नैनीताल, आठ अगस्त उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने डकैती के दौरान एक महिला की कर दी गयी हत्या के मामले में निचली अदालत द्वारा दो व्यक्तियों को सुनायी गयी मौत की सजा को पलट दिया और उन्हें यह कहते हुए बरी कर दिया कि मुकदमे के दौरान 'अस्पष्ट अनुमान' और 'निश्चित निष्कर्षों' में अंतर किया जाना चाहिए।
मंगलवार को दिए अपने आदेश में निचली अदालत को फटकार लगाते हुए मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने कहा कि मुकदमे के दौरान संदेह, चाहे वह कितना भी मजबूत क्यों न हो, सबूत की जगह नहीं ले सकता।
खंडपीठ ने सत्येश कुमार उर्फ सोनू और मुकेश थपलियाल को डकैती और हत्या के आरोपों से बरी कर दिया और उनकी रिहाई के आदेश दिए।
उच्च न्यायालय ने कहा कि गवाहों के बयान गंभीर संदेह उत्पन्न करते हैं। खंडपीठ ने कहा कि संदेह, चाहे वह कितना भी मजबूत क्यों न हो, कभी सबूत की जगह नहीं ले सकता ।
खंडपीठ का कहना था कि यह सुनिश्चित करना अदालत का दायित्व है कि किसी भी अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिए केवल अनुमान या संदेह किसी विधिक प्रमाण का स्थान न ले ।
उच्च न्यायालय ने कहा कि 'हो सकता है' और 'होना चाहिए' में फर्क को ध्यान में रखा जाना चाहिए ।
खंडपीठ ने यह भी कहा कि आपराधिक मामले में मुकदमे के दौरान 'अस्पष्ट अनुमानों' और 'निश्चित निष्कर्षों' में अंतर किया जाना चाहिए ।
महिला के पुत्र ने जून 2017 को शिकायत की थी जिसके आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गयी थी। प्राथमिकी के अनुसार, कुमार और थपलियाल ने रुद्रप्रयाग जिले के कोट बांगर गांव में सरोजिनी देवी के घर डकैती डाली और उनकी हत्या करने के बाद उनका शव घर के पीछे छुपा दिया ।
इस घटना का कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं था लेकिन लूटे गए कुछ गहने और धन उन दोनों के पास से बरामद हुए थे ।
सं दीप्ति
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)