीठ ने भूषण की दलील से सहमति जताई कि प्रवासी श्रमिकों के पंजीकरण की प्रक्रिया बहुत धीमी है. न्यायमूर्ति भूषण ने सभी असंगठित श्रमिकों के पंजीकरण पर जोर दिया, ताकि वे योजनाओं का लाभ उठा सकें. हालांकि, पीठ ने स्पष्ट किया कि वह नकद हस्तांतरण का आदेश नहीं देगी, जो कि एक नीतिगत निर्णय है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि पहले के लॉकडाउन और चल रहे लॉकडाउन अलग हो सकते हैं, लेकिन प्रवासी श्रमिकों की मानसिकता वही होगी, मनोवैज्ञानिक रूप से वे अपने घर जाना चाहेंगे और यह नहीं कहा जा सकता है कि उन्हें किसी मदद की आवश्यकता नहीं है.

शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार से यह भी पूछा कि निरक्षर (बिना पढ़े लिखे) श्रमिक सरकारी पोर्टल पर कैसे पंजीकरण करेंगे और सुझाव दिया कि सरकार को उन तक पहुंचना चाहिए. पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि प्रवासी कामगारों के सभी पंजीकरण राष्ट्रीय डेटाबेस पर आने चाहिए और इसे स्थानीयकृत नहीं किया जाना चाहिए.

शीर्ष अदालत ने कहा कि वह सोमवार की शाम तक इस संबंध में आदेश पारित करेगी.

शीर्ष अदालत ने ये टिप्पणियां एक्टिविस्ट हर्ष मंदर, अंजलि भारद्वाज और जगदीप छोक्कर के एक आवेदन की सुनवाई के दौरान की, जिन्होंने अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से एक तत्काल आवेदन दायर करके यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी करने की मांग की थी कि प्रवासी श्रमिक राशन और खाद्य सुरक्षा से वंचित न हों और वे बहुत ही कम लागत पर अपने घर वापस जाने में भी सक्षम हो सके.

राष्ट्रीय स्तर के लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूर संकट को दूर करने के लिए पिछले साल शीर्ष अदालत द्वारा उठाए गए स्वत: संज्ञान मामले में आवेदन दायर किया गया था.