नयी दिल्ली, 30 सितंबर उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि समाज में कई मुद्दों के हल की जरूरत है लेकिन सीधे शीर्ष अदालत का रुख करने से हर समस्या का समाधान नहीं हो सकता। जनसंख्या नियंत्रण को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई जारी रखने के प्रति अनिच्छा व्यक्त करते हुए न्यायालय ने यह टिप्प्णी की।
प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला की पीठ सभी राज्यों को नोटिस जारी करने के प्रति भी अनिच्छुक थी। याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने राज्यों को नोटिस जारी करने की मांग की थी।
याचिका में अदालत से केंद्र और राज्यों को देश की बढ़ती आबादी पर नियंत्रण के लिए कदम उठाने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है जिसमें दो बच्चों के मानक को लागू करना शामिल है।
पीठ ने कहा, ‘‘आपने याचिका दायर की है। नोटिस जारी किया गया और उनका (सरकार का) ध्यान आकृष्ट किया गया था। उन्होंने इस समस्या पर अपना दिमाग लगा दिया और अब नीतिगत फैसला लेना उन पर निर्भर है। हमारा काम खत्म हो गया। इसलिए अब हम याचिका का पटाक्षेप कर देंगे।’’
पीठ की यह टिप्प्णी तब आई जब पेशे से अधिवक्ता उपाध्याय ने कहा कि चूंकि जनसंख्या का विषय संविधान की समवर्ती सूची के तहत आता है, इसलिए राज्य सरकार भी इस पर नियंत्रण के लिए कानून बना सकती है। इसी के आधार पर याचिकाकर्ता ने सभी राज्यों को नोटिस जारी करने की मांग की।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हम इस तरह का नोटिस जारी नहीं करेंगे जब तक कि हम संतुष्ट नहीं हो जाते।’’ प्रधान न्यायाधीश ने सवालिया लहजे में पूछा कि अदालत जनसंख्या नियंत्रण के मुद्दे पर कैसे राज्यों के लिए रिट जारी कर सकती है।
पीठ ने कहा कि एक समाज में हमेशा कुछ न कुछ विवाद रहते हैं और उन विवादों के समाधान की जरूरत होती है। इसलिए ऐसा नहीं हो सकता कि बिना समस्या वाला कोई समाज हो।
पीठ ने कहा कि हर समस्या का समाधान अनुच्छेद 32 के तहत नहीं हो सकता। इस अनुच्छेद के तहत सीधे उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर की जा सकती है।
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