Baba Saheb Ambedkar Punyatithi 2021: सामाजिक एवं आर्थिक समानता के सचेतक बाबा साहब अंबेडकर के जीवन के रोचक एवं प्रेरक प्रसंग!
समानता के सचेतक, संविधान निर्माता एवं तत्कालीन कानून मंत्री डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के महू जिले में हुआ था. वे अपने माता-पिता रामजी मालोजी सकपाल एवं माता भीमाबाई सकपाल की चौदहवीं संतान थे.
Dr. Babasaheb Ambedkar Punyatithi 2021: समानता के सचेतक, संविधान निर्माता एवं तत्कालीन कानून मंत्री डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के महू जिले में हुआ था. वे अपने माता-पिता रामजी मालोजी सकपाल एवं माता भीमाबाई सकपाल की चौदहवीं संतान थे. बाबासाहेब का जन्म महार जाति जो सामाजिक दृष्टिकोण से अछूत एवं निचली जाति का माना जाता था, में हुआ था. इस वजह से उन्हें तमाम सामाजिक भेदभावों एवं समस्याओं का सामना करना पड़ा. इसी वजह से उन्होंने समाज के सभी दबे-कुचले एवं निचली जाति वालों एवं आर्थिक रूप से विपन्न को उनका मूल अधिकार दिलाने के लिए ताउम्र संघर्ष किया. 6 दिसंबर 1956 को मुंबई में उन्होंने अंतिम सांस ली. आज दुनिया भर में बाबा साहेब का 65वां ‘परिनिर्वाण दिवस’ मनाया जा रहा है.
माता-पिता की चौदहवीं एवं अंतिम संतान बालक भीमराव को निचली जाति में जन्म लेने के कारण प्रतिभाशाली छात्र होने के बावजूद तमाम सामाजिक प्रतिरोधों का सामना करना पड़ा था. उन दिनों बाल विवाह का प्रचलन जोरों पर था, इसलिए ना चाहते हुए भी साल 1906 में 16 साल की उम्र में 9 साल की रमाबाई से उन्हें विवाह करना पड़ा. साल 1908 में भीमराव ने मुंबई स्थित एलफिंस्टन कॉलेज में दाखिला लिया. इस कॉलेज के इतिहास में दलित छात्र के रूप में प्रवेश पाने वाले वे पहले छात्र थे. कुशाग्र बुद्धि वाले इस ओजस्वी छात्र को साल 1913 में अमेरिका से एमए करने का अवसर मिला. तब उनकी शिक्षा और अमेरिका प्रवास का सारा खर्च बड़ौदा के गायकवाड़ शासक सहयाजी राव तृतीय ने उठाया. उन्होंने भीमराव को मासिक वजीफा देना शुरु किया. यह भी पढ़ें : Shree Dnyaneshwar Maharaj Sanjeevan 2021: संत ज्ञानेश्वर महाराज का 725वां संजीवन समाधि दिवस, अपनों के साथ शेयर करें उनके ये अनमोल मराठी विचार
साल 1921 में लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स से एमए की डिग्री हासिल करने के पश्चात वे स्वदेश वापस आ गये. साल 1925 में भीमराव आंबेडकर को बॉम्बे प्रेसिडेंसी समिति ने साइमन आयोग में नियुक्ति मिली. उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों, दलितों और समाज के पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए न्योछावर कर दिया. आर्थिक एवं व्यावहारिक रूप से स्टैबलिश होने के बाद बाबा साहेब ने दलितों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करना शुरु किया. उन्होंने ‘बहिष्कृत भारत’, ‘मूक नायक’ एवं ‘जनता’ नामक पाक्षिक एवं साप्ताहिक पत्र शुरु किया, जो उनके आंदोलनों को प्रसारित करने का मुख्य आधार होता था. दलितों के उद्धार तमाम आंदोलनों के साथ-साथ बाबा साहेब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते रहे. वे कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता थे, और महात्मा गांधी के तमाम आंदोलनों में शरीक होने के कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा. स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात बाबा साहेब को कानून मंत्री बनाया गया. 29 अगस्त 1947 को स्वतंत्र भारत के संविधान की रचना के लिए संविधान मसौदा समिति का उन्हें अध्यक्ष बनाया गया. 1951 में संसद में जब उनका हिंदू कोड बिल का मसौदा प्रस्तुत नहीं करने दिया गया, तब उन्होंने कानून मंत्री से इस्तीफा दे दिया. ध्यान हो कि इस मसौदे उत्तराधिक विवाह एवं अर्थ व्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की बात उल्लेखित की थी. 14 अक्टूबर 1956 के दिन बाबा साहेब आंबेडकर एवं उनके समर्थकों ने श्रीलंका के महान बौद्ध भिक्षु महत्थवीर चंद्रमणी से पारंपरिक तरीके से ‘त्रिरत्न’ और ‘पंचशील’ को अपनाते हुए बौद्ध धर्म को अपना लिया. वे डायबिटीज के मरीज थे. 6 दिसंबर 1956 के दिन बाबा साहेब आंबेडकर ने अंतिम सांस ली.