दिल्ली: रक्तदान में 80 फीसदी के साथ प्री-COVID19 स्तर तक सुधार, संक्रमण बढ़ने के दर से रक्तदान में आई कमी
कोविड-19 महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन, दहशत, रक्तदान शिविरों पर लगे विराम और परिवहन सेवाओं में बाधा के कारण दुनियाभर में रक्तदान में उल्लेखनीय कमी आ गई थी, मगर अब इसमें सुधार आया है. इन मुद्दों को हल करने के लिए हमने अस्पताल में स्वैच्छिक रक्तदाताओं के लिए अलग-अलग प्रविष्टियां और निकास तैयार किए.
नई दिल्ली, 6 दिसंबर : कोविड-19 (COVID19) महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन, दहशत, रक्तदान शिविरों पर लगे विराम और परिवहन सेवाओं में बाधा के कारण दुनियाभर में रक्तदान में उल्लेखनीय कमी आ गई थी, मगर अब इसमें सुधार आया है. यह कमी रक्त संग्रह में सबसे बड़ी योगदानकर्ता माने जाने वाले स्कूलों, विश्वविद्यालयों और कॉरपोरेट्स द्वारा अपनी संपत्ति पर रक्तदान शिविर आयोजित करने की अनुमति नहीं मिलने के कारण हुई है. केंद्र-संचालित राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (NACO) के अतिरिक्त महानिदेशक व डॉक्टर सुनील गुप्ता ने आईएएनएस को बताया कि हालांकि, भारत में हुई यह असाधारण कमी तेजी से भर रही है और रक्तदान अब अपने पूर्व-कोविड स्तर पर पहुंच रहा है.
उन्होंने सूचना दी, "हमने अपने लक्ष्य का लगभग 80 प्रतिशत अंश रिकवर कर लिया है." गुप्ता ने आईएएनएस को बताया कि देश में स्वैच्छिक रक्तदानों की रिकवरी में भिन्नता है. उन्होंने आगे कहा, "किसी स्थान पर यह पूरी तरह से सामान्य है, जबकि कुछ क्षेत्रों में यह अभी भी पिछड़ा है." उन्होंने कहा, "गुजरात, महाराष्ट्र, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्य विशेष रूप से स्वैच्छिक रक्तदान में बहुत सक्रिय हैं. वहीं, उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्य पिछड़ रहे हैं और इनके बीच बहुत बड़ा अंतर है. हालांकि, कुल मिलाकर, हम पूर्व-कोविड स्तरों के करीब हैं." गुप्ता नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल में निदेशक भी हैं.
गुप्ता ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान आने-जाने पर प्रतिबंध, स्कूलों, कॉलेजों और कार्यालयों के बंद होने और वायरस से संक्रमित होने के डर के कारण दान में कमी आई है. उन्होंने ने बताया कि स्वैच्छिक रक्तदान में गिरावट अप्रैल और जून में गंभीर स्तर पर थी, क्योंकि तब पूर्ण लॉकडाउन लागू था. उन्होंने आगे कहा, "मार्च के अंत और अप्रैल के मुकाबले जुलाई के अंत तक रक्त संग्रह में थोड़ा सुधार हुआ. अब हमारा संग्रह पूर्व-कोविड काल के लगभग करीब है. अब हर माह अपने पिछले महीने से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है."
हालांकि, चीजें वापस सामान्य हो रही हैं. उन्होंने कहा, "रेलवे को छोड़कर परिवहन क्षेत्र बड़े पैमाने पर फिर से शुरू हो गया है. कोविड-19 से उत्पन्न डर अब पहले से कम हुआ है और रक्तदान में सुधार लाने में योगदान दे रहा है." जैसे-जैसे रक्तदानों में भारी गिरावट आई, वैसे-वैसे थैलेसीमिया, हेमाटो-ऑन्कोलॉजी, ब्लड डिस्क्रैसिया और पोषण संबंधी एनीमिया जैसी गंभीर स्थितियों के लिए भारतीय ट्रांसफ्यूजन की मांग बहुत अधिक बढ़ गई. दिल्ली में इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स में पीडियाट्रिक हेमटोलॉजी एंड ऑन्कोलॉजी में सीनियर कंसल्टेंट अमृता महाजन ने कहा कि अस्पतालों को रक्तदान जारी रखने के साथ-साथ कोविड के डर से बचने के लिए विशेष उपाय करने पड़े.
उन्होंने कहा, "महामारी के दौरान मरीज अस्पताल में आने से डरते थे और रक्तदाता कोविड से संक्रमित होने से डरते थे. रक्तदान शिविर आयोजित करना भी संभव नहीं था, क्योंकि सामाजिक दूरी बनाए रखना बेहद मुश्किल हो जाता है. इन मुद्दों को हल करने के लिए हमने अस्पताल में स्वैच्छिक रक्तदाताओं के लिए अलग-अलग प्रविष्टियां और निकास तैयार किए. हमने रक्तदाताओं को विशेष मूवमेंट पास जारी किए और पुराने दाताओं तक पहुंच कर उन्हें दान के दौरान सुरक्षा का आश्वासन दिया."
एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) ने हाल ही में भारत में रक्तदान जागरूकता के बारे में एक वेबिनार का समापन किया. एसोचैम सीएसआर काउंसिल के अध्यक्ष अनिल राजपूत ने इस मामले पर बात करते हुए कहा, "रक्तदान के बारे में लोगों को जागरूक करने की तत्काल जरूरत है, क्योंकि इससे थैलेसीमिया से पीड़ित लाखों बच्चों की जान बचाई जा सकती है."