पटना, 23 मार्च : एक ओर जहां बिहार सरकार 'जल-जीवन-हरियाली' (Water-Life-Greenery) अभियान चला रही है, प्रधनमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने विश्व जल दिवस के मौके पर जल शक्ति अभियान की शुरूआत की है, वहीं बिहार का अंतर्राष्ट्रीय नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) इस अभियान के तहत लोगों को जल संचयन का पाठ पढ़ा रहा है. नालंदा जिले के राजगीर में स्थित नालंदा विश्वविद्यालय इन दिनों 'जल ही जीवन का आधार है', इसको बेहतर तरीके से समझाने की कोशिश में लगा है. विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर सुनैना सिंह ने जल संरक्षण के लिए नालंदा विश्वविद्यालय के संकल्प को दोहराया है. उन्होने कहा कि विश्वविद्यालय अपने परिसर के साथ साथ आस-पास के गांवों में भी जल संरक्षण की दिशा में अपना योगदान दे रहा है.
सिंह बताती हैं, "विश्वविद्यालय परिसर पूरी तरह से नेट जीरो की परिकल्पना पर आधारित है. परिसर के अंदर पानी की एक-एक बूंद को संरक्षित करने के लिए आधुनिक के साथ-साथ पारंपरिक संसाधनों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. आधुनिकता के दौर में उपेक्षित हो चुके आहर-पाइन को कुलपति ने नालंदा विश्वविद्यालय परिसर में एक बार फिर जल संरक्षण का मुख्य आधार बनाया है." उन्होंने कहा कि परिसर में जल प्रबंधन के लिए दो तरीके इस्तेमाल में लाए जा रहे हैं. पहला तरीका है प्राकृतिक तौर से मिल रहे जल को संरक्षित करना और दूसरा तरीका है उपलब्ध जल को बर्बाद होने से बचाना. परिसर में इसके लिए खास योजना तैयार की गई है, इसके तहत पानी के बेवजह इस्तेमाल को रोकने के लिए लोगों को जागरूक किया जा रहा है. यह भी पढ़ें : Uttar Pradesh: कोविड मामलों में वृद्धि के बाद यूपी में स्कूल होली तक बंद
एक अनुमान के मुताबिक, बेहतर जल प्रबंधन के माध्यम से पानी की बर्बादी को 80 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है. कम प्रवाह फिटिंग और फिक्स्चर द्वारा पानी की मांग में कमी में लाकर 30 प्रतिशत पानी की बर्बादी को रोकने का लक्ष्य रखा गया है. देसी और स्थानीय प्राकृतिक स्रोत का उपयोग कर पानी की मांग में 50 प्रतिशत की कमी की जा रही है. परिसर के अंदर जल संचयन के लिए आहर-पाइन जैसे पारंपरिक विकल्प को अपनाया गया है. परिसर के चाहरदिवारी से लगे पाइन की मदद से बारिश के पानी को परिसर में बनाए गए आहरों तक पहुंचाया जाता है. राजगीर की पहाड़ियों से प्रवाहित भारी मात्रा में बारिश के पानी का जमाव परिसर और उसके आस पास के इलाके में होने लगता था, आज यह पानी का संचयन आहर-पाइन की मदद से परिसर के अंदर हो रहा है. परिसर के अंदर डीसेंट्रलाइज्ड वाटर ट्रीटमेंट सिस्टम को भी प्रभावी तरीके से लागू किया जा रहा है जिससे इस्तेमाल किए गए 80 प्रतिशत पानी को परिष्कृत करके फिर से इस्तेमाल के योग्य बनाने का लक्ष्य रखा गया है. यह भी पढ़ें : Sachin waze Case: सचिन वाजे मुंबई के लग्जरी होटल से कैसे चलाता था वसूली रैकेट
पारंपरिक और आधुनिक तरीके से संचयित इस पानी को परिसर के बीचो-बीच बनाए गए चार तालाबों के समूह कमल सागर में संरक्षित किया जा रहा है. नालंदा विश्वविद्यालय ने राजगीर के नेकपुर और मेयार गांव के 7 जगहों पर जल संसाधन प्रबंधन के लिए एक्विफर स्टोरेज एंड रिकवरी प्रणाली की स्थापना की. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वर्षा के जल को संरक्षित करने पर विशेष जोर दिया है. केंद्र सरकार की इसी परिकल्पना पर नालंदा विश्वविद्यालय के जल संरक्षण की योजना भी आधारित है. इसके साथ ही विश्वविद्यालय ने केंद्र सरकार की सबका साथ, सबका विकास की परिकल्पना को भी आत्मसात किया है.