नयी दिल्ली, 24 दिसंबर देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 30 दिसंबर 1984 में मुंबई के शिवाजी पार्क में आयोजित भाजपा अधिवेशन के उद्घाटन सत्र को अपनी चिरपरिचित शैली में संबोधित करते हुए भविष्यवाणी की थी, ‘‘ अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा’’।
वाजपेयी की जन्म शताब्दी बुधवार को है और उन्होंने करीब चार दशक पहले अपने संबोधन में जो कहा था वह सच साबित हुई है क्योंकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)लगातार तीसरी बार केंद्र की सत्ता में लौटी है और कमल पूरी तरह खिल चुका है।
यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भाजपा के सांस्कृतिक एजेंडे को राष्ट्रीय राजनीति का केन्द्र बनाया, तो वाजपेयी ने पार्टी को उस समय इसे केन्द्र में लाने में मदद की, जब उसके सांस्कृतिक एजेंडे को अभिशाप माना जाता था।
एक राजनेता और अद्वितीय वक्ता वाजपेयी भारत के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया। उन्हें सभी राजनीतिक दलों से सम्मान और स्नेह मिला तथा वे अपनी जन्मजात लोकतांत्रिक भावना के साथ मजबूती से सदैव खड़े रहे जो उन्होंने दशकों तक विपक्ष में रहकर, शक्तिशाली क्षत्रपों से भरी राजनीति में विकसित की थी।
देश के तीन बार प्रधानमंत्री रहे मोदी राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन राजनीति के मूल सूत्रधार थे। वाजपेयी ने गठबंधन सरकार को सफलतापूर्वक पूर्ण कार्यकाल तक चलाया और इस दौरान उन्होंने कुछ सबसे बड़े राष्ट्रीय संकटों से भी निपटा, जिनमें 1999 में विमान अपहरण और 2001 में संसद पर आतंकवादी हमला शामिल थे, और दोनों ही घटनाओं का पाकिस्तान से सीधा संबंध था।
उनकी सरकार द्वारा दोनों घटनाओं से निपटने के तौर तरीकों को लेकर कुछ वर्गों द्वारा आलोचना की गई। इनमें दक्षिणपंथी संगठन भी शामिल थे, जिन्हें वैचारिक रूप से भाजपा से संबद्ध माना जाता है, लेकिन उनके सांस्कृतिक और आर्थिक एजेंडे को आगे न बढ़ाने के कारण उनके प्रति कम मित्रवत माना जाता है। हालांकि, उनकी स्थिति ने यह सुनिश्चित किया कि उन्हें किसी राजनीतिक खतरे या लोकप्रिय प्रतिक्रिया का सामना न करना पड़े।
वाजपेयी की सरकार अप्रैल 1999 में लोकसभा में एक वोट से गिर गई थी, तब उन्होंने एक कार्यवाहक सरकार के प्रमुख के रूप में कारगिल में पाकिस्तान की घुसपैठ का दृढ़ता से सैन्य और कुशल कूटनीतिक जवाब दिया जिसे प्रशंसा मिली और भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग)को अधिक स्थिर बहुमत मिला, जिससे उनकी सरकार का पूर्ण कार्यकाल सुनिश्चित हुआ।
वाजपेयी के छह साल के प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान उनके मीडिया सलाहकार रहे अशोक टंडन ने कहा कि वह एक उत्कृष्ट सांसद थे, जिन्होंने 1957 में पहली बार लोकसभा में कदम रखा और लगातार ‘‘संसदीय लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने’’ में अपना योगदान दिया। इसके साथ ही सरकार के मुखिया के रूप में उन्होंने ‘सुशासन’ को एजेंडे के केंद्र में रखा।
टंडन ने ‘पीटीआई-’ से कहा, ‘‘सुशासन उनका ऐतिहासिक योगदान था। उन्होंने विभिन्न दलों के गठबंधन का नेतृत्व किया और उन्हें एकजुट रखा, साथ ही ऐसी नीतियां अपनाईं जिनसे देश को हर क्षेत्र में मदद मिली।’’ उन्होंने वाजपेयी के नेतृत्व में शुरू हुईं सर्व शिक्षा अभियान, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना और स्वर्णिम चतुर्भुज राजमार्ग परियोजनाओं का हवाला दिया।
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