नयी दिल्ली, 19 नवंबर अभिनेता शाहरुख खान ने मंगलवार को कहा कि जीवन में निराशा के क्षणों से निपटने का उनका तरीका है कि वह खुद को बाथरूम में बंद करके सारी परेशानियों को आंसुओं में बहा देते हैं और फिर अगले काम पर ध्यान देते हैं।
दुबई में ग्लोबल फ्रेट समिट में ‘फ्रॉम बॉलीवुड सुपरस्टारडम टू बिजनेस सक्सेस-की लर्निंग्स ऑन एंड ऑफ स्क्रीन’ विषय पर अपनी बात रखते हुए अभिनेता-निर्माता ने कोविड-19 महामारी से पहले अपनी फिल्मों की विफलता की बात की तो सफलता और सितारा छवि पर अपनी दार्शनिक सोच, अपने बचपन आदि पर भी विचार रखे।
शाहरुख ने स्वीकार किया कि वह खुद की कमजोरियों को आंकते हैं लेकिन किसी और के सामने खुद को बेबस नहीं दिखाते।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं अपने बाथरूम में फूट फूट कर रोता हूं। आप इतने समय तक खुद पर तरस खा सकते हैं और फिर आपको यह विश्वास करना होगा कि दुनिया आपके खिलाफ नहीं है। आपकी फिल्म आपके कारण या दुनिया द्वारा आपके काम को बर्बाद करने की साजिश के कारण खराब नहीं रही। आपको यह विश्वास करना होगा कि आपने इसे बुरी तरह से बनाया है और फिर आपको आगे बढ़ना होगा।’’
शाहरुख ने कहा कि सफलता कई बार विफलता से सामना कराती है और सफलता अलग-थलग कर सकती है जो नाकामी की ओर ले जा सकती है।
उन्होंने कहा, ‘‘आप सफलता से बहुत प्रेरित होते हैं और यही मेरी समस्या थी। मैं चीजों को हल्के में नहीं लेता, मैं सुबह उठता था और खुद से कहता था, 'मुझे यह करते रहना चाहिए'... सफलता आपको अलग-थलग कर सकती है और असफलता की ओर ले जा सकती है। जब आप सफल होते हैं, तो आपको इस बात से अवगत होना चाहिए कि आपके आस-पास की दुनिया बदल रही है। आपको चारों ओर देखने की जरूरत है, आप आंखों पर पट्टी बांधकर नहीं रह सकते।’’
साल 2023 में ‘पठान’, ‘जवान’ और ‘डन्की’ फिल्मों के साथ सफल वापसी करने वाले शाहरुख (59) ने कहा, ‘‘अगर आप संघर्ष के दौर में जी रहे हैं, तो आपके उत्पाद को आपको सुरक्षा का एहसास दिलाना चाहिए। आपको लगता है कि आप व्यवस्था के खिलाफ हैं, चीजों को बदलना चाहते हैं, तो मेरी फिल्म में मुझे एक ऐसे नायक के रूप में दिखाया जाना चाहिए जो दुनिया से लोहा लेता है...।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मेरी सफलता 90 के दशक में तब शुरू हुई जब मेरे देश भारत में खुलापन आया। हम दुनिया भर में घूम रहे थे और भारत के बारे में बात कर रहे थे। मैंने जिस तरह की फिल्में कीं, 'तुझे देखा तो ये जाना सनम' (1995 की हिट फिल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' का जिक्र करते हुए) सभी को पसंद आई और कुछ लोगों ने तो 30 साल पहले इस फिल्म को देखकर शादी भी कर ली थी। इसमें खुशी, प्यार और स्विट्जरलैंड के पल थे। यह समय की निशानी थी।’’
शाहरुख के तीन बच्चे हैं - आर्यन, सुहाना और अबराम। वह कहते हैं, ‘‘अब मेरा ध्यान इस बात पर है कि मेरा सबसे छोटा बेटा भी सोचे कि मैं काफी बड़ा स्टार हूं। उसने मेरी बहुत सी फिल्में नहीं देखी हैं। वह 11 साल का है। एक दिन मेरा बड़ा बेटा आया और बोला, ‘आपको पता है, वह जानता है कि आप एक बड़े स्टार हो'। मैं चाहता हूं कि मेरा बेटा स्टारडम का अनुभव करे, यह जानना कि मैं एक स्टार हूं, काफी नहीं है।’’
शाहरुख ने मजाकिया लहजे में कहा कि जब भी कोई उनके स्टारडम पर सवाल उठाता है, तो उन्हें बस अपने घर के सामने रेलिंग पर खड़े होकर लोगों को हाथ हिलाना होता है।
उन्होंने कहा, ‘‘और मैं इस बारे में बहुत अहंकारी हूं.. यह तो मजाक की बात रही। लेकिन मैं बहुत विनम्र हूं और इसे संभव बनाने के लिए मैं आप सभी को नमन करता हूं। मैं यह विनम्रता से नहीं कह रहा हूं, बल्कि मैं कृतज्ञता के साथ कह रहा हूं... मुझे स्टार बनाने के लिए धन्यवाद।’’
शाहरुख ने यह भी चर्चा की कि कैसे आजकल का जीवन सोशल मीडिया के साथ घुलमिल गया है और युवा पीढ़ी पहले की पीढ़ी की तुलना में वीडियो के बारे में अधिक साक्षर है।
अपने परोपकार के कार्यों के बारे में पूछे जाने पर, अभिनेता ने कहा कि भारत में निम्न मध्यम वर्ग की पृष्ठभूमि से आने वाले व्यक्ति के रूप में, उन्हें जीवन में जो कुछ भी मिला है, उसके लिए उनके मन में गहरा सम्मान है।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं पूरी तरह से समझता हूं कि मेरी सफलता सिर्फ मेरी वजह से नहीं है, यह सिनेमा के माध्यम से या व्यक्तिगत स्तर पर बहुत से लोगों के एक साथ आने से जुड़ी है।’’
अभिनेता ने कहा कि उन्होंने कम उम्र में अपने माता-पिता को खो दिया था और जीवन को देखने का उनका तरीका यह था कि उन्हें कड़ी मेहनत करनी थी और सफल होना था ताकि उनके माता-पिता को यह बुरा न लगे कि वे उनका ख्याल नहीं रख सके।
शाहरुख ने ‘सुपर सितारा’ की अपनी छवि पर भी बात की और कहा कि इस धारणा के बावजूद, उन्होंने हमेशा अपने असली रूप में बने रहने की कोशिश की है।
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