नयी दिल्ली, नौ अगस्त हिंदुकुश की पहाड़ियों में मौजूद ग्लेशियरों के सिकुड़ने का क्रम जारी रहेगा एवं बर्फ की मौजूदगी और ऊंचाई पर सीमित होती जाएगी। यह दावा आईपीसीसी की नवीनतम रिपोर्ट में सोमवार को किया गया।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी समिति (आईपीसीसी) की छठी आकलन रिपोर्ट (एआर6) में चेतावनी दी गई है कि इलाके में भारी बारिश से बाढ़, भूस्खलन के साथ झीलों से अचानक पानी का बहाव होने की आशंका बढ़ेगी। इस रिपोर्ट को 195 सदस्य देशों ने मंजूरी दी है।
रिपोर्ट के लेखकों में शामिल कृष्ण अच्युत रॉव ने कहा कि हिंदुकुश पहाड़ी क्षेत्र में 21वीं सदी से अबतक बर्फ अच्छादित क्षेत्र घटा है और वर्ष 1970 से ही ग्लेशियरों की परत पतली हो रही है और उनका द्रव्यमान कम हो रहा है। उन्होंने कहा, हालांकि काराकोरम पर्वत श्रृंखला के ग्लेशियरों के द्रव्यमान में हल्की वृद्धि हुई है या वे कुल मिलाकर संतुलित अवस्था में हैं।
राव ने कहा, ‘‘21 शताब्दी में बर्फ अच्छादित क्षेत्र और उनमें मौजूद बर्फ की मात्रा में कमी आएगी। हिमांक रेखा में वृद्धि होगी और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि होने के साथ ग्लेशियर के द्रव्यमान में और तेजी से गिरावट आने की आशंका है। तापमान और बारिश में वृद्धि से ग्लेशियर से बनी झील के टूटने और बाढ़ एवं भूस्खलन जैसी तबाही लाने की घटनाएं बढ़ सकती हैं।’’
रिपोर्ट के मुताबिक सभी क्षेत्रों में मौजूदा स्थान से ग्लेशियर सिकुड़ेंगी और उनके स्थान पर पर्माफ्रॉस्ट (दलदली) क्षेत्र उत्पन्न होगा।
रिपोर्ट के अन्य लेखक और भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान में वैज्ञानिक स्वपना पणिकल ने कहा कि 20 वीं सदी से ग्लेशियरों के सिकुड़ने के लिए मानव की गतिविधियां जिम्मेदार है और यह न केवल दोनों ध्रुवों के मामले में लागू होता बल्कि पहाड़ी ग्लेशियर के मामलों में भी लागू होता है।
उन्होंने कहा कि उत्सर्जन को कम करके अब ग्लेशियरों को कम होने से नहीं रोका जा सकता क्योंकि वह बहुत धीमी प्रक्रिया है।
पणिकल ने कहा, ‘‘मौसम प्रणाली में ग्लेशियर सबसे धीमी प्रतिक्रिया करने वाले हिस्से हैं। इसलिए अब तापमान की मौजूदा दर से ग्लेशियरों को कम होने से रोकने की उम्मीद नहीं कर सकते। अगर हम उत्सर्जन को रोक भी दें और वैश्विक तापमान में वृद्धि डेढ़ डिग्री तक सीमित भी कर दें तो भी हम ग्लेशियर को और कम होते देखेंगे। निश्चित तौर यह अहम जलवायु प्रभाव है क्योंकि इसका वृहद असर इलाके में मीठे पानी की उपलब्धता पर पड़ेगा।’’
गौरतलब है कि इस इलाके में तियेन शान, कुन लुन, पामीर, हिंदू कुश, काराकोरम, हिमालय और हेंगडुआन और तिब्बत के ऊंचे पठार आते हैं और दुनिया के सबसे नवीनीकृत मीठे जल आपूर्ति करने वाले प्रमुख स्रोतों में एक हैं। यहां के पानी से सीधे तौर पर 12 करोड़ की आबादी सिंचाई के लिए निर्भर है और परोक्ष रूप से भारत, चीन, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान की 130 करोड़ आबादी नदी बेसिन के जरिये आश्रित है।
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