देश की खबरें | उच्चतम न्यायालय सिद्धू के विरूद्ध सड़क पर मारपीट मामले में समीक्षा याचिका पर विचार करेगा

नयी दिल्ली, दो फरवरी पंजाब विधानसभा चुनाव से कुछ हफ्ते पहले उच्चतम न्यायालय सड़क पर मारपीट के 31 साल पुराने मामले में नेता नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ सुनाई गई सजा की बृहस्पतिवार को समीक्षा करेगा।

सिद्धू फिलहाल कांग्रेस की पंजाब इकाई के अध्यक्ष हैं और राज्य में 20 फरवरी को विधानसभा चुनाव होने वाला है।

शीर्ष अदालत ने 15 मई, 2018 को इस मामले में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के उस फैसले को दरकिनार कर दिया था जिसमें उन्हें गैर इरादतन हत्या का दोषी करार देकर तीन साल कैद की सजा सुनायी गयी थी। हालांकि, शीर्ष अदालत ने सिद्धू को एक वरिष्ठ नागरिक को चोट पहुंचाने का दोषी माना था।

शीर्ष अदालत ने सिद्धू को 65 साल के बुजुर्ग को ‘जान बूझकर नुकसान पहुंचाने’ के अपराध का दोषी ठहराया था लेकिन उन्हें जेल की सजा से बख्श दिया था एवं उन पर 1000 रूपये का जुर्माना लगाया था।

भादंसं की धारा 323 (जान बूझकर चोट पहुंचाने के लिए दंड) के तहत अधिकतम एक साल की कैद या 1000 रूपये तक के जुर्माने का प्रावधान है।

शीर्ष अदालत ने सिद्धू के सहयोगी रूपिंदर सिंह संधू को यह कहते हुए सभी आरोपों से बरी कर दिया था कि दिसंबर, 1988 के इस अपराध के समय सिद्धू के साथ उनकी मौजूदगी का कोई भरोसेमंद गवाह नहीं है।

बाद में सितंबर, 2018 में शीर्ष अदालत मृतक के परिवार की समीक्षा याचिका का परीक्षण करने को राजी हो गयी थी और सिद्धू को नोटिस जारी किया था।

न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर एवं न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की विशेष पीठ बृहस्पतिवार को समीक्षा याचिका पर विचार करेगी।

अभियोजन के अनुसार, सिद्धू और संधू 27 दिसंबर, 1988 को पटियाला के शेरनवाला गेट चौराहे के समीप सड़क के बीच खड़ी जिप्सी में बैठे थे तथा संबंधित बुजुर्ग एवं दो अन्य पैसे निकालने के लिए बैंक जा रहे थे। जब वे लोग चौराहे पर पहुंचे तब मारूति कार चला रहे गुरनाम नामक एक व्यक्ति ने सिद्धू एवं संधू से जिप्सी को बीच सड़क से हटाने को कहा। इस पर दोनों पक्षों में गर्मागर्म बहस हो गयी।

निचली अदालत ने सितंबर 1999 में सिद्धू को हत्या के आरोपों से बरी कर दिया था।

शीर्ष अदालत ने सिद्धू और संधू की अपील पर कहा था कि गुरनाम सिंह की मौत की वजह के संबंध में मेडिकल साक्ष्य ‘बिल्कुल अस्पष्ट’ हैं।

उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में 2007 में सिद्धू और संधू को दोषी ठहराए जाने पर रोक लगा दी थी।

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