नयी दिल्ली, चार मार्च भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भू-राजनीतिक तनावों से मुद्रास्फीति को लेकर बढ़ती चिंता के बीच प्रभावी संचार रणनीति की जरूरत पर जोर देते हुए शुक्रवार को कहा कि मौद्रिक नीति उम्मीदों के प्रबंधन की कला है।
दास ने राष्ट्रीय रक्षा महाविद्यालय (एनडीसी) में एक व्याख्यान देते हुए कहा कि अर्थव्यवस्थाओं और बाजारों के विकास के साथ भारत समेत दुनिया भर में मौद्रिक नीति के संचालन में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए हैं। उन्होंने कहा कि एक जटिल आर्थिक प्रणाली में अर्थव्यवस्था के विभिन्न पक्षों के बीच संपर्क के तरीके को लेकर नीति निर्माताओं की समझ गहरी हुई है।
दास ने कहा, ‘‘मौद्रिक नीति आकांक्षाओं का प्रबंधन करने की कला है। ऐसे में केंद्रीय बैंकों को न केवल घोषणाओं और कार्यों के माध्यम से, बल्कि वांछित सामाजिक परिणाम प्राप्त करने के लिए अपनी संचार-संवाद रणनीतियों के निरंतर सुधार के माध्यम से भी बाजार की अपेक्षाओं को आकार देने और उन्हें स्थिर करने के लिए निरंतर प्रयास करने चाहिए।’’
उन्होंने कहा कि संचार दोतरफा काम करता है। एक तरफ, संचार की अति होने से बाजार में भ्रम की स्थिति बन सकती है, वहीं बहुत कम संचार होने से केंद्रीय बैंक के नीतिगत उद्देश्यों को लेकर अटकलें शुरू हो सकती हैं।
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि संचार के साथ-साथ आनुपातिक कदम उठाकर समर्थन देने की भी जरूरत है ताकि विश्वसनीयता पैदा हो और नीतियों के प्रति व्यापक भरोसा हो।
रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा कि केंद्रीय बैंक ने अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के बैठक के ब्योरे जारी करने के अलावा विकासात्मक एवं नियामकीय कदमों पर संवाददाता सम्मेलनों, भाषणों एवं अन्य प्रकाशनों के जरिये संचार स्थापित करने में सक्रियता दिखाई है।
उन्होंने कहा कि मौद्रिक नीति उद्देश्यों की नाकामी को औसत प्रमुख उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति के लगातार तीन तिमाहियों तक 2-6 फीसदी के दायरे में न रहने के आधार पर परिभाषित किया गया है। इससे मौद्रिक नीति को ब्याज दर निर्धारण में गैरजरूरी अस्थिरता से बचने में मदद मिलती है।
दास ने मौजूदा वैश्विक हालात का जिक्र करते हुए कहा कि दो साल तक महामारी के असर से प्रभावित रहने के बाद मौजूदा हालात संचार के लिए जटिल चुनौतियां पैदा कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, "दुनिया भर के केंद्रीय बैंक इस समय असमंजस की स्थिति में हैं। अगर वे आक्रामक तरीके से मुद्रास्फीति पर काबू पाने की कोशिश करते हैं तो मंदी को जोखिम पैदा हो जाता है और अगर वे बहुत देर से और सीमित कदम उठाते हैं तो उन्हें पीछे छूट जाने का आरोप झेलना पड़ सकता है।"
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