फ्रांसीसी पत्रकार सेबास्तियें फास्सी ने दावा किया है कि भारत में काम करने के उनके परमिट को रद्द कर दिया गया है. फास्सी फ्रांसीसी मीडिया संस्थानों के लिए 13 सालों से भारत में काम कर रहे थे. उनकी पत्नी भारतीय नागरिक हैं.सेबास्तियें फास्सी ने एक बयान में बताया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 7 मार्च को ही उनका परमिट बढ़ाने से इनकार कर दिया था. इस वजह से अब वह भारत में काम नहीं कर पा रहे थे और आमदनी का भी जरिया नहीं बचा.
उनका आरोप है कि कई बार पूछने के बावजूद भी सरकार ने उन्हें परमिट ना बढ़ाने का कोई कारण नहीं बताया है. फास्सी के मुताबिक, ऐसे में उन्हें और उनके परिवार को भारत छोड़कर फ्रांस जाना पड़ रहा है.
विदेशी पत्रकारों को निकाला जा रहा है
फास्सी 2011 से ही भारत में रेडियो फ्रांस इंटरनेशनल, रेडियो फ्रांस और 'लिबरेशन' के अलावा स्विस और बेल्जियन पब्लिक रेडियो संस्थानों के लिए काम कर रहे थे. उनका परमिट बढ़ाए ना जाने पर अभी तक केंद्र सरकार की तरफ से कोई बयान नहीं आया है.
यह पहली बार नहीं है, जब किसी विदेशी पत्रकार को भारत छोड़कर जाने पर मजबूर होना पड़ा है. जनवरी 2024 में फ्रांस के एक और पत्रकार के साथ ऐसा ही हुआ था. गृह मंत्रालय ने वनेसा डोनियाक को नोटिस भेजकर कहा था कि उनका काम भारत के हितों के प्रति "द्वेषपूर्ण" है.
इस नोटिस में कहा गया था, "उनकी पत्रकारिता द्वेषपूर्ण और आलोचनात्मक है...उससे भारत को लेकर भेदभावपूर्ण छवि बनती है...इसके अलावा, उनकी गतिविधियां अशांति भी भड़का सकती हैं और शांति भंग कर सकती हैं."
डोनियाक 22 सालों से भारत में थीं और फ्रांसीसी भाषा के कई अखबारों, पत्रिकाओं और वेबसाइटों के लिए कंट्रीब्यूटर के रूप में काम करती थीं. फास्सी की तरह उनकी भी शादी एक भारतीय नागरिक से हुई थी. नोटिस के बाद उन्हें अपने परिवार के साथ भारत छोड़ कर चले जाना पड़ा.
निशाना बनाए जाने के आरोप
अप्रैल में ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार अवनि डीऐस भी भारत छोड़कर चली गई थीं. उनका कहना था कि केंद्र सरकार ने पत्रकारिता के लिए उन्हें मिले वीजा को आगे बढ़ाने से इंकार कर दिया था. जाने से ठीक एक दिन पहले उन्हें एक अस्थायी वीजा जारी कर दिया गया, लेकिन डीऐस चली गईं.
उन्होंने कहा कि उन्हें "भारत में अपना काम करना बेहद मुश्किल लग रहा है." डीऐस ने 16 जून को फेसबुक पर लिखे एक पोस्ट में दावा किया कि केंद्र सरकार ने यूट्यूब और फेसबुक को उनके वीडियो हटाने का आदेश भी दिया है.
इसी तरह अगस्त 2022 में अमेरिकी पत्रकार अंगद सिंह को नई दिल्ली हवाई अड्डे पर पहुंचते ही अमेरिका वापस भेज दिया गया था.
उससे पहले नवंबर 2019 में भारतीय और पाकिस्तानी मूल के ब्रिटिश पत्रकार आतिश तासीर का ओसीआई कार्ड रद्द कर दिया गया था. समीक्षकों का कहना है कि ये सभी घटनाएं दिखाती हैं कि विदेशी पत्रकारों को विशेष रूप से निशाना बनाया जा रहा है.
प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत का लुढ़कता प्रदर्शन
मई 2024 में लोकसभा चुनावों के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि आज दुनिया में एक "अंतरराष्ट्रीय खान मार्किट गैंग" है, जो "भारतीय राजनीति की दिशा और भारतीय वोटर की चुनने की क्षमता को प्रभावित" कर रहा है.
सेबास्तियें फास्सी के मामले में अंतरराष्ट्रीय संस्था 'कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स' के भारत में प्रतिनिधि कुणाल मजूमदार ने कहा कि उनका जाना "भारत में विदेशी पत्रकारों की बढ़ती चुनौतियों को रेखांकित करता है."
मजूमदार ने कहा, "मनमाने तरीके से और बिना कोई स्पष्टीकरण दिए उनके जर्मलिज्म परमिट को रिन्यू करने से मना करके मीडिया की आजादी को कमजोर किया गया है." मजूमदार ने भारतीय अधिकारियों से मांग की कि वे फास्सी के परमिट को बढ़ाएं और "सुनिश्चित करें कि सभी पत्रकार बिना अन्यायपूर्ण प्रतिशोध के काम कर सकें."
मोदी सरकार पर स्वतंत्र मीडिया का दम घोंटने के आरोप लगते रहे हैं. उनके कार्यकाल की शुरुआत के बाद से भारत 180 देशों के विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 21 अंक लुढ़ककर 161वें स्थान पर पहुंच गया है.