नयी दिल्ली, 16 सितंबर मुस्लिम पति द्वारा अपनी पत्नी को किसी भी समय, बिना कारण के और पहले से नोटिस दिए बगैर तलाक (तलाक-उल-सुन्नत) देने के ‘‘एकतरफा अधिकार’’ को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह प्रथा ‘‘मनमाना, शरिया विरोधी, असंवैधानिक, स्वेच्छाचारी और बर्बर’’ है।
न्यायमूर्ति रेखा पल्ली के समक्ष बृहस्पतिवार को जब यह मामला सुनवाई के लिए आया तो उन्होंने कहा कि चूंकि यह जनहित याचिका की प्रकृति की है इसलिए इसे पीआईएल देखने वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए।
याचिकाकर्ता महिला का प्रतिनिधित्व वकील बजरंग वत्स ने किया। इसमें आग्रह किया गया कि पति द्वारा अपनी पत्नी को किसी भी समय तलाक देने के अधिकार को स्वेच्छाचारी घोषित किया जाए।
इसमें इस मुद्दे पर विस्तृत दिशानिर्देश जारी करने का आग्रह किया गया है और निर्देश देने की मांग की गई है कि मुस्लिम विवाह महज अनुबंध नहीं है बल्कि यह दर्जा है।
याचिका 28 वर्षीय मुस्लिम महिला ने दायर की है जिसने कहा कि उसके पति ने इस वर्ष आठ अगस्त को ‘तीन तलाक’ देकर उसे छोड़ दिया और उसके बाद उसने अपने पति को कानूनी नोटिस जारी किया है।
उच्चतम न्यायालय ने अगस्त 2017 में फैसला दिया था कि मुस्लिमों में तीन तलाक की प्रथा अवैध और असंवैधानिक है।
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