(ओल्गा अनिकेवा , रिसर्च फेलो , स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ , एडिलेड विश्वविद्यालय ; जेसिका स्टैनहोप , लेक्चरर , स्कूल ऑफ एलाइड हेल्थ साइंस एंड प्रैक्टिस , एडिलेड विश्वविद्यालय ; पेंग बी , प्रोफेसर , स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ , एडिलेड विश्वविद्यालय ; और फिलिप वेनस्टीन , प्रोफेसरियल रिसर्च फेलो , स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ , एडिलेड विश्वविद्यालय)
मेलबर्न , 26 सितंबर (द कन्वरसेशन) पूरी दुनिया में संक्रामक रोगों के फैलने से होने वाली महामारी वापस लौटती प्रतीत हो रही है। मध्य युग में ‘ ब्लैक डेथ’ (प्लेग) और प्रथम विश्व युद्ध के बाद फैले स्पैनिश फ्लू ने करोड़ों लोगों को मौत की नींद सुला दिया था।
इसके बाद विज्ञान ने उड़ान भरी तथा चेचक और पोलियो का, टीकाकरण से लगभग सफाया हो गया । जीवाणुओं से होने वाले संक्रमण के इलाज के लिए एंटीबायोटिक्स और हाल ही में एंटीवायरल भी उपलब्ध हो गए।
बावजूद इसके, अब महामारियां फिर से लौटती दिख रही हैं। 1980 के दशक में हमारे यहां एचआईवी / एड्स , फिर फ्लू महामारियां , सार्स और अब कोविड (जो अभी खत्म नहीं हुआ है) ने कहर ढाया ।
ऐसा क्यों हो रहा है और क्या हम भविष्य में महामारियों को रोकने के लिए कुछ कर सकते हैं ?
असंतुलित पारिस्थितिकी तंत्र
स्वस्थ और स्थिर पारिस्थितिकी तंत्र हमें स्वस्थ रखते हैं। ये भोजन और स्वच्छ जल की आपूर्ति , ऑक्सीजन का उत्पादन तथा हमारे मनोरंजन और स्वस्थ रहने के लिए हरे - भरे स्थान उपलब्ध कराते हैं। खास बात यह है कि ये तंत्र बीमारियों का नियमन भी करते हैं।
प्रकृति जब संतुलन में होती है तो रोगजनक कारकों के लिए महामारी का कारण बनने वाले तरीकों को बढ़ावा दे पाना मुश्किल होता है। संतुलन से तात्पर्य उस स्थिति से है जिसमें शाकाहारी आबादी को शिकारी नियंत्रित करते हैं और वनस्पति को शाकाहारी नियंत्रित करते हैं ।
जब मानवीय गतिविधियां, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता की हानि से पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित और असंतुलित करती हैं तो चीजें गलत हो जाती हैं।
उदाहरण के तौर पर मच्छरों को देखें तो ये संक्रमण फैलाते हैं और गर्म स्थानों से उन स्थानों पर चले जाते हैं जहां जलवायु उनके अनुकूल यानी मध्यम हो। इसी तरह पानी में पाई जाने वाली कृमि अपने जीवनकाल की उस अवधि में अधिकाधिक लोगों को संक्रमित कर सकती है जिसे सामान्यत: रोग मुक्त अवधि कहा जाता है।
जैव विविधता के नुकसान से ' फूड चेन ' में व्यवधान उत्पन्न होता है और तब भी ऐसे प्रतिकूल परिणाम सामने आ सकते हैं।
चूंकि शहरी और कृषि विकास प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्रों पर प्रभाव डाल रहा है , इसलिए मनुष्यों और पालतू पशुओं के लिए उन रोगाणुओं से संक्रमित होने की आशंकाएं बढ़ रही हैं जो सामान्यतः केवल वन्यजीवों में ही देखे जाते हैं - विशेषकर तब जब लोग जंगली जानवरों का शिकार करके उन्हें खाते हैं।
उदाहरण के तौर पर एचआईवी वायरस को देखें। अफ्रीका में भोजन के लिए मारे गए ' एप्स ' (वानरों की एक प्रजाति) से मानव में आया एचआईवी वायरस यात्रा और व्यापार के माध्यम से विश्व भर में फैल गया।
अब तक 70 लाख से अधिक लोगों की जान लेने वाली कोविड महामारी के वायरस का मूल स्रोत चमगादड़ों को माना जाता है।
जब तक हम अपने ग्रह पर पड़ने वाले प्रभाव का कारगर समाधान नहीं करेंगे तब तक महामारियां आती रहेंगी।
अंतिम कारणों को लक्ष्य बनाना
जलवायु परिवर्तन , जैव विविधता का नुकसान और अन्य वैश्विक चुनौतियां महामारी का मुख्य कारण हैं। इस बीच , मनुष्यों , पालतू जानवरों और वन्यजीवों के बीच बढ़ता संपर्क भी इसका एक तात्कालिक कारण है।
एचआईवी के मामले में वानरों की प्रजाति ' एप्स ' के संक्रमित रक्त के साथ सीधा संपर्क मुख्य कारण था। ' एप्स ' को इसलिए मारा जा रहा था क्यों कि गरीबों की बड़ी संख्या भूख से बेहाल थी और यह एक ‘अंतिम’ मुख्य कारण था।
अंतिम कारणों और तात्कालिक कारणों के बीच अंतर महत्वपूर्ण है । हम अक्सर केवल तात्कालिक कारण से ही निपटते हैं।
उदाहरण के लिए लोग तनाव या सामाजिक दबाव की वजह से धूम्रपान करते हैं और धूम्रपान फेफड़ों के कैंसर का असली तथा अंतिम कारण होता है। लेकिन धुएं में मौजूद विषाक्त पदार्थ कैंसर का (तात्कालिक / निकटतम) कारण बनते हैं।
सामान्यतः स्वास्थ्य सेवाएं लोगों को केवल धूम्रपान से रोकने तथा उसकी वजह से होने वाली बीमारी का उपचार करने तक ही सीमित रहती हैं। वे उन कारणों को दूर करने का प्रयास नहीं करतीं जो धूम्रपान की ओर ले जाते हैं।
इसी तरह हम महामारी से निपटने के लिए ' लॉकडाउन ', मास्क , सामाजिक दूरी और टीकाकरण का सहारा लेते हैं। ये सभी उपाय वायरस के संक्रमण को फैलने से रो कने के लिए हैं , लेकिन हम महामारी के अंतिम कारणों के समाधान पर कम ध्यान देते हैं।
' प्लेनेटरी ' स्वास्थ्य दृष्टिकोण
मानव स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए " ग्रह का स्वास्थ्य " (प्लेनेटरी हेल्थ) संबंधी दृष्टिकोण अपनाने के महत्व को लेकर जागरूकता बढ़ रही है। यह अवधारणा इस समझ पर आधारित है कि मानव स्वास्थ्य और मानव सभ्यता समृद्ध प्राकृतिक तंत्रों और उनके बुद्धिमत्तापूर्ण प्रबंधन पर निर्भर करती है।
इस दृष्टिकोण के साथ, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता हानि जैसे अंतिम कारकों को भविष्य की महामारियों को रोकने के लिए प्राथमिकता दी जाएगी। साथ ही विशेषज्ञों के साथ मिलकर तात्कालिक कारणों से निपटने के लिए काम किया जाएगा, जिससे समग्र जोखिम कम हो जाएगा।
" ग्रह का स्वास्थ्य " (प्लेनेटरी हेल्थ) संबंधी दृष्टिकोण पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य दोनों के लिए लाभकारी है।
चूंकि जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की हानि, जनसंख्या विस्थापन, यात्रा और व्यापार के कारण रोग फैलने का खतरा लगातार बढ़ रहा है। इसलिए महामारी को बढ़ावा देने वाले अंतिम कारणों से निपटने की जानकारी और समझ होना महत्वपूर्ण है।
(द कन्वरसेशन)
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