नयी दिल्ली, 12 मई उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे उन विदेशियों द्वारा दायर किए जाने वाले वीजा आवेदनों की कानून के अनुसार मामला-दर-मामला आधार पर जांच करें जिन्हें तबलीगी जमात की गतिविधियों में कथित संलिप्तता को लेकर भारत की यात्रा करने के लिए 10 साल की अवधि की खातिर काली सूची में डाल दिया गया था।
सर्वोच्च अदालत उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिनमें 35 देशों के कई नागरिकों को तबलीगी जमात गतिविधियों में कथित संलिप्तता को लेकर 10 साल तक भारत की यात्रा करने पर रोक के आदेशों को चुनौती दी गई है।
न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने "पूरी निष्पक्षता" के साथ कहा कि याचिकाकर्ताओं या इसी तरह के लोगों को अलग से काली सूची में डालने का आदेश नहीं दिया गया है।
पीठ ने कहा, ‘‘इस मामले को देखते हुए, हम संबंधित अधिकारियों को कानून के अनुसार मामला-दर-मामला आधार पर याचिकाकर्ताओं द्वारा भविष्य में किए जाने वाले वीजा आवेदनों की जांच करने का निर्देश देते हैं...।’’ पीठ में न्यायमूर्ति ए. एस. ओका और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला भी शामिल थे।
पीठ ने कहा कि ऐसे आवेदनों पर गौर करते समय, अधिकारियों को मामले के सभी पहलुओं को ध्यान में रखना होगा जिसकी कानून में अनुमति हो।
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि हालांकि दोनों पक्षों द्वारा उसके सामने कानून से जुड़े कई सवाल उठाए गए थे लेकिन "हम वर्तमान मामले के अजीबोगरीब तथ्यों में उन बातों को विस्तार नहीं देना चाहते हैं, क्योंकि याचिकाकर्ता वीजा रद्द होने के परिणामस्वरूप पहले ही भारत छोड़ चुके हैं। "
पीठ ने कहा कि एकमात्र मुद्दा संबंधित अधिकारियों द्वारा पारित काली सूची संबंधी आदेश से जुड़ा है।
केंद्र ने बुधवार को न्यायालय से कहा था कि किसी भी संप्रभु देश में प्रवेश कभी भी लागू करने योग्य मौलिक अधिकार नहीं हो सकता है और भारत ने 2003 से तबलीगी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा रखा है।
मेहता ने कहा था कि कालीसूची से नाम हटाने के लिये याचिकाकर्ता अधिकारियों के समक्ष प्रतिवेदन दे सकते हैं।
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