नयी दिल्ली, 20 फरवरी केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सोमवार को राज्य सरकार के अधिकारियों के साथ मार्च से शुरू होने वाले जायद मौसम के दौरान खाद्यान्न उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने की रणनीति पर चर्चा की।
देश में कृषि फसलें तीन मौसमों में उगाई जाती हैं: खरीफ, रबी और जायद। जायद फसलें, जिन्हें ग्रीष्म काल भी कहा जाता है, रबी (सर्दियों) की फसल और खरीफ (मानसून) की बुवाई के बीच की अवधि में मार्च और मई के बीच बोई जाती हैं।
पिछले चार साल से सरकार जायद के दौरान भी खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान केन्द्रित कर रही है और राज्यों से चर्चा कर रणनीति बनाने के लिए राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित कर रही है।
एक सरकारी बयान कहा गया है कि जायद फसलों पर इस वर्ष के वर्चुअल राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए तोमर ने कहा कि भारत मौजूदा समय में खाद्यान्न उत्पादन के मामले में बहुत अच्छी स्थिति में है, लेकिन वैश्विक मांग को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए देश को अभी भी उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता है।
सम्मेलन ने राज्य सरकारों के परामर्श से जायद मौसम के लिए फसल-वार संभावनाओं की समीक्षा की।
कृषि सचिव मनोज आहूजा ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में जायद फसलों का रकबा बढ़ रहा है। वर्ष 2021-22 में रकबा पिछले वर्ष के 72.69 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 76.41 लाख हेक्टेयर हो गया।
उर्वरक सचिव अरुण सिंघल ने उर्वरकों की समय पर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों को साझा किया।
उन्होंने कहा कि प्रत्येक राज्य के एक जिले में मृदा स्वास्थ्य कार्ड की सिफारिश के आधार पर उर्वरक की आवश्यकता तय करने के लिए प्रायोगिक अध्ययन चल रहा है और सब्सिडी केवल अनुशंसित राशि के लिए दी जाएगी। उन्होंने कहा कि अतिरिक्त उर्वरक पूरी लागत पर दिया जाएगा ताकि सब्सिडी वाले उर्वरक का किसी अन्य कार्य के लिए इस्तेमाल को रोका जा सके।
उन्होंने आयात पर निर्भरता कम करने के लिए नैनो-उर्वरक और जैविक खाद के इस्तेमाल पर जोर दिया।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक हिमांशु पाठक ने जलवायु अनुकूल प्रथाओं को अपनाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
देश में 90 लाख हेक्टेयर में जायद की फसल होती है।
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