नयी दिल्ली, 19 अक्टूबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने फरवरी में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान उत्तर पूर्व दिल्ली में साम्प्रदायिक हिंसा के मामले में एक आरोपी के कथित कबूलनामे को प्रसारित करने पर एक समाचार चैनल से सोमवार को सवाल किया और टिप्पणी की कि आरोपी का जो कथित स्वीकारोक्ति बयान सार्वजनिक नहीं किया गया है, उस तक पहुंचा और उसे प्रकाशित या प्रसारित नहीं किया जा सकता।
अदालत ने यह भी कहा कि पत्रकारों को कोई केस डायरी प्रकाशित या प्रसारित करने का अधिकार नहीं है।
अदालत ने ‘जी न्यूज मीडिया कॉरपोरेशन लिमिटेड’ को शपथ पत्र दाखिल करके उस सूत्र का खुलासा करने को कहा, जिससे संबंधित पत्रकार को जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआई) विश्वविद्यालय के छात्र के कथित कबूलनामे संबंधी दस्तावेज मिले।
न्यायमूर्ति विभू बाखरू ने मीडिया समूह के अनुरोध को ठुकरा दिया कि उसे संबंधित पत्रकार के नाम का खुलासा सीलबंद कवर में करने की अनुमति दी जानी चाहिए, क्योंकि नाम उजागर करने से उसके जीवन और परिवार को खतरा होगा।
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न्यायाधीश ने समाचार चैनल से एक अन्य शपथपत्र दायर करने को कहा और मामले की आगे की सुनवाई के लिए 23 अक्टूबर की तारीख तय की।
अदालत ने कहा, ‘‘पुलिस ने मामले में सतर्कता जांच पहले ही आरम्भ कर दी है। आपको (जी न्यूज) उन दस्तावेजों तक पहुंच मिली, जिन तक आरोपी को भी पहुंच मुहैया नहीं कराई गई है। आप उस सूत्र का खुलासा करने के लिए जवाब दायर करें, जिससे आपको दस्तावेज मिले।’’
अदालत जेएमआई के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने आरोप लगाया है कि पुलिस अधिकारियों ने उसके खुलासे वाले बयान को मीडिया में लीक कर अच्छा आचरण नहीं किया है। जांच के दौरान जांच एजेंसी ने उसके बयान दर्ज किए थे।
दिल्ली पुलिस ने बृहस्पतिवार को अदालत से कहा था कि जेएमआई के छात्र के बयान की सूचना उसके अधिकारियों ने मीडिया में लीक नहीं की।
समाचार चैनल के वकील ने कहा कि पत्रकार ने अनुरोध किया है कि सूचना के सूत्र का खुलासा करने के लिए उस पर दबाव नहीं बनाया जाना चाहिए क्योंकि तन्हा के कथित कबूलनामे की सच्चाई को याचिका में उसने चुनौती नहीं दी है।
जी न्यूज के वकील विजय अग्रवाल ने दलील दी कि सूत्र का खुलासा करने के लिए दबाव बनाना संविधान में प्रदत्त प्रेस की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप के समान होगा और जब सूचना के स्रोत की रक्षा नहीं की जाती है, तो प्रेस की स्वतंत्रता खतरे में पड़ती है या उसमें हस्तक्षेप होता है।
अदालत ने कहा कि उसे नहीं लगता कि केस डायरी निकालना और उसे प्रसारित करना पत्रकार का अधिकार है और कोई भी समाचार रिपोर्ट उन दस्तावेजों पर आधारित नहीं हो सकती, जो सार्वजनिक नहीं किए गए हैं।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘आप इन दस्तावेजों को बाहर निकालकर प्रसारित नहीं कर सकते। इसमें कोई संशय नहीं है।’’
तन्हा के वकील सिद्धार्थ अग्रवाल ने कहा कि किसी भी राष्ट्रीय टीवी चैनल पर समाचार दिखाने से पहले उन्हें विस्तृत जानकारी की पुष्टि करनी चाहिए।
उन्होंने दलील दी, ‘‘व्यक्ति को यह पता लगाना चाहिए कि दस्तावेज कहां से मिल रहे हैं। आरोपी को हिरासत संबंधी आवेदन की प्रतियां नहीं दी गईं, जिनमें मामले की जानकारी है, लेकिन पत्रकारों को सभी चीजें मुहैया कराई जा रही हैं।’’
तन्हा को फरवरी में संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में आयोजित प्रदर्शन के दौरान उतर पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा के एक मामले के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था।
पुलिस उपायुक्त (विशेष प्रकोष्ठ) ने हलफनामा दायर कर अदालत को सूचित किया था कि दिल्ली पुलिस भी अखबार की खबर से व्यथित है जिसमें तन्हा का कथित स्वीकारोक्ति बयान लीक हुआ था।
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