असम पुलिस ने पुलिस वालों के लिए कुछ कड़े दिशा-निर्देश जारी किए हैं. पुलिस सुधार की दिशा में इन्हें बड़ा कदम कहा जा रहा है. भारत में पुलिस सुधारों की बात लंबे समय से होती रही है लेकिन अब तक कोई बड़ा बदलाव दिखा नहीं है.देश के दूसरे राज्यों की तरह पूर्वोत्तर राज्य असम में पुलिस वालों पर हिरासत में और मुठभेड़ के नाम पर हत्या समेत आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने के तमाम आरोप लगते रहे हैं. अब सरकार ने पुलिस वालों की तस्वीर बदलने और आम लोगों में पुलिस बल के प्रति भरोसा बढ़ाने के लिए के लिए पुलिस सुधारों की दिशा में ठोस पहल की है. बीते साल से शुरू हुई यह कवायद चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ रही है. हाल में चार पुलिस वालों को आपराधिक मामलों में शामिल होने के कारण नौकरी से बर्खास्त भी किया जा चुका है.
असम पुलिस की पहल
असम पुलिस ने लंबे विचार-विमर्श के बाद तमाम पुलिस वालों के लिए कुछ कड़े दिशा-निर्देश जारी किए हैं. सरकार की ओर से जारी इस दिशानिर्देश के मुताबिक, अब शारीरिक उत्पीड़न के किसी मामले में शामिल पुलिस वालों को जांच में दोषी पाए जाने पर नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाएगा. इसी तरह रिश्वत लेने का आरोप साबित होने पर भी उनकी नौकरी जाएगी. ड्यूटी पर नशे में रहने की स्थिति में भी उनको नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा.
विकास दुबे के मुठभेड़ में मारे जाने पर उठ रहे हैं सवाल
पुलिस महानिदेशक जी.पी.सिंह के मुताबिक, सड़कों पर निजी वाहनों से पैसे वसूलने वाले पुलिस वालों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई होगी. उन्होंने वित्तीय भ्रष्टाचार और यौन उत्पीड़न के मामले में शामिल चार पुलिस वालो को नौकरी से बर्खास्त कर दिया है. यही नहीं, पुलिस महानिदेशक अपने ट्विटर हैंडल से आरोपी पुलिस वालों की पूरी जानकारी भी सार्वजनिक कर रहे हैं. इससे आपराधिक प्रवृत्ति के पुलिस वालो में डर बढ़ा है.
पुलिस महानिदेशक ने बीते सप्ताह राज्य के तमाम आला पुलिस अधिकारियों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए एक बैठक में पुलिस की छवि सुधारने और वर्दी की इज्जत बचाने पर जोर दिया. उन्होंने पुलिस उपाधीक्षक और सहायक पुलिस आयुक्त स्तर के अधिकारियों को अपने जिले में रात के समय इलाके के थानों का औचक निरीक्षण करने का निर्देश दिया है. इस पूरी कवायद का मकसत कानून और व्यवस्था पर नजर और ड्यूटी पर तैनात पुलिस वालों को मुस्तैद रखना है.
इस बैठक के बाद पुलिस महानिदेशक सिंह ने अपने एक ट्वीट में कहा, गंभीर अपराधों में शामिल पुलिस वालों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के जरिए उनको नौकरी से बर्खास्त करने का सिलसिला पूरे सिस्टम के साफ होने तक जारी रहेगा.
मौलिक सुविधाओं को तरसते पुलिसवाले
अधिकारियों पर भी नकेल
असम सरकार ने इससे पहले बीती मई में 680 ऐसे पुलिस वालों को समय से पहले रिटायर करने का फैसला किया था जो या तो शराब के आदी हैं या फिर मोटे हैं. मोटे पुलिसवालों को अपना बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) सुधारने के लए तीन महीने का समय दिया गया था. यह समय सीमा 15 अगस्त को खत्म होगी. इसके बाद 16 अगस्त को सबकी बीएमआई की जांच की जाएगी. इसमें पुलिस महानिदेशक से सिपाही स्तर तक तमाम पुलिस वाले शामिल होंगे. हालांकि कुछ खास बीमारियों से पीड़ित लोगों को इससे छूट दी जाएगी.
इसके लिए तमाम जिलों में मोटे और शराबी पुलिस वालों की एक सूची तैयार की गई है. सरकार ने शराब के आदी करीब तीन सौ पुलिसवालों को भी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति देकर उनकी जगह नई भर्तियां करने का फैसला किया है.
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने बीते 30 अप्रैल को कहा था कि पुलिस वालों के खिलाफ शराब पीकर ड्यूटी पर आने की शिकायतें लगातार बढ़ती जा रही हैं. इससे पुलिस की छवि खराब हो रही है. ऐसे लोगों को चेतावनी दे दी गई है. उनका कहना है कि अगर उनमें सुधार नहीं आया तो ऐसे लोगों को रिटायर कर दिया जाएगा.
इससे पहले बीते साल सरकार ने पुलिस के बड़े अधिकारियों के घर घरेलू कामकाज के लिए सिपाहियों की तैनाती पर रोक लगा दी थी. तब मुख्यमंत्री ने कहा था कि उनको इस आशय की कई शिकायतें मिल रही हैं. अब अगर कोई अधिकारी ऐसा करता पाया जाएगा उसे संबंधित सिपाही का वेतन अपनी जेब से देना होगा.
भारत की पुलिस व्यवस्था में कब करेंगे सुधार
असम के पूर्व पुलिस महानिदेशक रहे कुलधर सैकिया इस पहल की सराहना करते हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा कि इस दिशा में बहुत पहले ही पहल होनी चाहिए थी. लेकिन देर आयद दुरुस्त आयद. इससे आम लोगों में पुलिस वालों के प्रति भरोसे को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी. पश्चिम बंगाल के पूर्व पुलिस प्रमुख प्रसून बनर्जी डीडब्ल्यू से बातचीत में कहते हैं कि छोटे स्तर पर ही सही, लेकिन इस मामले में असम सरकार ने सराहनीय पहल की है. अगर दूसरे राज्य भी उसकी देखा-देखी इस दिशा में पहल करें तो तस्वीर में कुछ बदलाव जरूर आएगा.
पूर्वोत्तर राज्य असम में किये गये बदलाव का मकसद पुलिस वालों में अनुशासन और ईमानदारी को बढ़ावा देकर उनको ड्यूटी के प्रति ज्यादा जिम्मेदार और जवाबदेह बनाना है. भारत में पुलिस सुधार का मुद्दा शायद अपनी किस्म के सबसे चर्चित और विवादास्पद मुद्दों में से एक है. बीते कई दशकों से इसकी कवायद चल रही है. कोई 17 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह की याचिका पर सुनवाई के बाद इस मामले में कई अहम निर्देश दिए थे. बीते चार दशकों के दौरान इसके लिए कई समितियां बनीं. लेकिन सबकी सिफारिशें ठंडे बस्ते में डाल दी गई हैं. विश्लेषकों का कहना है कि यह एक ऐसा मुद्दा है जिसकी चर्चा तो तमाम राजनीतिक दल करते हैं. लेकिन इस पर आगे बढ़ने की इच्छाशक्ति अब तक किसी ने नहीं दिखाई है.