
पाकिस्तान को उस वक्त बड़ा झटका लगा जब विश्व बैंक (World Bank) ने स्पष्ट कर दिया कि वह सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेगा. विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा ने दो टूक शब्दों में कहा कि बैंक की भूमिका केवल एक सुगमकर्ता (facilitator) की है, मध्यस्थता या फैसला सुनाने की नहीं.
अजय बंगा का बड़ा बयान
हाल ही में मीडिया में यह कयास लगाए जा रहे थे कि विश्व बैंक इस मुद्दे में हस्तक्षेप कर पाकिस्तान की मदद कर सकता है. लेकिन अजय बंगा (Ajay Banga) ने सभी अटकलों को खारिज करते हुए कहा— "विश्व बैंक की भूमिका केवल एक सुगमकर्ता की है. मीडिया में यह अनुमान लगाया जा रहा है कि विश्व बैंक हस्तक्षेप करके इस मुद्दे को सुलझाएगा, लेकिन यह पूरी तरह गलत है. हमारा कार्य केवल प्रक्रिया को सुगम बनाना है, उससे आगे हमारी कोई भूमिका नहीं है."
विश्व बैंक की भूमिका केवल एक सुगमकर्ता की है। मीडिया में यह अनुमान लगाया जा रहा है कि विश्व बैंक हस्तक्षेप करके इस मुद्दे को सुलझाएगा, लेकिन यह पूरी तरह गलत है। हमारा कार्य केवल प्रक्रिया को सुगम बनाना है, उससे आगे हमारी कोई भूमिका नहीं है।
— विश्व बैंक अध्यक्ष अजय बंगा, इंडस जल… pic.twitter.com/TuogDQj0qf
— पीआईबी हिंदी (@PIBHindi) May 9, 2025
भारत ने क्यों रद्द किया सिंधु जल समझौता?
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए सिंधु जल समझौते को रद्द कर दिया था. भारत का आरोप है कि पाकिस्तान आतंकवाद को प्रायोजित करता है और ऐसे में कोई भी जल समझौता आगे जारी रखना संभव नहीं है.
पाकिस्तान ने विश्व बैंक से लगाई थी गुहार
भारत के इस कदम के बाद पाकिस्तान ने विश्व बैंक से अपील की थी कि वह हस्तक्षेप करे और संधि को बहाल कराने की कोशिश करे. पाकिस्तान का दावा है कि यह संधि 1960 से चली आ रही है और इसके तहत उसे सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों के जल पर अधिकार प्राप्त है.
क्या है सिंधु जल संधि?
सिंधु जल समझौता वर्ष 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुआ था. इस समझौते के तहत भारत को पूर्वी नदियों (सतलुज, ब्यास और रावी) का जल उपयोग करने का अधिकार मिला, जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम और चिनाब) पर प्राथमिक अधिकार दिया गया. विश्व बैंक के इस इनकार के बाद पाकिस्तान की रणनीति को बड़ा झटका लगा है.