भूटान के प्रधानमंत्री लोते शेरिंग ने कहा है कि डोकलाम विवाद को सुलझाने में भूटान, भारत और चीन बराबर के साझेदार हैं और तीनों देशों को मिलकर इसका हल निकालना होगा. भूटान के ताजा रुख ने केंद्र सरकार की चिंता बढ़ा दी है.भूटान का रुख भारत के लिए झटके से कम नहीं है. भारत मानता है कि चीन ने अवैध रूप से इस इलाके पर कब्जा किया है. छह साल पहले डोकलाम में चीनी सैनिकों के अतिक्रमण को लेकर भारत-चीन के बीच तनाव काफी बढ़ गया था और लंबे समय तक भारतीय और चीनी सैनिक आमने-सामने थे. दोनों देशों के बीच लंबी कूटनीतिक वार्ता के बाद डोकलाम में चीनी सैनिक पीछे हटे थे.
भूटान का ताजा बयान
भूटान के प्रधानमंत्री ने हाल में बेल्जियम के एक अखबार ला लिबरे को दिए गए इंटरव्यू में डोकलाम पर अपना रुख एकदम बदल लिया है. शेरिंग ने कहा है कि डोकलाम विवाद को हल करने में चीन की भी समान भूमिका है. भारत, चीन और भूटान पर इस विवाद का समाधान तलाशने की समान जिम्मेदारी है.भूटानी प्रधानमंत्री ने वर्ष 2019 में अंग्रेजी अखबार ‘द हिंदू' को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि डोकलाम में कोई भी देश एकतरफा तौर पर बदलाव नहीं कर सकता.
भूटान घूमना है तो भारतीय सैलानियों को पैसा देना होगा
इससे पहले भूटान ने दावा किया था कि चीन ने उसकी सीमा में कोई गांव नहीं बसाया है. जबकि वर्ष 2020 में सामने आने वाली कुछ सैटेलाइट तस्वीरों में दावा किया गया था कि चीन ने भूटान की सीमा के दो किलोमीटर के अंदर तक गांव बना लिए हैं. हालांकि उस वक्त भूटान सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई थी. लेकिन अब भूटान के प्रधानमंत्री ने इस दावे को खारिज कर दिया है.
क्या है डोकलाम विवाद
डोकलाम भूटान के क्षेत्र में आता है. भारत शुरू से डोकलाम में चीनी घुसपैठ का विरोध करता रहा है. डोकलाम रणनीतिक तौर पर अति संवेदनशील सिलीगुड़ी कॉरिडोर के करीब है. यहां इसे चिकेन नेक कहा जाता है. यही संकरी पट्टी देश के बाकी हिस्सों को पूर्वोत्तर से जोड़ती है.
सामरिक विशेषज्ञों का कहना है कि किसी संभावित युद्ध की स्थिति में सिलीगुड़ी कॉरीडोर को बंद कर पूर्वोत्तर से संपर्क काटना चीन की रणनीति का हिस्सा हो सकता है. यही वजह थी कि जब वर्ष 2017 में चीन ने डोकलाम में सड़क बनाने का काम शुरू किया था तो भारत ने उसे रोक दिया था. तब कोई दो महीने दोनों देशों की सेना आमने-सामने अड़ी रही थी.
उसके बाद से ही यह मामला विवाद के केंद्र में रहा है. चीन चाहता है कि तीनों देशों की सीमाएं जहां मिलती हैं उस जगह को बटांग ला के सात किलोमीटर दक्षिण की ओर बढ़ा दिया जाए. अगर ऐसा होता है तो पूरा डोकलाम इलाका कानूनी तौर पर चीन के कब्जे में चला जाएगा.
वर्ष 1890 के सिक्किम-तिब्बत सीमा समझौते के तहत 14,300 फीट की ऊंचाई पर स्थित माउंट गिपमोची को तिब्बत और सिक्किम की सीमा माना गया था. वर्ष 1904 में अंग्रेजों ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया और वर्ष 1906 के एक समझौते के तहत चुम्बी घाटी को तिब्बत को सौंप दिया गया. यह घाटी बटांग ला में डोकलाम के पठार के उत्तरी हिस्से सटी है.
चीन और भूटान की बढ़ती नजदीकियां
भूटान और चीन के रिश्तो में हाल के वर्षो में नजदीकियां बढ़ी हैं. इस साल फरवरी में एक भूटानी प्रतिनिधिमंडल ने सीमा विवाद पर बातचीत के लिए चीन का दौरा किया था. अब जल्दी ही चीन की एक तकनीकी टीम भूटान के दौरे पर आने वाली है. भूटानी प्रधानमंत्री ने कहा है कि कुछ बैठकों के बाद दोनों देश एक सीमा रेखा खींचने पर सहमत हो जाएंगे.
भारत को डर है कि अगर भूटान ने डोकलाम पठार चीन को सौंप दिया तो सामरिक रूप से अहम इस इलाके में चीन की स्थिति बेहद मजबूत हो जाएगी. इससे चीन संवेदनशील सिलीगुड़ी कारीडोर पर निगाह रख सकेगा. चीन ने वर्ष 2012 में तीनों देशों को जोड़ने वाले इलाके पर यथास्थिति बहाल रखने का वादा किया था. लेकिन भूटान के रवैए की वजह से वह अपने वादे से पीछे हट जाएगा.
वर्ष 2017 की तनातनी के बाद डोकलाम में पीछे हटने पर चीनी सेना ने अमो चू नदी घाटी सटे भूटानी इलाके में में घुसपैठ की थी. यह जगह डोकलाम के नजदीक और सीधे पूर्व में है. यहां चीन ने कई गांवों का निर्माणकिया है. उन्होंने इस क्षेत्र को जोड़ने के लिए एक सड़क भी बनाई है जबकि यह इलाका शुरू से ही भूटान का हिस्सा रहा है.
अब ऐसे संकेत हैं कि भूटान को उस क्षेत्र को चीन को सौंपने के लिए मजबूर किया गया हो सकता है. शायद यही वजह है कि भूटानी प्रधानमंत्री ने उस इलाके से यह कह पल्ला झाड़ लिया है कि चीन ने भूटान की सीमा के भीतर कोई गांव नहीं बसाया है.
अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ प्रोफेसर जीवन लामा कहते हैं, "चीन और भूटाने के रिश्ते बदल रहे हैं. चीन ने कभी भूटान की जमीन पर दावा किया था. लेकिन अब प्रधानमंत्री शेरिंग के बयान से साफ है कि दोनों देशों में जरूर कोई खिचड़ी पक रही है."
सामरिक विशेषज्ञ के.बी. भूटिया कहते हैं, डोकलाम इलाका सामरिक रूप से भारत के लिए बेहद अहम है. इसे किसी भी स्थिति में चीन के कब्जे में नहीं जाने देना चाहिए. अगर ऐसा होता है तो देश और खासकर पूर्वोत्तर की सुरक्षा पर एक बड़ा सवालिया निशान खड़ा हो जाएगा."