नई दिल्ली: देश में राफेल सौदे को लेकर मचे विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. जिस याचिका पर देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट 10 अक्टूबर को सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को राफेल डील मामले में सीलबंद लिफाफे में निर्णय प्रकिया का ब्योरा 29 अक्टूबर से पहले सौंपने को कहा था. कोर्ट के आदेश को मानते हुए केंद्र सरकार ने राफले सौदे की निर्णय प्रकिया की जानकारी सीलबंद लिफाफे में सौंपी दी है.
खबरों की माने तो मोदी सरकार ने तीन सीलबंद लिफाफे में डील की जानकारी सुप्रीम कोर्ट को सौंपी है. सरकार की तरह से सीलबंद लिफाफे में निर्णय प्रकिया का ब्योरा सौपने के बाद इस पर सोमवार को सुनवाई होने वाली है. दरअसल इस पुरे मामले पर सुप्रीम 10 अक्टूबर को सुनवाई करते हुए कहा था कि हम राफेल की प्रक्रिया इसलिए पूछ रहे हैं, ताकि हम खुद को संतुष्ट कर सकें और केंद्र को हम नोटिस जारी नहीं कर रहे हैं, बल्कि प्रक्रिया का विवरण मांग रहे हैं. हालांकि कोर्ट में इस मामले के सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार इस याचिका विरोध करते हुए कहा गया कि कोर्ट में जो भी याचिका दायर की गई है वह याचिका राजनीतिक लाभ लेने के लिए दाखिल की गई हैं. इसलिए इसे खारिज की जानी चाहिए.
Central government has submitted before Supreme Court the details of decision making process in the #Rafale deal with France with Court Secretary General, in sealed cover. pic.twitter.com/XxkUYbO7Em
— ANI (@ANI) October 27, 2018
किसने दायर की थी याचिका
देश में राफेल डील को लेकर मचे बवाल को लेकर अधिवक्ता विनीत धांडा और अधिवक्ता एमएल शर्मा की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी. दोनों लोगों की तरफ से कोर्ट में दायर याचिका में कहां गया कि इस डील में सरकार की तरफ से अनियमिता बरती गई है. इसलिए इस डील पर सुप्रीम कोर्ट रोक लगाए. दोनों अधिवक्ताओं के याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति , न्यायमूर्ति एस. के. कौल और न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ की पीठ ने गंभीरता से विचार करने के बाद सरकार से राफेल सौदे को लेकर सीलबंद लिफाफे में निर्णय प्रकिया का ब्योरा कोर्ट के समक्ष सौंपने को कहा था.
क्या है पूरा मामला
बात दें कि मौजूदा मोदी सरकार ने फ्रांस की सरकार से 36 लड़ाकू विमान खरीदने को लेकर सौदा किया है. इस सौदे को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कहना है कि यूपीए के कार्यकाल में किए गए सौदे की तुलना में यह सौदा काफी महंगा है. इसलिए इस डील पर रोक लगाया जाए. क्योंकि इस डील से सरकार के खजाने पर हजारों करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है