97 वर्ष की उम्र में अपनी जिंदादिली से फिल्म जगत के लोगों को चौंकाते आ रहे एक्टर चंद्रशेखर जी.वैद्य
फिल्मकार चंद्रशेखर जी.वैद्य (Photo Credits : IANS)

मुंबई : बॉलीवुड के जाने-माने अभिनेता व फिल्मकार चंद्रशेखर जी.वैद्य (Chandrashekhar Ji Vaidya) आज 97 की उम्र में भी अपने परिवार की चारों पीढ़ियों, दोस्तों, प्रशंसकों और फिल्म जगत के लोगों को अपनी जिंदादिली से चौंकाते आ रहे हैं.

अपने करियर में उन्होंने 110 फिल्में की, जिनमें से साल 1964 में आई फिल्म 'चा चा चा' और 1966 में आई फिल्म 'स्ट्रीट सिंगर' का उन्होंने निर्देशन भी किया है. लोग आज इस दिग्गज कलाकार को इंडस्ट्री में 'चंद्रशेखर साब' के नाम से पुकारते हैं. उनके दौर के कई बड़े नाम आज इतिहास के पन्नों में फीके पड़ गए हैं, जबकि चंद्रशेखर आज भी जिंदगी का भरपूर आनंद उठा रहे हैं.

उन्हें आज भी औपचारिक रूप से कपड़े पहनना पसंद है, वह सेवेन कोर्स मिल का लुफ्त उठाते हैं जिनमें चिकन और मटन बिरयानी उन्हें बेहद पसंद हैं और डिनर टेबल पर अकसर 90 मिनट का वक्त बिताते हैं और अपने परपोते-पोतियों संग खूब मस्ती करते हैं. जाने-माने टीवी सीरियल निर्माता अशोक शेखर ने आईएएनएस को बताया, "पापा जी हम सबको हैरान कर देते हैं, ईश्वर ने उन्हें अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद दिया है."

उन्होंने आगे कहा, "सात जुलाई को उन्होंने एक नवयुवक जैसे उत्साह के साथ अपना 97वां जन्मदिन मनाया, उस दौरान वह जी भरकर हंसे, मुस्कुराए, अपने पसंदीदा जायकों का आनंद लिया. वह हम सभी को खूब प्रेरित करते हैं." साल 1923 में उनका जन्म हैदराबाद के पूर्ववर्ती राज्य में हुआ था, बहुत कम उम्र में ही वह फिल्मी दुनिया में आ गए थे, जिस वजह से उन्हें कॉलेज की पढ़ाई छोड़नी पड़ी.

उनकी हिंदी और उर्दू काफी अच्छी थी, इसलिए लोगों ने उन्हें तेलुगू फिल्मों की जगह हिंदी फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाने की सलाह दी. सन् 1940 के शुरुआती दिनों में वह बंबई आ गए और ब्रिटेन से वेस्टर्न डांसिंग में डिप्लोमा किया. उस वक्त हिंदी फिल्मों के ब्लैक एंड व्हाइट दौर में दिलीप कुमार, राज कपूर, देव आनंद और राजेंद्र कुमार जैसे कलाकारों का दबदबा था, लेकिन कड़ी मेहनत से चंद्रशेखर ने वहां अपनी पहचान बनाई.

अशोक शेखर ने पुराने दौर को याद करते हुए कहा, "दिवंगत गायिका शमशाद बेगम की सिफारिश से मेरे पिता को पुणे में शालिमार स्टूडियो में नौकरी मिल गई." साल 1950 में आई फिल्म 'बेबस' के अभिनेता व हिंदी फिल्मों के पहले 'चॉकलेटी ब्वॉय' भारत भूषण संग जान-पहचान बढ़ी तो उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में एक अभिनेता के तौर पर अपने पैर जमाने में मदद मिली.

इसके बाद उन्होंने 1953 में 'सुरंग' से अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत की, जिसके बाद साल 1954 में उनकी दो फिल्में आई 'कवि' और 'मस्ताना', 'बरा-दरी (1955)', 'बंसत बहार (1956)', 'काली टोपी लाल रूमाल (1959)', 'बरसात की रात (1960)' और 'बात एक रात की (1961)' जैसी कई फिल्मों में उन्होंने काम किया.

वह बॉलीवुड के कुछेक कलाकारों में से हैं जिन्होंने उस दौर के शीर्ष निर्देशकों और मेगा-स्टार्स संग काम किया जैसे कि वी. शांताराम, नितिन बोस, देवकी बोस, विजय भट्ट, भगवान, बी.आर.चोपड़ा, प्रकाश मेहरा, मनमोहन देसाई, शक्ति सामंत, रामानंद सागर, प्रमोद चक्रवर्ती, दिलीप कुमार, देव आनंद, राजेंद्र कुमार, भारत भूषण, दारा सिंह, राजेश खन्ना, मनोज कुमार और अमिताभ बच्चन इत्यादि. फिल्म जगत में उनका योगदान काफी बड़ा है और इस बात का सबूत उनके कमरे में सजे तमाम पुरस्कार, सम्मान और प्रमाणपत्र हैं.