चेन्नई, सात जनवरी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने मंगलवार को कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के मसौदा विनियम 2025, राज्यपालों को कुलपति की नियुक्तियों के सिलसिले में व्यापक शक्तियां प्रदान करते हैं और गैर-शिक्षाविदों को इन पदों पर नियुक्त करने की अनुमति देते हैं, जो संघवाद और राज्य के अधिकारों पर सीधा हमला है।
उन्होंने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान द्वारा 6 जनवरी को राष्ट्रीय राजधानी में जारी किए गए यूजीसी विनियम, 2025 के मसौदे पर कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार का यह 'अधिनायकवादी' कदम सत्ता को केंद्रीकृत करने और लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई राज्य सरकारों को कमजोर करने की कोशिश है।
ये विनियम विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों और शैक्षणिक कर्मियों की नियुक्ति व पदोन्नति के लिए न्यूनतम योग्यताएं निर्धारित करते हैं तथा उच्च शिक्षा में मानकों को बनाए रखने के उपाय करते हैं।
कार्यक्रम में प्रधान ने कहा था कि ये मसौदा सुधार और दिशानिर्देश उच्च शिक्षा के हर पहलू में नवाचार, समावेशिता, लचीलापन और गतिशीलता लाएंगे, शिक्षकों और शैक्षणिक कर्मियों को सशक्त बनाएंगे, शैक्षणिक मानकों को मजबूत करेंगे और शैक्षिक उत्कृष्टता प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करेंगे।
इस पर आपत्ति जताते हुए मुख्यमंत्री ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘शिक्षा जनता द्वारा चुने गए लोगों के हाथों में रहनी चाहिए, न कि भाजपा सरकार के इशारे पर काम करने वाले राज्यपालों के हाथों में।’’
उन्होंने कहा, ‘‘शिक्षा हमारे संविधान में समवर्ती सूची का विषय है, और इसलिए हम मानते हैं कि यूजीसी द्वारा एकतरफा तरीके से यह अधिसूचना जारी करने का कदम असंवैधानिक है। यह अस्वीकार्य है, और तमिलनाडु कानूनी और राजनीतिक रूप से इसका मुकाबला करेगा।’’
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