MP में भाजपा के यादव कार्ड ने यूपी में बढ़ाई सपा की चिंता

मध्यप्रदेश के चुनाव नतीजों के बाद भाजपा द्वारा यादव चेहरे को मुख्यमंत्री बनाने के फैसले ने यूपी में समाजवादी पार्टी (सपा) की चिंता बढ़ा दी है. पार्टी को अपने मूल वोट बैंक यादव पर सेंधमारी होने का खतरा नजर आ रहा है.

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लखनऊ, 13 दिसंबर : मध्यप्रदेश के चुनाव नतीजों के बाद भाजपा द्वारा यादव चेहरे को मुख्यमंत्री बनाने के फैसले ने यूपी में समाजवादी पार्टी (सपा) की चिंता बढ़ा दी है. पार्टी को अपने मूल वोट बैंक यादव पर सेंधमारी होने का खतरा नजर आ रहा है. भाजपा ने एमपी में मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर जो यादव कार्ड खेला है, उसका सीधा असर यूपी में पड़ने का अनुमान लगाया जा रहा है. ऐसे में आगामी आम चुनाव में सपा के लिए आगे की डगर चुनौती भरी हो सकती है.

राजनीतिक जानकर बताते हैं कि राम नरेश यादव से लेकर मुलायम सिंह और अखिलेश यादव तक तीन यादव पांच बार यूपी के मुख्यमंत्री बन चुके हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यादव वोट बैंक भाजपा के लिए कितना महत्वपूर्ण है. आंकड़ों के अनुसार, यूपी की 24 करोड़ आबादी में यादवों का हिस्सा लगभग 9-10 फीसदी है. इसके साथ, प्रदेश में कई दर्जन जिले ऐसे हैं, जिनमें यादव आबादी लगभग 20 प्रतिशत है. यादव वोट बैंक पर समाजवादी पार्टी की सबसे मजबूत पकड़ मुलायम के जमाने से चली आ रही है. यह भी पढ़ें : जो ‘‘भाजपाई वॉशिंग मशीन’’ में नहीं गए, वो भ्रष्टाचारी, जो स्नान कर लिए, वो आज्ञाकारी: खरगे

सपा के एक नेता ने बताया कि यादव वोट बैंक पर सपा का विश्वास सपा के स्थापना काल से चला आ रहा है. मुलायम ने अपने क्षेत्र के लोगों के लिए बहुत कुछ किया है. इसलिए इस वोट बैंक पर किसी और दल के नेता को कोई पद देने से ज्यादा कुछ फर्क तो नहीं पड़ेगा. हालांकि अलर्ट रहने की जरूरत है. क्योंकि बुंदेलखंड बेल्ट में यह वोट बैंक का झुकाव जरूर दूसरी ओर हो सकता है. इसे साधने के लिए तैयारी करनी पड़ेगी. पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व को इसकी चिंता भी है. उनके इसके लिए मेहनत करनी पड़ेगी.

राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के इटावा, एटा, फ़र्रुखाबाद, मैनपुरी, फिरोजबाद, कन्नौज, बदायूं, आजमगढ़, फैजाबाद, बलिया, संतकबीर नगर, जौनपुर और कुशीनगर जिले को यादव बहुल माना जाता है. इन जिलों की करीब 50 विधानसभा सीटें हैं, जहां यादव वोटबैंक काफी महत्वपूर्ण हैं. भाजपा ने 2017 के बाद से ही यादव वोटों को साधने में जुटी है. जौनपुर सीट से जीते गिरीश यादव को मंत्री बनाया. इटावा के हरनाथ यादव को राज्यसभा सदस्य बनाया. सुभाष यदुवंश को पहले बीजेपी युवा मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया और अब प्रदेश संगठन में जगह दे रखी है. इसके आलावा उन्हें एमएलसी भी बना रखा है. कई जिलों जिला पंचायत और नगर निकाय में जगह दी है.

इस मुहिम के चलते उसने आजमगढ़ लोकसभा चुनाव में लोहा लोहे को काटता है कि तर्ज पर धर्मेंद्र यादव के मुकाबले भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ को उतारा और चुनाव जीत लिया था. मध्य प्रदेश में मोहन यादव को मुख्यमंत्री बना कर भाजपा ने जो बिसात बिछाई है, उसमें अब सपा को पीडीए में मूलवोट बैंक यादव को संभालने के लिए भी खासी मशक्कत करनी होगी. एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत ने कहा कि सपा मुखिया अखिलेश यादव जातिवार जनगणना को लेकर भाजपा सरकार को घेरते आ रहे हैं. ऐसे में भाजपा ने मोहन यादव को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री घोषित कर उनके सामने मुश्किलें खड़ी कर दी हैं. प्रदेश की ओबीसी जातियों में यादवों की हिस्सेदारी सबसे अधिक है. इस वोटबैंक पर सबसे मजबूत कब्जा सपा का ही माना जाता रहा है. भाजपा के इस कदम से साफ है कि आगामी लोकसभा चुनाव में उसका फोकस इस बार यादव समाज भी होगा.

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