नई दिल्ली, 1 दिसंबर : पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) के मीरपुर में 1947 के नरसंहार ने पाकिस्तानी सेना का शैतानी चेहरा और धोखेबाज चरित्र का खुलासा किया था. यह अब दुनिया के सामने इसकी मानक यूएसपी के रूप में सामने आ रहा है. बाल के. गुप्ता ने अपनी पुस्तक "फॉरगॉटन एट्रोसिटीज : मेमोयर्स ऑफ ए सर्वाइवर ऑफ द 1947 पार्टिशन ऑफ इंडिया' में खुलासा किया कि मीरपुर में मौत दयालु लगती थी, लेकिन आदमी इसके बारे में सब कुछ भूल गया .. हर रात मैं सोचता था, यह आखिरी होगी और मैं मौत के आने के लिए प्रार्थना करूंगा."
25-27 नवंबर, 1947 तक पाकिस्तानी हमलावरों के साथ लड़ते हुए आत्मसमर्पण करने के बजाय शहादत चुनने वाले 18,000 बहादुर मीरपुरी पर गर्व करने के 74 साल बीच चुके हैं. मीरपुर में मौत के सबसे अमानवीय गीत का आनंद रोते और दर्द से दूर रहने वाले लुटेरों ने लिया था. विभाजन के बाद मीरपुर शहर भारत और पाकिस्तान के बीच खड़ा हो गया. पाकिस्तान सरकार की जम्मू-कश्मीर पर जबरदस्ती नियंत्रण करने की कुख्यात योजना थी और उसके लिए उसने मीरपुरी को धोखा देने का फैसला किया. यह भी पढ़ें :Pulwama Encounter: सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में टॉप JeM कमांडर यासिर ढेर, विदेशी आतंकी फुरकान भी मारा गया
अक्टूबर 1947 के दूसरे सप्ताह में उसने उर्दू में लिखे पर्चे का एक थैला मीरपुर भेजा, जिसमें लिखा था कि अगर नागरिक पाकिस्तानी सेना को मीरपुर में खुद को स्थापित करने की अनुमति देंगे, तो यह उन्हें देश में एक विशेष दर्जा देगा. देशभक्तों ने पाकिस्तान के प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया और पाकिस्तानी सेना के आगे बढ़ने पर आखिरी गोली तक लड़ने की कसम खाई.