नयी दिल्ली, आठ अप्रैल उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक में सूखा प्रबंधन के लिए राज्य को राष्ट्रीय आपदा मोचन कोष (एनडीआरएफ) से वित्तीय सहायता जारी करने के अनुरोध वाली याचिका पर सोमवार को सुनवाई करते हुए कहा कि केंद्र और प्रदेश के बीच कोई "टकराव" नहीं होना चाहिए।
केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ को बताया कि वे इस मामले में निर्देश प्राप्त करेंगे।
शीर्ष अदालत कहा कि विभिन्न राज्य सरकारों को अदालत का रुख करना होता है। शीर्ष अदालत ने केंद्र को कर्नाटक की याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए कहा।
सॉलिसिटर जनरल ने अदालत से मामले की सुनवाई दो सप्ताह बाद करने का आग्रह करते हुए कहा कि वे इस मामले में निर्देश लेंगे। पीठ ने कहा, ''केंद्र और राज्य के बीच टकराव नहीं होना चाहिए।''
मेहता ने कहा कि शीर्ष अदालत में याचिका दायर करने के बजाय, अगर किसी ने इस मुद्दे पर प्राधिकारियों से बात की होती, तो समस्या का समाधान हो सकता था।
पीठ ने कहा, "हमने देखा है कि विभिन्न राज्य सरकारों को अदालत का रुख करना पड़ा है।"
मेहता ने कहा, "मैं यह नहीं कहना चाहता कि क्यों, लेकिन यह बढ़ती प्रवृत्ति है...।’’
जब पीठ ने मौखिक रूप से कहा कि वह केंद्र को नोटिस जारी करेगी, तो सॉलिसिटर जनरल ने कहा, "आपसे नोटिस जारी नहीं करने का अनुरोध है। यह भी खबर बन जाती है। हम यहां हैं।"
पीठ ने कहा कि अग्रिम नोटिस पर पेश हुए शीर्ष कानून अधिकारियों ने कहा है कि वे निर्देश लेंगे और अगली तारीख पर अदालत के समक्ष एक बयान देंगे। शीर्ष अदालत मामले में अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद करेगी।
याचिका में यह भी घोषित करने का अनुरोध किया गया है कि एनडीआरएफ के तहत सूखे की व्यवस्था के लिए वित्तीय सहायता जारी नहीं करने का केंद्र का कदम संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत राज्य के लोगों के लिए गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का "प्रथम दृष्टया उल्लंघन" है।
इसमें कहा गया है कि राज्य "गंभीर सूखे" से जूझ रहा है, जिससे लोगों का जीवन प्रभावित हो रहा है और जून से सितंबर तक के खरीफ सीजन (2023) के लिए कुल 236 तालुकों में से 223 को सूखा प्रभावित घोषित किया गया है।
याचिका में कहा गया है कि 196 तालुकों को गंभीर रूप से प्रभावित और शेष 27 को मध्यम रूप से प्रभावित के तौर पर वर्गीकृत किया गया है।
अधिवक्ता डी एल चिदानंद के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, "खरीफ मौसम के लिए कुल 48 लाख हेक्टेयर से अधिक में कृषि और बागवानी फसलों को क्षति की सूचना मिली है, जिसमें 35,162 करोड़ रुपये का नुकसान (खेती में) होने का अनुमान है।"
इसमें कहा गया है कि एनडीआरएफ के तहत भारत सरकार से मांगी गई सहायता 18,171.44 करोड़ रुपये है।
याचिका में कहा गया है, "आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के संदर्भ में, भारत संघ पर राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता प्रदान करने की जिम्मेदारी है।"
इसमें कहा गया है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 और 2020 की अद्यतन सूखा प्रबंधन नियमावली के तहत कर्नाटक को सूखा प्रबंधन के लिए वित्तीय सहायता देने से इनकार करने के केंद्र के "मनमाने कदम " के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख करने को राज्य बाध्य है।
याचिका में कहा गया, "इसके अलावा, केंद्र सरकार का कदम आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की वैधानिक योजना, सूखा प्रबंधन नियमावली और राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष के गठन और प्रशासन पर दिशानिर्देशों का उल्लंघन है।"
इसमें कहा गया है कि सूखा प्रबंधन के लिए नियमावली के तहत, केंद्र को अंतर-मंत्रालयी केंद्रीय दल (आईएमसीटी) की रिपोर्ट के एक महीने के भीतर एनडीआरएफ से राज्य को सहायता पर अंतिम निर्णय लेना होगा।
याचिका में कहा गया है, ‘‘आईएमसीटी की रिपोर्ट के बावजूद, जिसने 4 से 9 अक्टूबर, 2023 तक विभिन्न सूखा प्रभावित जिलों का दौरा किया और राज्य में सूखे की स्थिति का व्यापक मूल्यांकन किया... आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 9 के तहत गठित राष्ट्रीय कार्यकारी समिति की उप-समिति द्वारा उक्त रिपोर्ट पर विचार करने के बावजूद केंद्र ने उक्त रिपोर्ट की तारीख से लगभग छह महीने बीत जाने के बाद भी एनडीआरएफ से राज्य को सहायता पर अंतिम निर्णय नहीं लिया है।’’
इसमें आरोप लगाया गया कि रिपोर्ट पर कार्रवाई करने और राज्य को वित्तीय सहायता जारी करने के लिए अंतिम निर्णय लेने में केंद्र की निष्क्रियता "स्पष्ट तौर पर अवैध, मनमाना और संविधान के अनुच्छेद 21 अनुच्छेद और 14 के तहत नागरिकों को गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन" है।
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