साल 2021 में 140 देशों ने जंगलों की कटाई बंद करने का संकल्प लिया था. इसके बावजूद जंगल खत्म हो रहे हैं. आखिरकार जंगलों की हिफाजत करने का संकल्प पूरा क्यों नहीं हो पा रहा है?एक तरफ जलवायु परिवर्तन का असर तेजी से बढ़ रहा है, तो वहीं दुनियाभर में जंगल नष्ट हो रहे हैं. हाल ही में जारी 'स्टेट ऑफ फॉरेस्ट्स' रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल दुनियाभर में लातविया देश के बराबर का वन्यक्षेत्र नष्ट हो गया. यह रिपोर्ट शोध संस्थानों और नागरिक समूहों ने मिलकर प्रकाशित की है.
जंगल के सबसे बड़े हिस्से का नुकसान जिन देशों में हुआ है उनमें ब्राजील, इंडोनेशिया, बोलिविया और डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो शामिल हैं. अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन में जंगलों के नष्ट होने के प्राथमिक कारणों में खेती, सड़क निर्माण, आग और व्यावसायिक कटाई शामिल हैं.
साल 2021 में ग्लास्गो में हुए संयुक्त राष्ट्र के 26वें जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में 140 से अधिक देशों ने जंगलों की कटाई बंद करने का संकल्प लिया था. हालांकि, यह संकल्प बहुत प्रभावी नहीं दिख रहा है. हालिया आंकड़े दिखाते हैं कि सिर्फ पिछले साल ही 63.7 लाख हेक्टेयर जंगल खत्म हो गए. 'फॉरेस्ट डेक्लरेशन असेसमेंट' ने भी जानकारी दी कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तय किए गए लक्ष्य हासिल करने के लिए वनों की कटाई को जितने पर सीमित किए जाने की जरूरत है, उससे भी 45 प्रतिशत अधिक जंगल काटे जा रहे हैं. यानी इस दिशा में हो रहे प्रयास पर्याप्त और प्रभावी नहीं हैं.
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भारत में भी स्थिति में सुधार नहीं
डॉ. सुदेश वाघमारे मध्य प्रदेश में उप वन संरक्षक रह चुके हैं. डीडब्ल्यू हिन्दी से बातचीत में उन्होंने बताया कि इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत में लगातार जंगलों की कटाई हो रही है. वह बताते हैं, "भारत में वनों की कटाई के चार प्रमुख आधिकारिक कारण हैं. कोयला या खनिज के खनन के लिए, सिंचाई परियोजनाओं के लिए, सड़क निर्माण के लिए या फिर ट्रांसमिशन (विद्युत आपूर्ति) के लिए जंगल की जमीन इस्तेमाल की जाती है. इसके अलावा अनाधिकारिक अतिक्रमण और अवैध रूप से जंगलों के काटने के कारण भी डिफोरेस्टेशन हो रहा है."
सुदेश वाघमारे जोड़ते हैं, "जंगल के नजदीक या फिर अंदर रहने वाले लोग लगातार अतिक्रमण बढ़ाते जा रहे हैं. इनमें से महज 25 प्रतिशत मामले ही रिपोर्ट किए जाते हैं. अतिक्रमण के 75 फीसदी मामलों की कोई आधिकारिक रिपोर्ट सामने नहीं आती."
'फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया' भारत के वन आवरण का मूल्यांकन करता है. भारत राज्य वन रिपोर्ट (आईएसएफआर) की 2021 की रिपोर्ट बताती है कि 2019 से 2021 के दौरान भारत में 721 वर्ग किलोमीटर जंगलों की वृद्धि हुई. इसका अर्थ है कि इस दौरान वृक्ष आवरण में कोई भी नुकसान नहीं हुआ, लेकिन ये आंकड़े कितने विश्वसनीय हैं यह अभी भी सवालों के घेरे में है. इस बारे में डॉ. सुदेश वाघमारे कहते हैं कि सरकार की तरफ से होने वाले सर्वे में सैटेलाइट द्वारा मैपिंग की जाती है और इनमें कई बार गन्ने या अरहर के बड़े खेतों और निजी बागानों को भी जंगलों में शामिल कर लिया जाता है. ऐसे में वन आवरण की पुष्टि का ये तकनीकी तरीका सही नहीं माना जा सकता.
1980 से 2021 के बीच 40 वर्षों में जंगल की 9.9 लाख हेक्टेयर जमीन गैर-वनीय कार्यों के लिए उपयोग की गई. वहीं, 2008 से 2023 के बीच के बीच 15 वर्षों में जंगलों की लगभग 60 हजार हेक्टेयर जमीन कोयला और खनिज खनन के लिए, 45 हजार हेक्टेयर जमीन सड़क के लिए, 36 हजार हेक्टेयर जमीन सिंचाई परियोजनाओं और 26 हजार हेक्टेयर जमीन ट्रांसमिशन प्रोजेक्ट के लिए दी गई. इस लिहाज से देखा जाए तो जंगल का एक बड़ा हिस्सा नॉन-फॉरेस्ट्री कामों में इस्तेमाल किया जा रहा है.
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जंगल बचाने पर पुनर्विचार जरूरी
'स्टेट ऑफ फॉरेस्ट्स' रिपोर्ट के अनुसार, 'जीरो डिफॉरेस्टेशन' की दिशा में की गई प्रगति को निर्धारित अंतरिम लक्ष्य 2030 के जरिए ट्रैक किया गया. इसकी तुलना आज के जंगलों के कटने की दर से की गई. पाया गया कि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में लगभग 96 प्रतिशत जंगलों की कटाई हुई है और कमोबेश ये सभी क्षेत्र अपने सालाना लक्ष्य को पूरा कर पाने में असफल रहे. 2023 में सिर्फ ओशीनिया के द्वीप और ऑस्ट्रेलिया के उत्तर और पूर्व में प्रशांत क्षेत्र के देशों ने यह लक्ष्य पूरा किया.
रिपोर्ट के मुख्य लेखक और 'क्लाइमेट फोकस' संस्था के ईवान पामेजियानी ने समाचार एजेंसी डीपीए से कहा, "बदलाव संभव है, लेकिन औद्योगिक देशों को (संसाधनों के) अत्यधिक उपभोग पर पुनर्विचार करना चाहिए और वन-समृद्ध देशों की अपने वनों के संरक्षण की कोशिशों में उनका साथ देना चाहिए."
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दुनिया में जंगलों की कटाई की दर सबसे ज्यादा ब्राजील में दर्ज की गई है. हालांकि, रिपोर्ट के अनुसार पूर्ववर्ती राष्ट्रपति बोल्सोनारो के कार्यकाल की तुलना में वर्तमान राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला दा सिल्वा की सरकार इस दिशा में बेहतर प्रदर्शन कर रही है. सिल्वा के कार्यकाल में जंगलों की कटाई कम हुई है. पिछले साल ब्राजील में अमेजन जंगलों की कटाई की दर में 2022 की अपेक्षा 62% तक की कमी दर्ज की गई. वहीं, 2019 से 2022 के दौरान जब बोल्सोनारो राष्ट्रपति थे, तब अमेजन जंगलों की कटाई पिछले दशक के औसत के मुकाबले 75 प्रतिशत तक बढ़ गई थी. विशाल कार्बन सिंक की भूमिका निभाने वाले अमेजन वर्षावन वैश्विक धरोहर हैं और जलवायु परिवर्तन से निपटने की मुहिम में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं.