नयी दिल्ली, 16 जुलाई विदेशों में मजबूती के रुख के बीच स्थानीय मांग कमजोर रहने की वजह से घरेलू बाजारों में मंगलवार को लगभग सभी तेल-तिलहन के थोक दाम में मामूली सुधार दिखा। इस सुधार की वजह से सरसों, मूंगफली एवं सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन तथा बिनौला तेल के थोक दाम मामूली बढ़त के साथ बंद हुए।
मलेशिया और शिकॉगो एक्सचेंज में मजबूती का रुख रहा। कल रात भी शिकागो एक्सचेंज 2-2.25 प्रतिशत मजबूत रहा था।
बाजार सूत्रों ने कहा कि सरसों, सोयाबीन और मूंगफली के किसान अपनी फसलें, और अधिक सस्ते में बेचने से कतरा रहे हैं क्योंकि खुले बाजार में इन फसलों की कीमत पहले से ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम बोली जा रही है। इस वजह से सरसों, सोयाबीन और मूंगफली तेल-तिलहन कीमतों में सुधार है। लेकिन विदेशों में आए सुधार के बावजूद सूरजमुखी तेल का आयात बढ़ने की वजह से स्थानीय मांग कमजोर बने रहने के कारण यहां थोक दाम में मामूली सुधार ही देखने को मिला।
उन्होंने कहा कि विदेशों में कल रात सोयाबीन डीगम के दाम में 23 डॉलर की वृद्धि हुई लेकिन इसके अनुपात में स्थानीय बाजार में मामूली वृद्धि ही देखी गई। इसकी मूल वजह सूरजमुखी का जरूरत से अधिक आयात होना है जो तेल बंदरगाहों पर आयात के बाद लागत से भी तीन रुपये किलो के नुकसान के साथ बेचा जा रहा है। सस्ते आयातित सूरजमुखी तेल के आगे किसी भी तेल का टिकना मुश्किल ही है।
सूत्रों ने कहा कि देश में सबसे बुरी हालत तेल पेराई मिलों की है क्योंकि पेराई की लागत के बाद उनके तेल और भी बेपड़ता हो जा रहे हैं। एमएसपी के हिसाब से देशी सूरजमुखी तेल का थोक दाम 150 रुपये लीटर बैठता है और आयातित सूरजमुखी तेल का बंदरगाह पर थोक दाम 80-81 रुपये लीटर बैठता है तो पेराई के बाद महंगे देशी सूरजमुखी तेल को कौन खरीदेगा?
उन्होंने कहा कि यही हाल बिनौला का है जिनकी देश में अभी 10-12 प्रतिशत पेराई मिलें चल रही हैं। जब पेराई के बाद यही तेल बाजार में नहीं खप रहा तो नयी फसल आने के बाद जब अक्टूबर-नवंबर में 100 प्रतिशत तेल मिलें चलेंगी तो उस तेल के कौन खरीदार होंगे इसका अनुमान लगाना मुश्किल है।
सूत्रों ने कहा कि किसान लाभ नहीं देखकर दूसरी फसल का रुख कर सकते हैं। लेकिन तेल मिलें कहां जायेंगी? जो तेल मिलें रोजगार देती हैं और मुर्गीपालन एवं मवेशीपालन के लिए तेल-खल एवं डी-आयल्ड केक (डीओसी) देती है, उसकी कमी कहां से पूरी होगी? इन तेल मिलों को तो पेराई की लागत के बाद नुकसान में भी तेल बेचने पर उनका तेल खप नहीं रहा है। इनके संकट को कौन सा तेल संगठन सुनेगा और उन्हें राहत देने की पहल करेगा?
सूत्रों ने कहा कि पिछले साल खरीफ मौसम में 41 हजार हेक्टेयर में सूरजमुखी की खेती की गई थी जो इस साल बढ़कर 51 हजार हेक्टेयर हो गया है। कुछ लोग इसे सूरजमुखी के रकबे में वृद्धि के रूप में देख रहे हैं। लेकिन वर्ष 1998-99 में सूरजमुखी खेती का रकबा 26 लाख 76 हजार हेक्टेयर था और इस आंकड़े के सामने 41 हजार से बढ़कर लगभग 51 हजार हेक्टेयर खेती का रकबा होना कुछ लोगों को सुकून दे सकता है। लेकिन समग्रता में देखने से वास्तविक हैसियत का भी पता लगाया जा सकता है।
तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:
सरसों तिलहन - 5,990-6,040 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली - 6,375-6,650 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) - 15,200 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली रिफाइंड तेल 2,285-2,585 रुपये प्रति टिन।
सरसों तेल दादरी- 11,600 रुपये प्रति क्विंटल।
सरसों पक्की घानी- 1,900-2,000 रुपये प्रति टिन।
सरसों कच्ची घानी- 1,900-2,025 रुपये प्रति टिन।
तिल तेल मिल डिलिवरी - 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 10,350 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 10,100 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 8,700 रुपये प्रति क्विंटल।
सीपीओ एक्स-कांडला- 8,575 रुपये प्रति क्विंटल।
बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 9,725 रुपये प्रति क्विंटल।
पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 9,800 रुपये प्रति क्विंटल।
पामोलिन एक्स- कांडला- 8,850 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।
सोयाबीन दाना - 4,580-4,600 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन लूज- 4,390-4,510 रुपये प्रति क्विंटल।
मक्का खल (सरिस्का)- 4,125 रुपये प्रति क्विंटल।
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