देश की खबरें | नाबालिग की अभिरक्षा के मामले में उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले को गलत बताया

नयी दिल्ली, छह दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को गलत बताया, जिसमें 2019 में छह साल की बच्ची की अभिरक्षा उसके जैविक पिता को सौंप दी गई थी।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने मामले के रिकॉर्ड को देखने के बाद नाराजगी व्यक्त की और कहा, ‘‘अगर हम कुछ कठोर बात कहेंगे, तो बार के सदस्य कहेंगे कि हम अपने उच्च न्यायालयों का मनोबल गिरा रहे हैं। देखिए, उच्च न्यायालय ने न्याय का कैसा मजाक उड़ाया है।’’

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, ‘‘हम जितना कम बोलेंगे उतना ही बेहतर होगा, क्योंकि इससे न्यायिक प्रणाली की स्थिति का पता चलता है। बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका से निपटने का यह सबसे अनुचित तरीका है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘मां को उसके घर से निकाल दिया गया और पिता ने बच्चे को अपने पास रख लिया। जब महिला ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की, तो उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश ने उसके पक्ष में सही फैसला दिया, लेकिन बच्चे के पिता द्वारा दायर अपील पर खंडपीठ ने 2019 में आदेश पर रोक लगा दी।’’

न्यायालय ने कहा कि कि अब पांच साल बाद, उच्च न्यायालय ने फैसला किया है कि बच्चे की अभिरक्षा मां को देने का निर्देश देने वाले एकल न्यायाधीश के आदेश पर रोक लगाने वाला 2019 का उसका आदेश गलत था।

पीठ ने बुलंदशहर के जिला न्यायाधीश को निर्देश दिया कि वह जांच करके इसकी पुष्टि करें और उच्चतम न्यायालय को बताएं कि बच्चे के सर्वोत्तम हित और कल्याण के लिए क्या सही होगा।

देवेंद्र जोहेब

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