संयुक्त राष्ट्र, 27 दिसंबर भारत शक्तिशाली संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपने दो साल के कार्यकाल के दौरान वैश्विक-दक्षिण की आवाज के रूप में उभरा जिसने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण और अन्य वैश्विक संकटों पर गहन विचार-विमर्श किया।
वर्ष 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के चलते जहां खाद्य एवं ईंधन असुरक्षा अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गई, वहीं दुनिया महामारी के चलते बढ़ी असमानताओं से भी जूझती रही।
आगामी 31 दिसंबर, 2022 को 15 सदस्यीय परिषद में अपनी गैर-स्थायी सीट छोड़ने से पहले, भारत ने दिसंबर में शक्तिशाली संयुक्त राष्ट्र निकाय की अध्यक्षता की, जिसमें संयुक्त राष्ट्र में देश की पहली महिला स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठीं।
निर्वाचित गैर-स्थायी सदस्य के रूप में परिषद में भारत के 2021-2022 के कार्यकाल के दूसरे वर्ष में लगभग दो महीने बाद में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 24 फरवरी को पूर्वी यूक्रेन में एक 'विशेष सैन्य अभियान' शुरू किया।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतारेस ने पुतिन से "यूक्रेन पर हमला करने से अपने सैनिकों को रोकने" और शांति स्थापित करने की अपील की। उन्होंने आक्रमण को "संयुक्त राष्ट्र महासचिव के रूप में अपने कार्यकाल का सबसे दुखद क्षण" करार दिया।
यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद संयुक्त राष्ट्र में भारत के तत्कालीन दूत टी एस तिरुमूर्ति ने फरवरी में तनाव को तत्काल कम करने के लिए नयी दिल्ली के आह्वान को रेखांकित किया और आगाह किया कि स्थिति एक बड़े संकट में तब्दील सकती है।
पूरे वर्ष परिषद और महासभा के बयानों में, भारत ने शत्रुता और हिंसा को तत्काल समाप्त करने का लगातार आह्वान किया। नयी दिल्ली ने इस बात पर जोर दिया कि बातचीत और कूटनीति ही आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका है तथा संघर्ष बढ़ाने वाली गतिविधियों से बचा जाना चाहिए।
गुतारेस ने कहा, "हमारी दुनिया ने 2022 में कई विकट स्थितियों का सामना किया- कुछ परिचित..., तथा अन्य ऐसी रहीं जिनके बारे में हमने महज एक साल पहले कल्पना भी नहीं की होगी।"
उन्होंने कहा कि यहां तक कि यूक्रेन में क्रूर युद्ध में भी, दृढ़ संकल्प, विवेकपूर्ण कूटनीति की शक्ति ने लोगों की मदद की है और अभूतपूर्व स्तर की वैश्विक खाद्य असुरक्षा से निपटने में भी सहायता की है।
सुरक्षा परिषद, महासभा और मानवाधिकार परिषद में रूस-यूक्रेन युद्ध से संबंधित अधिकतर प्रस्तावों पर भारत अनुपस्थित रहा, जिसमें महासभा का एक दुर्लभ आपातकालीन विशेष सत्र बुलाने के लिए सुरक्षा परिषद का प्रक्रियात्मक संकल्प भी शामिल था।
193-सदस्यीय महासभा ने यूक्रेन के खिलाफ रूस की आक्रामकता पर 28 फरवरी को दुर्लभ आपातकालीन सत्र बुलाया। 1950 के बाद से महासभा का यह 11वां आपातकालीन सत्र था।
अगस्त में न्यूयॉर्क में भारत के स्थायी मिशन का कार्यभार संभालने वाली कंबोज ने जोर देकर कहा कि यूक्रेन संघर्ष के दौरान भारत ने "एक स्वर में कहा है कि हम शांति के पक्ष में हैं। शांति भी एक पक्ष है और हम कूटनीति एवं संवाद के पक्षधर हैं … हम उन कुछ देशों में से हैं, मैं कहने की हिम्मत करती हूं, जो दोनों पक्षों से बात कर रहे हैं।”
यूक्रेन संघर्ष के महीनों तक जारी रहने के बीच भारत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इसका प्रभाव केवल यूरोप तक ही सीमित नहीं है। वैश्विक-दक्षिण विशेष रूप से गंभीर आर्थिक परिणामों का सामना कर रहा है। ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा के बारे में बढ़ती चिंताओं के साथ कोविड-19 महामारी से उत्पन्न कठिनाइयां भी बढ़ रही हैं।
भारत ने 100 से अधिक देशों को कोविड-19 टीकों की 24 करोड़ खुराकों की आपूर्ति करने के साथ ही यूक्रेन को मानवीय सहायता और संघर्ष के प्रभाव के कारण आर्थिक संकट से जूझ रहे वैश्विक-दक्षिण में अपने कुछ पड़ोसियों को आर्थिक सहायता प्रदान की।
कंबोज ने कहा, "हम वहां मानवीय संकट से निपटने के लिए हैं। यह सब इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि भारत एक ऐसे देश के रूप में वैश्विक शीर्ष तालिका में अपना स्थान लेने के लिए तैयार है जो मेज पर समाधान लाने और वैश्विक एजेंडे में सकारात्मक योगदान देने के लिए तैयार है।"
उन्होंने कहा, ‘‘परिषद की हमारी सदस्यता के पिछले दो वर्षों में, मैं विश्वास के साथ कह सकती हूं कि हम जिम्मेदारियों को अच्छी तरह से निभा रहे हैं, और परिषद के भीतर विभिन्न आवाजों में दूरी पाटने का हरसंभव प्रयास कर रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जहां तक संभव हो, विभिन्न मुद्दों पर परिषद स्वयं एक स्वर में बोलती है।”
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जब बहुपक्षवाद में सुधार पर इस महीने परिषद की भारत की अध्यक्षता में आयोजित एक कार्यक्रम की अध्यक्षता की, तो उन्होंने जोर देकर कहा कि संघर्ष की स्थितियों के प्रभावों ने अधिक व्यापक वैश्विक शासन की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
यह उल्लेख करते हुए कि सुधार "समय की आवश्यकता" हैं, भारत ने कहा कि "दुनिया वैसी नहीं है जैसी 77 साल पहले थी। संयुक्त राष्ट्र के 193 देशों के सदस्य 1945 में मौजूद 55 सदस्य देशों की तुलना में तिगुने से अधिक हैं। हालांकि, वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए जिम्मेदार सुरक्षा परिषद की संरचना अंतिम बार 1965 में तय की गई थी और इससे संयुक्त राष्ट्र की व्यापक सदस्यता की विविध सच्चाई प्रतिबिंबित नहीं होती।
सुरक्षा परिषद में भारत के कार्यकाल के कार्यों का सारांश देते हुए, जयशंकर ने कहा कि देश ने चिंता के कई मुद्दों पर वैश्विक-दक्षिण की आवाज को मुखरता से उठाया है। उन्होंने कहा, "हमने न केवल उनके हितों और चिंताओं को स्पष्ट करने की कोशिश की है, बल्कि यह देखने की भी कोशिश की है कि क्या हम परिषद में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके हैं।"
वर्ष 2028-29 के अगले कार्यकाल के लिए परिषद में भारत की उम्मीदवारी की घोषणा करते हुए, जयशंकर ने कहा, "हम वापस आने के लिए उत्सुक हैं।"
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