Zindagi Shatranj Hai Movie Review: हितेन तेजवानी की ये फिल्म में है ढेर सारी मिस्ट्री और थ्रिल
टीवी के लोकप्रिय अभिनेता हितेन तेजवानी, हेमंत पांडेय, पंकज बैरी अभिनीत फ़िल्म "ज़िंदगी शतरंज हैं" इस सप्ताह सिनेमागृह में प्रदर्शित हो रही हैं आइए जानते हैं कैसी हैं यह फ़िल्म
फिल्म: जिंदगी शतरंज है
कास्ट: हितेन तेजवानी, ब्रूना अब्दुल्ला और हेमंत पांडेय
प्रोड्यूसर: आनंद प्रकाश, मृणालिनी सिंह, फ़हीम आर क़ुरैशी
डायरेक्टर: दुष्यंत प्रताप सिंह
म्यूजिक डायरेक्टर: अंजन भट्टाचार्य, इंद्राणी भट्टाचार्य
रनटाइम: 1 घंटा 25 मिनट
कहानी: दलेर मेहंदी के शानदार गाने 'गड़बड़ गड़बड़' से फिल्म शुरू होती हैं फिर विशाल मल्होत्रा की जींदगी में कुछ बहुत ही अप्रत्याशित घटित होता हैं. कविता के पति विशाल कुछ दिनों के लिए बाहर जाते हैं. इस बीच कविता के घर एक अनजान व्यक्ति खुद को कविता का पति विशाल मल्होत्रा बताता है कविता उसे पति मानने से इंकार कर देती है वह फोन करके पुलिस को बुलाती है. घर का नौकर वासु (हेमंत पांडेय) भी इस नए व्यक्ति को विशाल मल्होत्रा मानता हैं कविता यह साबित नयी कर पाती की उसके घर आया एक अनजान शख़्स विशाल मल्होत्रा नहीं हैं पुलिस को प्रूफ मिलने पर पुलिस वापस चली जाती है नौकर वासु (हेमंत पांडेय) भी उसको विशाल की पत्नी बताता है वह प्रूफ नहीं कर पाती है कविता के डाक्टर भी अनजान व्यक्ति को विशाल मल्होत्रा मानता हैं आख़िर क्यों सब लोग कविता के ख़िलाफ़ इस षड्यंत्र में अनजान से मिले हुए हैं शतरंज की इस बिसात के मोहरे बहुत शातिर और तेज हैं फ़िल्म मे अलग ही मोड़ आता है क्या कविता का पति विशाल मिलेगा? क्या अनजान व्यक्ति का सच पता चलेगा? इसके लिए आपको फ़िल्म देखनी पड़ेगी?
अभिनय: अभिनेता हितेन तेजवानी काफी अनुभवी और मंझे हुए एक्टर हैं जो पहले बहरूपये विशाल मल्होत्रा और फिर एक ऑफिसर सिद्धार्थ की भूमिका में इस फिल्म में शुरू से अंत तकऑडियंस को अपनी एक्टिंग से इम्प्रेस करते नजर आते हैं. डॉ. शाह की भूमिका में पंकज बेरी जमते हैं वासु के किरदार में हेमंत पांडेय फ़िल्म में कॉमेडी और सस्पेंस दोनो पक्ष को बहुत सहजता से निभाते हैं फ़िल्म में दो गानो क्रमश गड़बड़-गड़बड़ में दलेर मेंहंदी की अतिथि भूमिका और बदनाम ना कर देना में ब्रुना अब्दुलाह की प्रस्तुति अच्छी लगती हैं दलेर मेहंदी लम्बे समय के बाद किसी फिल्म के गाने पर परफॉर्म करते नजर आ रहे है.
फाइनल टेक: निर्देशक दुष्यंत प्रताप सिंह फिल्म की कहानी को एक जबरजस्त सस्पेंस और थ्रील के साथ प्रस्तुत करते हैं एक बार तो ऐसा लगता हैं की सचमुच कविता अपनी बीमारी की वजह से अपने पति को पहचान नहीं पा रही हैं लेकिन फ़िल्म में थोड़े थोड़े समय के अंतराल के बाद ऐसी घटनायें होती रहती हैं जिससे पता चलता हैकी सबकुछ वैसा नहीं है जैसे दिखाई दे रहा हैं. फिल्म के सभी किरदार एक षड्यंत्र का हिस्सा लगते हैं यही इस कहानी की खूबसूरती हैं क्योंकि इस सभी घटनाओं के पीछे का सच जब सामने आता है तो सबसे ज्यादा चौकाने वाला होता हैं. निर्देशक एक सधी प्रस्तुति के साथ पर्दे पर सस्पेंस और रोमांच दिखाने में कामयाब रहते हैं.