जरुरी जानकारी | खाद्यान्न आत्मनिर्भरता के लिए देश लाल बहादुर शास्त्री का ऋणी: तोमर

नयी दिल्ली, 23 मार्च केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने देश को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता के प्रेरक के रूप में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व की प्रशंसा करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री आवास पर खेती करने की उनकी पहल व देश में खाद्यान्न संकट को देखते हुए देश में एक दिन के उपवास के आह्वान ने भारतीय किसानों को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए प्रेरित किया।

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री तोमर विक्रम नव संवत 2080 व विश्व जल दिवस (22 मार्च) के अवसर पर धानुका समूह द्वारा आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि "शास्त्री का व्यक्तित्व अतुलनीय था। वर्ष 1965 में खाद्यान्न संकट के चरम पर उन्होंने न केवल अपने सरकारी आवास पर खेती की, बल्कि 'जय जवान, जय किसान' के नारे के साथ देश के किसानों को खेत में जाने का आह्वान भी किया, ताकि एक देश के रूप में हम खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बनें और कभी दूसरों पर निर्भर न रहना पड़े। शास्त्री जी की तरह आज लोग हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अनुसरण करते हैं।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर लोगों ने गैस सब्सिडी त्याग दी, जिसके परिणामस्वरूप उज्ज्वला योजना की शुरुआत हुई और करीब नौ करोड़ महिलाओं को इस लाभ मिला।

कृषि मंत्री तोमर ने केंद्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री गिरिराज सिंह की मौजूदगी में स्व. लाल बहादुर शास्त्री जी के चित्र और उनके नाती संजय नाथ सिंह द्वारा उनके जीवन पर लिखी गई एक पुस्तिका का भी अनावरण किया।

इस अवसर पर धानुका समूह के अध्यक्ष आर.जी. अग्रवाल ने कहा, “एक अनुमान के अनुसार, भारत में कृषि प्रयोजनों के लिए 70-80 प्रतिशत पानी का उपयोग किया जाता है। लगातार घटते भूजल स्तर को देखते हुए पारंपरिक बाढ़ सिंचाई तकनीक के बजाय ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई तकनीक को बढ़ावा देने की अत्यधिक आवश्यकता है। इस तरह की सटीक सिंचाई प्रणाली ने 60 प्रतिशत से अधिक बंजर भूमि वाले इज़राइल जैसे देश को उच्च गुणवत्ता और उच्च उपज वाली फसलों का उत्पादन करने वाले कृषि क्षेत्र में एक विश्व नेता के रूप में फलने-फूलने में सक्षम बनाया है। हमें एक देश के रूप में सटीक खेती (प्रिसिजन फार्मिंग) को बड़े पैमाने पर अपनाने की जरूरत है, जिसके परिणामस्वरूप फसल की गुणवत्ता, उत्पादन और लाभप्रदता में वृद्धि के साथ-साथ पानी की भी बचत होगी।

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